क्या पटरी पर लौटेंगे मणिपुर के जमीनी हालात?

DW

रविवार, 2 मार्च 2025 (07:41 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
जातीय हिंसा की चपेट में रहे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगे दो सप्ताह से ज्यादा का समय बीत गया है। उसके बाद पहली बार शनिवार को नई दिल्ली में एक बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य की ताजा स्थिति की समीक्षा की।
 
भारत के गृह मंत्री के साथ इस बैठक में राज्यपाल अजय कुमार भल्ला के अलावा सुरक्षा बलों और प्रशासन के तमाम शीर्ष अधिकारी मौजूद थे। बैठक में अब तक की प्रगति पर संतोष जताते हुए कहा गया कि प्रशासन की सबसे पहली प्राथमिकता उन हथियारों की वापसी है जिनको हिंसा शुरू होने के बाद अलग-अलग शहरों में थानों और सरकारी शस्त्रागारों से लूटा गया था।
 
बीती 13 फरवरी को राष्ट्रपति शासन लागू होने के करीब एक सप्ताह बाद राज्यपाल ने तमाम भूमिगत और उग्रवादी संगठनों को इन लूटे गए हथियारों की वापसी के लिए एक सप्ताह का अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि उसके बाद बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई शुरू की जाएगी। लेकिन उस दौरान करीब चार सौ हथियार ही जमा हुए। उसके बाद यह समयसीमा छह मार्च तक बढ़ा दी गई है। इसके पीछे दलील यह दी गई कि कई संगठनों ने हथियार लौटाने से पहले आपस में विचार-विमर्श के लिए समय मांगा है। इस कवायद के बीच ही कुकी संगठनों की ओर से मैतेई समुदाय के एक धार्मिक स्थल पर हुए हमले ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अब पूछा जा रहा है कि क्या राष्ट्रपति शासन से मणिपुर में जमीनी हालात सुधरेंगे?
 
पर्वतीय और मैदानी इलाकों में विभाजन
इस सवाल की ठोस वजह है। मणिपुर घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की अदालती सलाह के बाद साल 2023 में तीन मई को बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी। उसके बाद राज्य के पर्वतीय और मैदानी इलाकों के बीच विभाजन साफ उभर आया। पर्वतीय इलाकों में कुकी-जो और नागा जनजातियां ही रहती हैं। हालात इस कदर बेकाबू हो गए हैं कि अब उनमें से कोई भी एक-दूसरे के इलाके में पांव रखने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। हिंसा के बाद दोनों तबकों के उग्रवादी संगठनों ने बड़े पैमाने पर हथियार लूटे और अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद उठा लिया।
 
यह लोग एक-दूसरे को देखते ही जान से मार देते थे और अब भी स्थिति में खास सुधार नहीं आया है। हिंसा शुरू होने के बाद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक ढाई सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। गैर-सरकारी आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा है। हिंसा के दौरान सैकड़ों करोड़ की संपत्ति फूंक दी गई और 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित के तौर पर राहत शिविरों में दिन गुजारने पर मजबूर हैं।
 
लूटे गए सरकारी हथियारों की वापसी
हिंसा शुरू होने के बाद करीब छह हजार सरकारी हथियार लूटे गए थे। राज्यपाल के अल्टीमेटम के बावजूद करीब चार सौ हथियार ही लौटाए गए हैं। इससे साफ है कि दोनों समुदायों के बीच आपसी भरोसा नहीं बचा है। एन।बीरेन सिंह सरकार पर तो पहले से ही मैतेई समुदाय का पक्ष लेने के आरोप लग रहे थे। अब राष्ट्रपति शासन के बाद भी कुकी संगठनों में प्रशासन के प्रति भरोसा नहीं पैदा हो सका है।
 
वैसे, सरकारी हथियार लौटाने की अपील कोई पहली बार नहीं की गई है। इससे पहले  जून, 2023 में राज्य में जगह-जगह ड्राप बाक्स रखे गए थे। उन पर लिखा था कि कृपया लूटे गए हथियारों को यहां जमा कर दें। ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का भी भरोसा दिया गया था। राज्य के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि सुरक्षा बलों को छह हजार में से 12 सौ हथियार बरामद करने में ही कामयाबी मिली है।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब तक तमाम लूटे हुए हथियार बरामद नहीं हो जाते और तमाम उग्रवादी संगठन हथियार-विहीन नहीं होते, राज्य में शांति और सामान्य स्थिति की बहाली दूर की कौड़ी ही है। विश्लेषक डी। कुमार सिंह डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सीमा पार म्यांमार से कुकी उग्रवादियों को हथियारों की सप्लाई भी रोकनी होगी। ऐसा नहीं होने तक मैतेई संगठन भी हथियार नहीं डालेंगे।"
 
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि पूर्व मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी सीमा पार से कुकी उग्रवादियों को हथियारों की सप्लाई के आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने इसे राज्य में जारी हिंसा की सबसे बड़ी वजह बताया था।
 
म्यांमार से लगी सीमा पर निगरानी बढ़ी
पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "म्यांमार से लगी सीमा पर भी निगरानी बढ़ाई जा रही है ताकि वहां से हथियारों का जखीरा यहां नहीं पहुंच सके। दोनों समुदायों के तमाम गुटों के हथियार नहीं डालने तक राज्य में सामान्य स्थिति बहाल होना संभव नहीं है।"
 
उनका कहना था कि हथियारों की वापसी के बाद संबंधित गुटों को बातचीत के लिए सहमत किया जा सकता है। राज्य की समस्या का समाधान बातचीत से ही निकलेगा, हिंसा से नहीं।
 
घाटी इलाके में सक्रिय मैतेई संगठन आराम्बाई टेंगोल ने भी इस सप्ताह राज्यपाल से मुलाकात कर करीब तीन सौ हथियार लौटाए हैं। संगठन की एक सदस्या निंग्बोई एच। किपगेन डीडब्ल्यू से कहती हैं, "हमें कुकी संगठनों पर भरोसा नहीं है। जब तक प्रशासन हमारी सुरक्षा की गारंटी नहीं देता तब तक पूरी तरह से हथियार डालना संभव नहीं है।"
 
विशेषकों का कहना है कि राज्य में दोनों प्रमुख तबकों के बीच परस्पर अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि निकट भविष्य़ में उसे पाटना संभव नहीं लगता।

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