देश की मतदाता सूची में महिला वोटरों की तादाद लगातार बढ़ रही है। लेकिन राजनीतिक दलों की ओर से टिकट नहीं मिलने के कारण वो इस अनुपात में संसद में नहीं पहुंच पातीं। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, मतदाता सूची में पुरुषों और महिलाओं के बीच का फासला लगातार कम हो रहा है और अगले पांच साल में महिलाओं के आगे निकल जाने की संभावना है।
इसके और महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बावजूद इस बार भी तमाम प्रमुख दलों ने महिलाओं को टिकट देने में हमेशा की तरह कंजूसी बरती है। ऐसे दलों की दलील रही है कि टिकटों के बंटवारे में जीतने की क्षमता को ध्यान में रखा गया है। कुछ राजनीतिक दल तो यह भी दलील देते हैं कि महिलाएं वोट डालने में तो दिलचस्पी रखती हैं, चुनाव लड़ने में नहीं। पहले चरण में जिन 102 सीटों पर मतदान होना है उनके लिए मैदान में उतरे 1,625 उम्मीदवारों में से सिर्फ 134 महिलाएं हैं। यानी कुल उम्मीदवारों का आठ फीसदी।
मतदाता सूची में कम हो रही है लैंगिक असमानता
एसबीआई रिसर्च की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के कारण लोकसभा और विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं की तादाद तेजी से बढ़ी है। बीते पांच वर्षों में जिन 23 बड़े राज्यों में चुनाव हुए हैं, उनमें से 18 राज्यों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया था। इन 18 में से दस राज्यों में दोबारा निवर्तमान सरकार ही सत्ता में लौटी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2029 के लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की तादाद पुरुषों से आगे निकल जाएगी। उस समय कुल 73 करोड़ मतदाताओं में 37 करोड़ महिलाएं ही होंगी।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 83.4 करोड़ मतदाताओं में से पुरुष और महिला वोटरों की तादाद क्रमशः 43.7 और 39.7 करोड़ थी। वर्ष 2019 में कुल 89.6 करोड़ मतदाताओं में से यह तादाद क्रमशः 46.5 और 43.1 फीसदी हो गई। अब 2024 में वोटरों की कुल तादाद बढ़ कर 96।8 करोड़ तक पहुंच गई है। इनमें पुरुषों की तादाद 49.7 करोड़ है और महिलाओं की 47.1 करोड़।
इससे साफ है कि बीते दस वर्षों के दौरान जहां पुरुष मतदाताओं की तादाद में छह करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई है वहीं महिला वोटरों में यह वृद्धि 7.1 करोड़ रही है। यानी मतदाता सूची में लैंगिक असमानता तेजी से कम हो रही है। गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और तेलंगाना में महिला वोटरों की तादाद बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ी है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस लोकसभा चुनाव में कुल 96.8 करोड़ मतदाताओं में से 68 करोड़ लोग मताधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें 33 करोड़ यानी 49 फीसदी महिला मतदाता होंगी। 85.3 लाख महिलाएं पहली बार मतदान करेंगी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2047 तक (2049 में संभावित चुनाव) महिला मतदाताओं की संख्या बढ़कर 55 फीसदी (50.6 करोड़) और पुरुषों की संख्या घटकर 45 फीसदी (41.4 करोड़) हो जाएगी। इस दौरान कुल 115 करोड़ मतदाता होंगे। इनमें 80 फीसदी लोग यानी 92 करोड़ मतदान कर सकते हैं।
बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग की तरफ से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पिछले दशक की सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक है। महिला मतदाता अब चुनावों में पहले से कहीं अधिक बड़ी भूमिका निभा रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अब साक्षरता बढ़ने के कारण महिलाएं राजनीतिक फैसला लेने वाले एक अहम समूह के रूप में उभर रही हैं। महिला आरक्षण विधेयक, रसोई गैस सब्सिडी, सस्ते ऋण और नकद राशि के वितरण जैसे कदमों से महिला मतदाताओं को लुभाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से बीजेपी के वोटों में वृद्धि में मदद मिली है।
महिला उम्मीदवार केवल आठ फीसदी क्यों?
चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 के आम चुनावों में 8,054 उम्मीदवारों में से सिर्फ 726 महिलाएं थीं। यानी उस साल सिर्फ नौ फीसदी टिकट ही महिलाओं को दिए गए। इनमें से करीब एक तिहाई महिला निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं। वर्ष 2014 में मैदान में उतरने वाले 8,251 उम्मीदवारों में महिला उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ 668 थी।
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार पहले और दूसरे चरण में लोकसभा की जिन 190 सीटों पर मतदान होना है उनमें से 58 यानी करीब एक तिहाई सीटों पर कोई महिला उम्मीदवार नहीं है। इन दोनों दौर के 2,831 उम्मीदवारों में सिर्फ 237 महिलाएं हैं। यानी आठ फीसदी से कुछ ज्यादा।
संसद में महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने वाली भाजपा ने 417 संसदीय सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है। इनमें 68 महिलाएं हैं। यानी पार्टी ने सिर्फ 16 फीसदी महिलाओं पर ही भरोसा जताया है। बीजेपी ने 2009 में 45, 2014 में 38 और 2019 में 55 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।
कांग्रेस ने अब तक 247 उम्मीदवारों की घोषणा की है। इसमें 35 उम्मीदवार यानी 14 फीसदी से कुछ ज्यादा महिलाएं हैं। वर्ष 2019 में कांग्रेस ने 54 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था। टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में जिन 42 उम्मीदवारों की घोषणा है उनमें 12 महिलाएं हैं।
बीते लोकसभा चुनाव में 542 सांसदों में से 78 महिलाएं थीं। इनमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 11-11 महिलाएं चुनाव जीती थीं।
भारत के अलावा बाकी दुनिया में कैसा है हाल : दूसरे देशों से तुलना करने पर तस्वीर ज्यादा साफ होती है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछली लोकसभा में महिला सांसदों की तादाद 14.4 फीसदी थी। जबकि मेक्सिको में यह तादाद 48।2, फ्रांस में 39।7, इटली में 35।7, यूके में 32 और जर्मनी में 30.9 फीसदी है। स्वीडन, नार्वे और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के राष्ट्रीय विधानमंडल में भी महिलाओं की भागीदारी 45 फीसदी से ज्यादा है। भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में यह तादाद 21 फीसदी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में भारी फर्क है। जब तक राजनीतिक पार्टियां अधिक से अधिक महिलाओं को टिकट नहीं देती, तब तक उनकी भागीदारी बढ़ाने की कल्पना तक नहीं की जा सकती। लेकिन टिकटों के बंटवारे के समय तमाम दल किसी न किसी बहाने महिलाओं को चुनाव लड़ने से दूर रखने का प्रयास करते रहे हैं। जब तक यह पुरुषवादी मानसिकता नहीं बदलती, महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बावजूद तस्वीर ज्यादा नहीं बदलेगी।