हिममानव या येति कोई अलग जीव नहीं हैं। हिमालय से जुटाए गए कई नमूनों की गहन डीएनए जांच करने के बाद वैज्ञानिकों ने येति का राज खोला है।
हड्डियों, दांतों, बाल, त्वचा और अन्य हिस्सों के ये नमूने दुनिया भर के कलेक्शनों और म्यूजियमों से लिये गये। कई स्तर की गहन जांच के बाद वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हिम मानव या येति कोई अलग जीव नहीं है। सारे नमूनों के डीएनए के तार भालू से ही जुड़े। जेनेटिक सीक्वेसिंग में पता चला कि ये नमूने कई भालुओं से मिलते जुलते हैं। एक नमूना कुत्ते का निकाला।
ज्यादातर अवशेष एशियाई काले भालू, तिब्बत के भूरे भालू और हिमालय के भूरे भालू के थे। शोध का नेतृत्व करने कर रही वैज्ञानिक शारलोटे लिंडक्विस्ट कहती हैं, "हमारे नतीजे मजबूती से दिखाते हैं कि येति जैविक रूप से स्थानीय भालू पर निर्भर है।" लिंडक्विस्ट का दावा है कि रॉयल सोसाइटी जर्नल "प्रोसिडिंग्स बी" में छपा यह शोध येति या हिममानव के बारे में अब तक की सबसे सटीक जानकारी है।
शोध के दौरान तिब्बत, नेपाल और भारत से जुटाये गये नमूनों का माइटोक्रॉन्ड्रियल डीएनए निकाला गया। इसी के आधार पर जेनेटिक सीक्वेसिंग की गयी। किस्सों और कहानियों के मुताबिक हिममानव या येति हिमालय में पाया जाने वाला एक विशाल मानव है। बंदर की तरह दिखता ये हिममानव दो पैरों पर चलता है। पर्वतारोहियों के कई ग्रुप भी पहाड़ों में हिममानव को देखने का दावा करते रहे हैं। उत्तर अमेरिका में भी बिगफुट नामक विशाल हिममानव का जिक्र किया जाता है।
वैज्ञानिकों को लगता है कि हिमालय के ऊंचे इलाके में रहने वाले भालू क्रमिक विकास के साथ बदले होंगे। ऊंचे इलाके में बेहद दुश्वार हालात में जीने के लिए उन्हें ऊर्जा बचाने की जरूरत पड़ी होगी। खाना खोजने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती होगी। दूर दूर तक नजर मारनी पड़ती होगी।
लिहाजा वो कभी कभार चार पैरों के बजाय दो पैरों पर खड़े हो जाते होंगे। लिंडक्विस्ट कहती हैं, "तिब्बती पठार के ऊंचे इलाके में घूमने वाले भूरे भालू और पश्चिमी हिमालय के पहाड़ों के भूरे भालू, अलग अलग झुंड के हैं। शायद अलगाव 6,50,000 साल पहले हुआ होगा, ग्लेशियरों के बनते समय।" और इसके बाद एक दूसरे के संपर्क में नहीं आये।