- कुलदीप कुमार (नई दिल्ली से) नौ नवम्बर को बर्लिन की दीवार को गिरे हुए बीस वर्ष हो जाएँगे। इस ऐतिहासिक घटना की बीसवीं वर्षगाँठ मनाने के लिए नई दिल्ली में जर्मन दूतावास ने पूरे सप्ताह भर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया है।
इस श्रृंखला की पहली कड़ी के रूप में मंगलवार को जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के यूरोपीय अध्ययन केंद्र में जर्मनी के उपराजदूत क्रिश्चियन-मैथियास श्लागा और संस्थान के डीन प्रोफेसर वाई. के.त्यागी ने एक प्रदर्शनी का उदघाटन किया जिसका विषय था, 'अवरोधों को तोड़ना: बर्लिन की दीवार के गिरने के बीस साल बाद'। इस प्रदर्शनी में बर्लिन की दीवार के गिरने और पूर्वी जर्मनी में कम्युनिस्ट शासन की समाप्ति की ऐतिहासिक प्रक्रिया को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।
'इसके कारण जर्मनी का एकीकरण हुआ और यूरोप का परिदृश्य ही बदल गया, 'ये शब्द हैं भारत में जर्मनी के उप-राजदूत क्रिश्चियन-मैथियास श्लागा के जो उन्होंने मंगलवार को डॉयचे वेले के इस संवाददाता से बात करते हुए बर्लिन की दीवार के गिरने की ऐतिहासिक घटना के बारे में कहे।
श्लागा ने कहा कि इसके बाद ही ऐसी स्थिति बनी कि हम खुशी के साथ सभी मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों का यूरोपीय संघ में स्वागत कर पाए ताकि एकीकृत यूरोप की तस्वीर मुकम्मल हो सके।
इस अवसर पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया गया। इसमें जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शशिकांत झा, प्रोफेसर उम्मु सलमा बावा, पोलैंड के उपराजदूत प्योत्र ओपलिंस्की, चेक गणराज्य के उपराजदूत यान क्र्यूटर और हंगरी के उपराजदूत नोर्बर्ट रेवाई-बेरे समेत अनेक विद्वानों और राजनयिकों ने भाग लिया।
संगोष्ठी के बाद प्योत्र ओपलिंस्की ने इस संवाददाता से बात करते हुए कहा कि उन्हें बर्लिन की दीवार की बीसवीं वर्षगाँठ मनाते हुए बहुत खुशी हो रही है।
ओपलिंस्की ने कहा कि असंभव संभव हो गया और हम फिर से यूरोपीय संघ के भीतर एक हो गए। प्रोफेसर शशिकांत झा ने भारत के परिप्रेक्ष्य से बर्लिन की दीवार गिरने की घटना को विश्लेषित करते हुए कहा कि इससे रूस और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों में कम्युनिस्ट शासन की समाप्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई। क्योंकि भारत के इन देशों के साथ बहुत घनिष्ठ राजनीतिक और आर्थिक संबंध थे, इसलिए एकबारगी उसे लगा कि वह एकदम अलग-थलग पड़ गया है।
चेक गणराज्य के उपराजदूत यान क्र्यूटर ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया कि जहाँ कम्युनिस्ट देशों में स्वतंत्रता नहीं थी, वहीं लोगों को शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के बारे में चिंतित नहीं होना पड़ता था। लेकिन अब स्थिति उलट गई है।
सप्ताह भर चलने वाले इस समारोह का समापन नौ नवम्बर को जर्मनी के पूर्व विदेशमंत्री योश्का फिशर के भाषण के साथ होगा।