मंगली दोष के परिहार

- प्रभु त्रिवेदी

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'मुहूर्त दीपक', 'मुहूर्त पारिजात' तथा अन्य मानक ग्रंथों में मंगली योग या दोष के कुछ आत्म कुंडलीगत तथा कुछ पर कुंडलीगत परिहार बताए हैं। यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्ठम व द्वादश भावों में कहीं भी मंगल हो और अन्य ग्रहों की स्थिति, दृष्टि या युति निम्न प्रकार हो, तो कुजदोष स्वतः ही प्रभावहीन हो जाता है :-

* यदि मंगल ग्रह वाले भाव का स्वामी बली हो, उसी भाव में बैठा हो या दृष्टि रखता हो, साथ ही सप्तमेश या शुक्र अशुभ भावों (6/8/12) में न हो।

* यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र त्रिकोण में हो।

* यदि गुरु या शुक्र बलवान, उच्च के होकर सप्तम में हो तथा मंगल निर्बल या नीच राशिगत हो।

* मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ में, कर्क या मकर का मंगल सप्तम में, मीन का मंगल अष्टम में तथा मेष या कर्क का मंगल द्वादश भाव में हो।

* यदि मंगल स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में स्थित हो।

* यदि वर-कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में मंगल दोष हो तथा परकुंडली में उन्हीं पाँच में से किसी भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो। कहा गया है -

शनि भौमोअथवा कश्चित्‌ पापो वा तादृशो भवेत्‌।
तेष्वेव भवनेष्वेव भौम-दोषः विनाशकृत्‌॥

इनके अतिरिक्त भी कई योग ऐसे होते हैं, जो कुजदोष का परिहार करते हैं। अतः मंगल के नाम पर मांगलिक अवसरों को नहीं खोना चाहिए।

सौभाग्य की सूचिका भी है मंगली कन्या?
कन्या की जन्मकुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादशभाव में मंगल होने के बाद भी प्रथम (लग्न, त्रिकोण), चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम तथा दशमभाव में बलवान गुरु की स्थिति कन्या को मंगली होते हुए भी सौभाग्यशालिनी व सुयोग्यभार्या तथा गुणवान व संतानवान बनाती है।