(2) शनि के संदर्भ में मान्यता है कि जिस स्थान पर बैठता है उसकी वृद्धि करता है। वह जहां दृष्टि डालता है उस स्थान को बिगाड़ता है। शनि के कुंडली में कारक होने पर वह जिस स्थान पर बैठता है उस स्थान की भी वृद्धि करता है व जिस स्थान को देखता है उस पर भी अपना शुभ प्रभाव छोड़ता है। अत: मान्यता के संदर्भ में हमेशा एक-सा दृष्टिकोण न अपनाएं।
(4) मंगल उत्तेजना एवं आनंद प्राप्त करने हेतु उकसाने वाला ग्रह है व इसकी प्रवृत्ति लड़ाकू है। मंगल दोष का विचार मंगल ग्रह की इन्हीं प्रवृत्तियों की वजह से किया जाता है, क्योंकि अधिक उत्तेजना एवं आनंद प्राप्त करने की इच्छा गृहस्थ जीवन के लिए घातक हो सकती है।