मन कितना कच्चा हो जाता है सावन में। बूँदों की अठखेलियाँ, पकौड़ों की भीनी खुशबू और अंतर में उमड़ती.... ना यादें नहीं कविता। वैसे हर कविता एक याद होती है और हर याद एक कविता। मगर मैं क्यों कहूँ अपने मुँह से कि मुझे किसी की याद आती है। मुझे तो ऐसे झमाझम मौसम में कविता उमड़ती है। गीत थिरकता है। रंगों में सुगंध और सुगंध में रंग दिखाई पड़ता है।
मुझे गिरिजा कुमार माथुर की कविताओं के टुकड़े याद आते हैं।
1. जो कुछ पुराना है मोहक तो लगता है टूटने का दर्द मगर सहना ही पड़ता है बहुत कुछ टूटता है तब नया बनता है
2. अर्थ हैं जितने न उतने शब्द हैं बहुत मीठी है कहानी अनसुनी ठीक कर लो अलक माथे पर पड़ी ठीक से आती नहीं है चाँदनी
3. तुम्हारे आते ही मेरे कमरे का रंग गोरा हो जाता है हर आइने का चेहरा प्यारा हो जाता है तुम्हारे बदन की रोशनी मेरे रोओं से होकर भीतर आ जाती है।
4. भूलना फिर फिर पड़ेगा जिंदगी भर याद कर कर यह वही पथ है जहाँ हम मिट गए तुमसे बिछुड़कर
और एक गहरी कविता का अंश
5. किशमिसी ऊन की बाँहदार याद में लोकचित्र के गहरे रंग सा एक काँटेदार उष्म क्षण, लंबा हो, अटका है।
उफ ये कविताएँ फिर यादें क्यों बन जाती हैं?
6. तू धुआँ बनकर रहेगा और कब तक एक क्षण जल जा भभक कर।
गिरिजाकुमार माथुर की इन काव्य पंक्तियों के साथ स्वागत उस सावन का जो आपके भीतर कविता न सही पर किसी की याद बनकर उमड़ रहा है।