झोलाछाप डॉक्टर बनने की कला

जैसा कि सभी जानते हैं और यह एक अकाट्य सत्य भी है कि बीमारी या तो पूर्वजन्म में किए गए पापों के कारण होती है या फिर ज्योतिषियों द्वारा प्रचारित ग्रहों की कुदृष्टि के कारण। आपकी कुंडली में यदि शनि की दशा बहुत बुरे वर्ष में हो, चंद्रमा छठे ग्रह में प्रवेश करना चाहता हो और केतु की अवस्था भी दुर्बल हो तो समझिए आपकी खटिया खड़ी होने का पूरा कार्यक्रम ऊपर से ही निर्धारित कर दिया गया है अर्थात आप बीमार पड़ने से बच ही नहीं सकते। फिर भले ही आप योग और एरोबिक्स आदि का खटराग करते रहिए।

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बीमारी में डॉक्टर के पास जाने की परंपरा है, लेकिन डॉक्टर केवल निमित्त है। यह निमित्त चाहे झोलाछाप हो या डिग्रीधारी, निमित्त केवल निमित्त होता है। बहरहाल, बीमारी और डॉक्टर के संबंध जन्म-जन्मांतर के होते हैं। बीमार पड़ने पर आदमी अस्पताल जरूर जाता है। बड़ा आदमी बड़े अस्पताल जाता है, जबकि छोटा आदमी किसी भी खैराती अस्पताल में इलाज करवाकर स्वस्थ हो जाता है। ज्यादातर लोग बिना दवा के ठीक होते हैं और श्रेय डॉक्टर को मिलता है। जिन मरीजों को ठीक नहीं होना होता वे किसी भी डॉक्टर से ठीक नहीं होते और सीधे मृत्यु को प्राप्त होते हैं जिसका श्रेय भगवान को दिया जाता है।

आजकल डिग्रीधारी डॉक्टर बनने में बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। अव्वल तो डोनेशन और कॉलेज की फीस ही इतनी तगड़ी होती है कि सुनकर आदमी को गश्त और मिर्गी इत्यादि आने लगती है और जैसे-तैसे जुगाड़ करके फीस भर भी दी तो पाँच साल तक डॉक्टर बनते-बनते आदमी एक ऐसा डॉक्टर बनकर बाहर निकलता है जो डॉक्टर कम मरीज ज्यादा रहता है। इन फजीहतों से बचने के लिए खाकसार ने झोलाछाप डॉक्टर बनने के लिए कुछ नुस्खे ईजाद किए हैं जिन्हें अमल में लाकर आप आसानी से डॉक्टर बन सकते हैं। मैं पहले ही निवेदन कर दूं कि मेरी कोई फीस-वीस नहीं है सिर्फ इतना ध्यान रखें कि आपकी डॉक्टरी यदि चल निकले तो बजरंगबली के मंदिर में एक नारियल जरूर चढ़ाएँ। उससे आपका और आपके मरीजों का एक साथ भला होगा।

झोलाछाप डॉक्टर बनने के लिए सबसे जरूरी चीज झोला है। एक ऐसा झोला जो खादी या टाट का हो और जिसे आसानी से कंधे पर लटकाया जा सके तथा जरूरत पड़ने पर लटकाकर दूर तक भागा जा सके। झोले के बाबत यह सावधानी रखना बहुत आवश्यक है कि वह चमड़े अथवा रेग्जीन का कतई न हो।

लेदर का महंगा बैग लटकाकर आप बहुराष्ट्रीय कंपनी के एक्जीक्यूटिव भले ही बन सकते हों, झोला छाप डॉक्टर हर्गिज नहीं बन सकते। यहाँ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि झोला खाली न हो, उसमें कुछ दवाइयां इत्यादि भी हो। प्रारंभिक तौर पर आप चाहे तो उल्टी-दस्त, खांसी, सर्दी और पेटदर्द आदि की दवाएं रख सकते हैं।

ये बीमारियां आमतौर से सभी को होती हैं और डॉक्टर की मदद के बिना ही ठीक हो जाती हैं। दवाएं थोड़ी मात्रा में रखें, शुरू में ज्यादा पैसे बिगाड़ना ठीक नहीं है। दुर्भाग्य से यदि दुकान ठीक-ठाक नहीं चली तो व्यर्थ नुकसान उठाना पड़ सकता है। झोले में कुछ इंजेक्शन भी रख लें। डॉक्टरी के दौरान प्रायः ऐसे मरीजों से भी पाला पड़ सकता है जो बिना इंजेक्शन के ठीक नहीं होते। गांवों, कस्बों में तो मरीज खुद ही कहते हैं 'डॉक्टर साब इंजेक्शन लगा दो' मेरा बुखार इंजेक्शन के बिन नहीं जाएगा।

दवाओं से भरे झोले अथवा असबाब को उठाकर आप सीधे उस दिशा कि तरफ निकल जाइए जिधर गांव है। शहर से बाहर आप जिस दिशा में प्रस्थान करेंगे आपको गांव ही गांव दिखाई देंगे। जैसा कि सभी जानते हैं कि भारतवर्ष जो है वह गांवों का देश है और बतौर झोलाछाप डॉक्टर आपको यह भी समझना चाहिए कि, गांव में और कुछ भले ही न मिले मरीज बहुतायत से मिल जाएंगे।

दमा, मिर्गी, साइटिका से लेकर गुप्तरोग और नामर्दी तक जितनी बीमारियां होती हैं वह सब गांवों को ही होती हैं। गांव के मरीज इन बीमारियों को जीवनभर झेलते हैं, लेकिन शहर आकर इलाज कराना कतई पसंद नहीं करते। शहरी डॉक्टरों का अभिजात्य, कांच से अभिमंडित साफ-सुथरा और भव्य क्लीनिक ग्रामीण मरीजों को भयभीत करता है। वह गांव में रहकर बीमारी भोग लेता है पर शहरी अस्पताल की आतंकित कर देने वाली स्वच्छता और ऊंचे डॉक्टर का शाश्वत मौन उसे शहर आने से रोकता है। ऐसे मरीजों के लिए झोलाछाप डॉक्टर देवदूत होता है।

झोलाछाप डॉक्टर बनने के दौरान शुरू में दवाओं के चयन आदि में कुछ परेशानियां आती हैं। इनसे घबराने की जरूरत नहीं है। ज्यादातर तो दवा की बोतलों पर उसका नाम आदि लिखा रहता है। उसे पढ़ने का अभ्यास करते रहिए या फिर बेहतर है कि कुछ दिन के लिए किसी छोटे-मोटे अस्पताल में वार्ड ब्वॉय या कंपाउंडर का काम सीख लिया जाए। यह काम आपके आत्मविश्वास को बढ़ाएगा। जैसा कि सभी जानते हैं कि जीवन में आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। कई डॉक्टर ऐसे भी देखने में आए हैं जो सिर्फ आत्मविश्वास के बल पर बड़े-बड़े ऑपरेशन कर डालते हैं।

ऑपरेशन के दौरान चूंकि उनके मुंह पर कपड़ा बंधा रहता है इसलिए उन्हें पहचानना मुश्किल होता है। घाव पर पट्टी बाँधने या इंजेक्शन लगाने जैसे साधारण काम कंपाउंडरी से सीखे जा सकते हैं। अस्पताल में कंपाउंडरी करने का मौका न मिले तो किसी मेडिकल स्टोर्स पर दवा बेचने का काम भी किया जा सकता है, इससे अंग्रेजी दवाओं के नाम याद हो जाएँगे। आपमें यदि प्रतिभा है और आप श्रम से जी नहीं चुराते तो कंपाउंडरी और दवा बेचना, दोनों काम एक साथ कर सकते हैं। यह आपको एक संपूर्ण झोलाछाप डॉक्टर बनाने में बहुत मदद करेगा।

मरीजों की एक सर्वे रिपोर्ट से पता चला है कि कुछ मरीज सिर्फ अंग्रेजी दवाओं से ही ठीक होते हैं। जब तक वे तीन-चार रंग की बहुरंगी कैप्सूल न खा लें, उनकी बीमारी जाती ही नहीं जबकि कतिपय मरीज ऐसे होते हैं जिन्हें होम्योपैथी से बेहतर और कोई गोली लगती ही नहीं। कुछ तो इतने बदमाश होते हैं कि उन्हें आयुर्वेदिक काढ़ा, पुड़ियाएं और भस्म ही ठीक कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में एक कुशल झोलाछाप डॉक्टर का यह फर्ज होता है कि वह हर पैथी को अपने मरीज पर आजमाएं तथा इतने लंबे समय तक आजमाएँ कि मरीज अथवा बीमारी दोनों में से कोई एक अपने आप पलायन कर जाए।

जो भी मरीज आपके पास आए उसे ग्लूकोज की ड्रिप जरूर चढ़ाइए। ड्रिप चढ़ाने से एक ऐसा वातावरण उपस्थित होता है कि अस्पताल का पूरा कमरा एकाएक गंभीर हो जाता है। मरीज भी ज्यादा चिल्ला-चोट नहीं करता तथा स्टैंड पर लटकी बोतल को घंटों टकटकी लगाए देखता रहता है।

ड्रिप की रफ्तार इतनी धीमी रखें कि एक बूंद टपकने में लगभग आधा घंटा लगे। इससे मरीज को तथा उसके घर वालों को लगेगा कि दवा बड़ी मुश्किल से शरीर में जा रही है। देखने में यह भी आया है कि तीन-चार घंटे यदि ड्रिप चलती रहे तो अनेक मरीज केवल सुस्त पड़े रहने और बोरियत आदि की वजह से ठीक हो जाते हैं और श्रेय डॉक्टर को मिल जाता है। एक झोलाछाप डॉक्टर को यह श्रेय अवश्य लेना चाहिए।

गंभीर रूप से घायल और बेहोश मरीजों के इलाज का प्रयास न करें। उन्हें देखते ही शहर के बड़े अस्पताल में भिजवाएं। अस्पताल की भाषा में इसे रैफर करना कहते हैं। लेकिन जो मरीज आपके इलाज के दौरान गंभीरता को प्राप्त हुए हैं अथवा बेहोश हो चुके हैं, उन पर दुबारा हाथ न आजमाएं। उन्हें चुपचाप शहर के अस्पताल भेजकर अपना क्लीनिक बंद करें तथा अज्ञातवास पर चले जाएं और भगवान से प्रार्थना करते रहें कि वह होश में आ जाए।

आपके द्वारा बिगाड़ा गया 'केस' यदि ज्यादा बिगड़कर इस नश्वर संसार से विदा हो जाए तो कृपया अपने क्लीनिक पर दुबारा न जाएं, क्योंकि वहां जाने पर आपकी जो दुर्गति होगी, वह असहनीय होगी। ऐसी स्थिति में किसी अन्य गांव में जाकर अस्पताल खोलें। इस देश में गांवों की कोई कमी नहीं हैं।

एक झोलाछाप डॉक्टर के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि अपने अस्पताल के कोने में एक छोटा-मोटा बंकर बनाकर रखें। मौका-ए-वारदात से गायब होने के लिए यह बंकर बहुत जरूरी है। समय-समय पर सरकार झोलाछाप डॉक्टरों के क्लीनिक पर छापा डालने की मुहिम चलाती रहती है।

यह मुहिम एक तरह की नौटंकी होती है जिससे न सरकार को कुछ हासिल होता और न ही झोलाछाप डॉक्टरों का कुछ बिगड़ता है। यह एक सरकारी रूटीन मात्र है। छापे के दौरान एक सफल झोलाछाप डॉक्टर को अपने अस्पताल के बंकर में छुप जाना चाहिए। बंकर न होने की स्थिति में झोला उठाकर बगटूट भागा भी जा सकता है। एक अच्छे झोलाछाप डॉक्टर को फुरसत के समय झोला उठाकर दौड़ने का अभ्यास करते रहना चाहिए।

यदि बतौर झोलाछाप डॉक्टर ऐसे गांवों में क्लीनिक डाले बैठे हैं जहां थाना वगैरह है, तब आपको यह सतर्कता रखनी होगी कि सुबह-शाम थानेदार साब से नमस्ते करते रहें तथा गाहे-बगाहे थानेदार की पत्नी को विटामिन की गोली और सीरप भेंट करते रहें। ऐसा करने से एक ओर तो थानेदार की पत्नी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा और दूसरी ओर छापे आदि के दौरान आपका अस्पताल और आप स्वयं भी क्षतिग्रस्त होने से बचे रहेंगे। झोलाछाप बनने के नुस्खों के लिए यह पहली किस्त है। दूसरी शीघ्र जारी होगी। आमीन!

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