दिल्ली के भीतर ही एक दिल्ली और है। यहाँ सामान्यजन नहीं, वरन असामान्य व्यवस्थाएँ रहती हैं। ‘अंग्रेजों के जमाने के’ वास्तुशिल्पी ल्यूटन द्वारा रचित नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, संसद भवन इत्यादि आज खंडहर हो चुकी भारतीयता को मुँह चिढ़ाते हुए सीना ताने खड़े हैं। सत्य तो यह है कि अंग्रेजी व्यवस्थाओं के प्रतीक ये भव्य प्रासाद स्वयं नहीं खड़े हुए, अपितु खड़े किए गए हैं। इनकी आधारशिलाओं को मजबूती प्रदान करती हैं दीमक की बाँबियां और विषैले सर्पों के बिल। ये दीमक और सर्प विषैली व्यवस्थाओं को तो सुदृढ़ बनाए रखती हैं, पर देश को खोखला कर देती हैं। विडंबना देखिए, जिन सिद्धांतों, नीतियों एवं व्यवस्थाओं के विरुद्ध सेनानियों ने विप्लव किया, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमने उन्हीं व्यवस्थाओं को निर्लज्जता से अंगीकृत किया है और उसके दुष्परिणाम सभी के समक्ष हैं।