व्यंग्य : रावण से वार्तालाप

मैं स्वप्नदर्शी हूं इसलिए मैं रोज सपने देखता हूं। मेरे सपने में रोज-ब-रोज कोई न कोई सुंदर नवयुवती दस्तक देती है। मेरी रात अच्छे से कट जाती है। वैसे भी आज का नवयुवक बेरोजगारी में सपनों पर ही तो जिंदा है। कभी-कभी डर लगता है कि कई सरकार सपने देखने पर भी टैक्स न लगा दे।
 
खैर, जब बात सपनों की चल ही पड़ी है तो एक ताजा वाकया सुनाता हूं। मुलाहिजा गौर फरमाइएगा। कल रात को जैसे ही मैं सोया तो सोने के बाद जैसे ही मुझे सपना आया तो किसी सुंदर नवयुवती की जगह सपने में रावण को देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया।
 
रावण मुझे देखकर जोर-जोर से हंसने लगा। एक लंबी डरावनी ठहाके वाली हंसी के बाद रावण बोला- कैसे हो, वत्स?
 
मैंने कहा- आई एम फाइन एंड यू?
 
रावण डांटते हुए बोला- अंग्रेजी नहीं, हिन्दी में प्रत्युत्तर दो। मेरी अंग्रेजी थोड़ी वीक है लेकिन ट्यूशन चालू है।
 
मैंने कहा- मैं ठीक हूं, आप बताइए।
 
रावण बोला- मेरा हाजमा खराब है।
 
मैंने कहा- चूर्ण दूं या ईनो लेना पसंद करेंगे। 6 सेकंड में छुट्टी।
 
रावण आक्रोशवश बोला- मेरे हाजमे का इलाज चूर्ण नहीं है, वत्स। मेरे हाजमे का इलाज केवल तुम ही है। तुम लेखक हो ना?
 
मैंने डरे-सहमे हुए कहा- बुरा ही सही, लेकिन लेखक तो हूं। बोलिए, मैं आपका क्या इलाज कर सकता हूं?
 
रावण बोला- तुम समझाओ उन लोगों को जो मुझे हर साल जलाते हैं। जलाने के बाद जश्न मनाते हैं। क्या वे लोग मुझे जलाने लायक हैं? मुझे जलाने का अधिकार या वध करने का हक केवल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को है। ऐसे-ऐसे लोग मुझे जला रहे है, जो पुरुषोत्तम तो छोड़ो, ठीक से पुरुष भी कहलाने लायक नहीं है।
 
रावण आगे बोला- यदि मेरे एक अवगुण 'अहंकार' के कारण मुझे इतनी बड़ी सजा मिली तो आज के ये नेता कोरे-कोरे कैसे घूम रहे हैं? मैंने तो केवल सीता मैया का अपहरण किया था और अपहरण के बाद छुआ तक नहीं। मुझे जलाने वाले अपहरण से कई आगे पहुंच चुके हैं। क्या उनका वध नहीं होना चाहिए?
 
रावण आगे बोला- तुम लोग हर साल कागज का रावण बनाकर फूंकते हो लेकिन मन में बैठा मुझसे भी बड़ा रावण तुम्हारा मरता नहीं है। तुम लोग कितना छल करते हो, पाप करते हो, दंभ भरते हो। इतना सब तो मेरे अंदर भी नहीं था। आज मुझे तुम जैसे नीच प्राणियों को देखकर खुद पर गर्व हो रहा है। तुम उन्हें समझाओ, वत्स। मुझे हर साल नहीं जलाएं, पहले खुद का चरित्र राम जैसा बनाएं।
 
इतना कहते ही रावण उड़न-छू हो गया। रावण के जाने के बाद शांतिपूर्वक मैंने सोचा तो लगा कि रावण बात तो बड़ी सही व गहरी कह गया। हम हर साल रावणदहन के नाम पर केवल रस्म-अदायगी ही तो करते हैं। हमारे देश में साक्षात सीता जैसी नारियां आज भी सुरक्षित नहीं हैं। रावण के 10 से ज्यादा सिर हो चुके हैं। हर सरकारी क्षेत्र में एक रावण मौजूद है जिसे रिश्वत का भोग लगाए बिना काम नहीं होता। कहने को राम का देश है, पर रावण ही रावण नजर आते हैं। रावण ने 'वत्स' कहकर मुझे भी अपना वंशज बना ही लिया इसलिए रावण का वंशज होते हुए इन इंसानों को समझाना मेरे वश की बात नहीं है। सॉरी, रावणजी!

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