लोहड़ी पर्व (Lohri Parv) की संध्या पर लकड़ियां एकत्रित करके जलाई जाती हैं तथा तिल (Til) से अग्नि (Agni) का पारंपरिक पूजन किया जाता है। इस त्योहार के बच्चों-युवाओं की टोलियां घर-घर से लकड़ियां मांग कर इकट्ठा करती है तथा लोहड़ी के गीत (Lohri ke Geet) गाते हुए लोहड़ी मांगते हैं। इन गीतों में दूल्ला भट्टी का यह गीत विशेष कर गाया जाता है। साथ ही लोग गुड़, रेवड़ी, मूंगफली, तिल, पैसे आदि भी लोहड़ी के रूप में देते हैं। यहां पढ़ें पारंपरिक गीत-
अग्गे आप्पे रब्ब स्याणा स्याणा
यारो अग्ग सेक के जाणा जाणा
लोहड़ी दियां सबनां नूं बधाइयां...।
- 'दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी',
- 'दे माई पाथी तेरा पुत्त चड़ेगा हाथी'
रात में अग्नि में तिल डालते हुए-
'ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए'