लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को करना होगा इन 10 दिग्गजों का सामना...

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विपक्ष के 10 दिग्गजों से किला लड़ाना होगा। विपक्ष ने इस बार मोदी को घेरने के लिए एक ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया है जिससे निकलने के लिए उन्हें एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। यूपी में उन्हें घेरने के लिए मायावती, अखिलेश हैं तो बिहार में तेजस्वी और उपेन्द्र कुशवाहा ने मोर्चे की कमान संभाल ली है। इस काम में कई पुराने दिग्गज भाजपा नेता भी विपक्ष का साथ दे रहे हैं। आइए डालते हैं उन 10 नेताओं पर एक नजर जो मोदी की मुश्‍किलें बढ़ा सकते हैं...
 
राहुल गांधी : कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इस चुनाव में पीएम मोदी के सामने मजबूती से डटे हुए हैं। हाल ही तीन राज्यों में मिली जीत से उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा हुआ है। राहुल मोदी को उनकी ही शैली में जवाब दे रहे हैं। राफेल घोटाले पर मोदी को घेरने में जुटे राहुल की योजना हर उस जगह प्रचार करने की है, जहां प्रधानमंत्री भाजपा के लिए सभा लेंगे। इसके साथ ही तीन हिन्दी भाषी राज्यों में- कांग्रेस के कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल भी चुनौती पेश करने में पीछे नहीं रहेंगे। 
 
ममता बनर्जी : भारतीय राजनीति में दीदी के नाम से लोकप्रिय तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने न सिर्फ पश्चिम बंगाल में बल्कि पूरे देश में मोदी और भाजपा को घेरने की रणनीति तैयार कर ली है। वैसे तो वह अटलजी के जमाने में भाजपा की दोस्त रही हैं लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी भाजपा से पटरी नहीं बैठ रही है। कोलकाता में 22 दलों को इकट्‍ठा कर उन्होंने संकेत दे दिया है कि वे लोकसभा चुनाव में मोदी को चैन की सांस नहीं लेने देंगी। 
 
मायावती : बसपा प्रमुख और बहनजी के नाम से जानी जाने वाली मायावती भी भाजपा की पुरानी सहयोगी रही हैं। उत्तरप्रदेश में वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार भी चला चुकी है। हाल ही में उन्होंने अखिलेश यादव के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया है जिसने यूपी में मोदी और भाजपा की नाक में दम कर दिया है। कुछ सर्वेक्षणों की मानें तो यूपी में भाजपा 72 के मुकाबले 40 सीटों के आसपास सिमट सकती है। 
 
अखिलेश यादव : सपा नेता अखिलेश यादव भी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली हार से बौखलाए हुए हैं। वह इस हार का बदला लोकसभा चुनाव में लेना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने मायावती की बसपा से हाथ मिलाया है। हाल ही में उन्होंने अजीत सिंह की रालोद को भी महागठबंधन में शामिल करने में सफलता प्राप्त की है। इस महागठबंधन ने मोदी और भाजपा की पेशानी पर बल ला दिया है। गोरखपुर, फुलपुर और कैराना में यह गठजोड़ भाजपा को धूल चटा चुका है। 
 
शरद पवार : महाराष्‍ट्र में राकांपा नेता शरद पवार भी भाजपा को चुनौती देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। यह दिग्गज नेता भले ही राजनीति के मैदान में पहले की तरह सक्रिय नहीं दिखाई दे रहा हो पर राज्य की राजनीति में उनका दबदबा अभी भी कायम है। भाजपा और शिवसेना के अलग-अलग लड़ने की स्थिति में वह कांग्रेस के साथ मिलकर मोदी के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं। 
 
उद्धव ठाकरे : भाजपा के सबसे पुराने राजनीतिक साथियों में शुमार शिवसेना भी इस बार उनसे कुछ खफा है। शिवसेना नेता उद्धव ने भले ही राजग का साथ नहीं छोड़ा है लेकिन वह प्रधानमंत्री मोदी पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उद्धव लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ लड़ेंगे या दोनों दलों को अकेले-अकेले चुनाव मैदान में उतरना पड़ेगा। दोनों ही स्थितियों में नुकसान तो भाजपा का ही होगा। 
 
तेजस्वी यादव : राजद की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव ने बिहार में मोदी और भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है। नीतीश कुमार के फिर भाजपा के  साथ चले जाने से नाराज लालू पुत्र दोनों ही दलों को मजबूती से टक्कर दे रहे हैं। यहां उन्हें रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा के साथ ही भाजपा के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा का भी साथ मिला है।
 
चंद्रबाबू नायडू : अटलजी के समय राजग की कमान संभालने वाले टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू भी इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खासे नाराज हैं। आंध्र को  विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने से खफा इस नेता ने न सिर्फ भाजपा का साथ छोड़ दिया बल्कि आंध्रप्रदेश के चुनावी मैदान में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी है। 
 
कुमार स्वामी : कर्नाटक को भाजपा लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम राज्य मान रही है। यहां राजनीतिक उठापटक चरम पर है। दावा किया जा रहा है कि भाजपा ने कुमार स्वामी की सरकार को गिराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। ऐसे में वह भी मुस्तैदी के साथ भाजपा को हर मोर्चे पर कड़ी टक्कर देने को तैयार है। इस काम में कांग्रेस भी उनका साथ दे रही है। 
 
नवीन पटनायक : उड़ीसा में बीजद नेता नवीन पटनायक ने फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वे न तो महागठबंधन के साथ हैं और न ही भाजपा के साथ। ऐसे में अगला लोकसभा चुनाव वह अकेले दम ही लड़ेंगे। अगले साल ओड़िशा में भी चुनाव होने हैं। पटनायक राजनीति के मैदान में पुराने खिलाड़ी हैं। ऐसे में अगर भाजपा बहुमत से कुछ दूर रह जाती है तो वह मोलभाव करने में पीछे नहीं रहेंगे।  

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