जितिन प्रसाद ने भले ही दबाव की राजनीति कर कांग्रेस हाईकमान को फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया हो, पर धौरहरा के लोग उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स को अच्छी तरह समझ चुके है। आज भी हालात वहीं है, जितिन प्रसाद चंद चाटुकारो और मठाधीशों का साथ नहीं छोड़ पा रहें है, उन्हें हकीकत नहीं दिखाई दे रहीं है, और शायद वह देखना भी नहीं चाहते। इन हालातो में जितिन के लिये दिल्ली की राह आसान नहीं है।