धौरहरा में 'मोदी मैजिक' और मलखान कांग्रेसी दिग्गज की राह में बन सकते हैं रोड़ा

रविवार, 14 अप्रैल 2019 (12:03 IST)
सीतापुर। लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश की वीवीआईपी सीट में शुमार धौरहरा में कांग्रेस के दिग्गज जितिन प्रसाद की राह में 'मोदी मैजिक' के साथ ही बीहड़ों से निकलकर राजनीति में किस्मत आजमाने वाले पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह रोड़ा खड़ा कर सकते हैं।
 
मौजूदा चुनाव में विपक्षी दल भले ही इस बार 'मोदी लहर' की संभावना को खारिज कर रहे हों, मगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नरेन्द्र मोदी के दम पर इस बार भी चुनावी नैया पार लगाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। यही कारण है कि भाजपा की मौजूदा सांसद के विरोध के बावजूद कांग्रेस के दिग्गज नेता को चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है।
 
भाजपा ने निवर्तमान सांसद रेखा वर्मा पर फिर दांव लगाया है, जबकि कांग्रेस ने पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद को उनकी इच्छा के अनुरूप प्रत्याशी तो घोषित कर दिया, लेकिन वे मतदाताओं पर अपना जादू नहीं चला पा रहे हैं। वहीं भाजपा प्रत्याशी का क्षेत्र में भारी विरोध तो है, लेकिन केंद्र में पुन: मोदी सरकार बनाने के लिए लोग भाजपा का समर्थन करने का मन बना रहे हैं।
 
महाराष्ट्र के कारोबारी अरशद इलियास सिद्दीकी बसपा का झंडा थामकर चुनाव मैदान में हैं, लेकिन उन्हें गठबंधन के दूसरे प्रमुख घटक सपा का पूरी तरह से साथ नहीं मिल पा रहा है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह इस बार चुनाव में भारी उलटफेर कर सकते हैं।
 
मलखान के चुनाव मैदान में आने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस प्रत्याशी को हो सकता है, वहीं भाजपा और गठबंधन के वोट भी मलखान के पक्ष में जा सकते हैं।

वर्ष 2009 में नवसृजित धौरहरा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस ने शाहजहाँपुर निवासी जितिन प्रसाद को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी जितिन प्रसाद ने धौरहरा के लोगो को विकास के सुनहरे सब्जबाग दिखा कर उनके वोट हासिल कर लिये और रिकार्ड मतो से चुनाव जीत गए। केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने उन्हें इस्पात राज्यमंत्री के ओहदे से नवाजा।
 
क्षेत्रीय लोगों की शिकायत है कि जितिन अपने कार्यकाल के दौरान चाटुकारों का शिकार हो गए जिसके चलते उन्होंने आम लोगों के सुख दुःख से उन्होंने कोई वास्ता नहीं रखा। मतदाता और कार्यकर्ता जितिन के लिए बेगाने हो गए। जितिन प्रसाद की बेरूखी से आहत उनके समर्थक भी दूरी बनाने लगे, यहीं वजह रहीं कि 2014 के संसदीय चुनाव में मतदाताओं ने जितिन प्रसाद जैसे नेता को चौथे पायदान पर ढकेल दिया। जितिन को इस बात का आभास तक नहीं हुआ कि जिन मतदाताओं ने उन्हें रिकॉर्ड मतो से जिताया वहीं मतदाता उन्हें अगले चुनाव में उखाड़ फेंकेगे।
 
वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रेखा वर्मा को राजनीतिक प्रेक्षक बेहद हल्के में ले रहें थे, पर उन्होंने जितिन सहित अन्य प्रत्याशियों को काफी पीछे छोड़ दिया। सवाल यह उठता है कि पांच वर्ष सांसद रहते हुए जितिन प्रसाद ने क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण विकास तो कराये, बावजूद इसके क्या कारण रहा कि धौरहरा के मतदाताओं ने उनसे मुंह फेर लिया।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जनता की भावनाओं से बेखबर जितिन को चाटुकारो ने जो कुछ बताया, उसे सही मान बैठे, जिसका तगड़ा खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। वर्ष 2014 के चुनाव में शर्मनाक पराजय के तिलमिलाये जितिन प्रसाद धौरहरा से पलायन कर गए। 2017 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने जितिन प्रसाद को शाहजहांपुर की तिलहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया, पर वहां के मतदाताओं ने भी उन्हें बुरी तरह से नकार दिया।
 
घर में भी हार का स्वाद चखने वाले जितिन प्रसाद ने विधान सभा चुनाव के बाद धौरहरा में पुनः सक्रियता बढ़ा दी। विलुप्त होते अपने राजनीतिक कैरियर को बचाने के लिए जितिन प्रसाद एडी-चोटी का जोर लगाये हुए है। वर्ष 2009 में धौरहरा के प्रभावशाली और वर्चस्वधारी लोग जो जितिन के साथ साये की तरह दिखाई देते थे, वह आज उनसे दूर हो चुके है। उनके तमाम समर्थकों ने भाजपा, बसपा-सपा का दामन थाम लिया है।
 
जितिन प्रसाद ने भले ही दबाव की राजनीति कर कांग्रेस हाईकमान को फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया हो, पर धौरहरा के लोग उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स को अच्छी तरह समझ चुके है। आज भी हालात वहीं है, जितिन प्रसाद चंद चाटुकारो और मठाधीशों का साथ नहीं छोड़ पा रहें है, उन्हें हकीकत नहीं दिखाई दे रहीं है, और शायद वह देखना भी नहीं चाहते। इन हालातो में जितिन के लिये दिल्ली की राह आसान नहीं है।
 
भाजपा की रेखा वर्मा का भी क्षेत्र में व्यापक विरोध है, जगह-जगह उन्हें मतदाताओं की खरी खोटी सुननी पड़ रहीं है, पर मोदी से लगाव के कारण रेखा वर्मा चुनाव में न सिर्फ टक्कर देती दिख रहीं है, बल्कि मतदाता यहां तक कहने लगे है कि ‘रेखा की खैर नहीं, पर मोदी से बैर नहीं’। केन्द्र में मजबूत और स्थाई सरकार बनाने के नाम पर लोग भाजपा की ओर खिंचते दिख रहें है।
 
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया से टिकट लेकर मैदान में उतरे पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह भी सबसे ज्यादा नुकसान जितिन प्रसाद का ही कर सकते है। अर्कवंशी समाज वर्ष 2009 के चुनाव में पूरी तरह से जितिन के साथ था। वर्ष 2014 मे भले ही अर्कवंशियों ने भाजपा का साथ दिया हो, पर बड़ी संख्या में यह समाज जितिन से जुड़ा रहा, इस बार अर्कवंशी समाज को मलखान के रूप में अपना स्वजातीय मजबूत प्रत्याशी मिल गया है। (वार्ता)

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