पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी के दिलीप सिंह भूरिया ने अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को शिकस्त देकर यह सीट भाजपा की झोली में डाली। अगले ही साल सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के कारण यहां उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने जीत हासिल करते हुए ये सीट कांग्रेस के नाम कर ली।
यह सीट पहले झाबुआ नाम से जानी जाती थी लेकिन परिसीमन के बाद इसका नाम रतलाम-झाबुआ हो गया। कांग्रेस के कद्दावर आदिवासी नेता दिलीप सिंह भूरिया यहां से पांच बार सांसद रहे। कांग्रेस ने 12वें लोकसभा चुनाव में कांतिलाल भूरिया को अपना प्रत्याशी बनाया, जिन्होंने इसके बाद लगातार 1998 से 2014 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया।
क्षेत्र के कद्दावर आदिवासी नेता दिलीप सिंह भूरिया एकमात्र ऐसे नेता रहे जो पहले कांग्रेस से पांच बार सांसद रहे और बाद में भाजपा में आकर भी उन्होंने जीत हासिल की। कांग्रेस की ओर से जहां इस बार फिर से यहां से कांतिलाल भूरिया को ही पार्टी प्रत्याशी बनाए जाने की संभावनाएं हैं, वहीं भाजपा के दावेदारों की फेहरिस्तों में स्वर्गीय दिलीप सिंह भूरिया की बेटी निर्मला भूरिया का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है।
दूसरी ओर संभावना यह भी है कि इस सीट पर भाजपा द्वारा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पसंद का प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में संघ के कई संगठन अपनी गहरी पकड़ रखते हैं। इस संसदीय सीट में झाबुआ जिले की तीन झाबुआ, थांदला, पेटलावद, अलीराजपुर जिले की अलीराजपुर, जोबट और रतलाम जिले की रतलाम ग्रामीण, रतलाम सिटी और सैलाना सीट शामिल हैं।
विधानसभा चुनावों में झाबुआ की तीन में से दो पर कांग्रेस और एक पर भाजपा विजयी हुई है। वहीं रतलाम की तीन में से दो पर कांग्रेस और एक पर भाजपा तथा अलीराजपुर की दो में से दो पर कांग्रेस का कब्जा है। इस प्रकार कुल आठ विधानसभा सीटों में छह कांग्रेस के और दो भाजपा के पास है। कुछ माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में झाबुआ सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता जेवियर मेढ़ा ने पार्टी से टिकट नहीं मिलने के चलते निर्दलीय चुनाव लड़ा था।