भोपाल। मध्यप्रदेश में 13 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराजसिंह चौहान क्या अब अपनी ही पार्टी में बेगाने होने लगे हैं? ...क्या विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद अब पार्टी और उसके नेता शिवराज से दूरी बनाने लगे हैं?....क्या डेढ़ दशक तक सूबे की सियासी फलक पर धूमकेतु की तरह चमकने वाले शिवराज अब फीके पड़ने लगे हैं?...क्या डेढ़ दशक तक मध्यप्रदेश की सियासत में बीजेपी का सबसे लोकप्रिय चेहरा अब वोटरों को रिझाने में सफल नहीं होगा?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो बरबस ही इस वक्त खड़े होने लगे हैं...ऐसा नहीं है कि ये सवाल तर्कहीन हैं। इन सवालों को अगर तर्क की कसौटी पर नपा जाए तो कुछ हद तक ठीक भी बैठते हैं। इंदौर में पार्टी के एक कार्यक्रम में लगी एक तस्वीर ऐसे सवालों को जन्म दे रही है।
मंगलवार को इंदौर में भारतीय जनता युवा मोर्चा ने युवा संसद का कार्यक्रम रखा था। लोकसभा चुनाव से पहले यूथ वोटर्स को रिझाने के लिए पार्टी के इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम युवा संसद कार्यक्रम में मंच पर जो बैनर लगाया गया, उसमें बीजेपी के लगभग सभी बड़े नेताओं की तस्वीर तो थी, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तस्वीर गायब थी।
मंच पर बैठे अतिथियों के ठीक पीछे लगाए गए बैनर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा की तस्वीर तो थी, लेकिन नहीं थी उस नेता की तस्वीर जो डेढ़ दशक तक मध्यप्रदेश में बीजेपी का सबसे लोकप्रिय चेहरा था।
तेरह साल से अधिक समय तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान पार्टी की तस्वीर न होना सियासी गलियारों में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। इतना ही नहीं, खंडवा रोड स्थित कार्यक्रम स्थल पर बाहर भी जो बैनर पोस्टर लगाए गए थे, उसमें भी शिवराज सिंह चौहान की तस्वीर कहीं भी नजर नहीं आ रही थी।
भारतीय जनता युवा मोर्चा के इस कार्यक्रम में मंच पर बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अभिलाष पांडे समेत कई नेता मौजूद थे। ऐसे में लोकसभा चुनाव को लेकर इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में शिवराज की तस्वीर न होना कई सवाल खड़े कर रहा है।
अब इन सवालों को थोड़ा पीछे ले जाना होगा। अभी कुछ दिन पहले ही इंदौर पहुंचे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह जब मीडिया से बात कर रहे थे तो उनसे शिवराज सिंह चौहान, जो सूबे में 'मामा' के नाम से जाने जाते थे, के लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर एक सवाल पूछा गया था तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने उलटे मीडिया से सवाल पूछा लिया था कि 'कौन मामा'। हालांकि बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उन्हें लगा कि उनके मामा के बारे में पूछ रहे है। बात उस वक्त तो आई गई हो गई, लेकिन सियासत के जानकार इसके मतलब तलाशने लगे।
अब सवालों की तलाश में और थोड़ा पीछे चलते हैं। मध्यप्रदेश में 15 साल तक सत्ता में रहने वाली बीजेपी और इन 15 सालों में 13 साल से अधिक समय तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फेंस में मीडिया से बात करते हुए कहा था कि वे मध्यप्रदेश में ही रहेंगे।
शिवराज ने मीडिया से बात करते हुए साफ कहा था कि वे केंद्र राजनीति में नहीं जाएंगे और मध्यप्रदेश में रहकर प्रदेश की जनता की सेवा करेंगे, उस वक्त शिवराज मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष बनने की दौड़ में भी शामिल थे, लेकिन इसी बीच पार्टी हाईकमान ने एक तरह से शिवराज की इच्छा के विपरीत उनको राष्ट्रीय राजनीति में लाते हुए पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया।
शिवराज से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनते ही उनके मध्यप्रदेश में सियासी भविष्य को लेकर सवाल खड़े होने लगे, लेकिन इसके विपरीत शिवराज सिंह चौहान अपने स्वभाव के मुताबिक लोगों और कार्यकर्ताओं से मिलने का कोई भी मौका छोड़ नहीं रहे थे। बाते चाहे ओला पीड़ित किसानों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनना या मध्यप्रदेश विधानसभा में कमलनाथ सरकार को घेरना, शिवराज कोई भी मौका चूक नहीं रहे थे। शिवराज का 'टाइगर जिंदा है' वाला बयान न केवल प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में सुर्खियों में रहा।
मध्यप्रदेश में बेमौसम हुई बारिश और ओला पीड़ित किसानों की समस्याओं को जमाने के लिए जब शिवराज जब पूरे प्रदेश में जाकर किसानों से मिल रहे थे, इसी बीच पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को लोकसभा चुनाव के लिए मध्यप्रदेश से बाहर मोर्चे पर लगा दिया। इससे शिवराज की एक तरह से अघोषित किसान यात्रा पर ब्रेक लग गया है।
इससे पहले भी विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी शिवराज जब मध्यप्रदेश में आभार यात्रा निकालने की तैयारी में थे तो इसे भी पार्टी की मंजूरी नहीं मिली। ऐसे में अब जब लोकसभा चुनाव नजदीक है तो देखना होगा कि शिवराज सिंह चौहान को पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारती है या डेढ़ दशक तक सबसे लोकप्रिय नेता अब अपने अपने सिसासत में ढलान की ओर है।