बॉथम से घोष तक, आजाद की विरोधियों को हैरान करने की क्षमता बरकरार

WD Sports Desk

मंगलवार, 4 जून 2024 (19:59 IST)
दिलीप घोष अगर अपनी हार से स्तब्ध हों तो उन्हें चार दशक पुराना इयान बॉथम का वीडियो देखना चाहिए जो अपना विकेट गंवाने के बाद उनसे भी अधिक हैरान थे।लंदन के ओवल की 22 गज की पिच हो या औद्योगिक शहर बर्धमान-दुर्गापुर का राजनीतिक मैदान, कीर्ति आजाद की दिग्गजों को छकाने की क्षमता लाजवाब है।

आजाद ने 137981 मतों से राज्य के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक को उस निर्वाचन क्षेत्र में हराया जो उनके लिए उस समय बिल्कुल भी परिचित नहीं था जब उन्हें पहली बार तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित किया गया था। उन्होंने अंतत: 720667 मत हासिल करके लोकसभा सदस्य के रूप में शान से वापसी की।

ओवल में आजाद ने नीची रहती गेंद पर बॉथम को बोल्ड किया था और उस समय दुनिया के नंबर एक ऑलराउंडर के चेहरे पर हताशा साफ देखी जा सकती थी।मंगलवार को जब बिहार के इस 65 साल के व्यक्ति ने बंगाल के एक शहर में घोष को हराया तो उसे तृणमूल कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत में से एक कहा जा सकता है। इस सीट पर गैर-बंगालियों की अच्छी खासी आबादी है।

बंगाल की राजनीति को समझने वाले लोग यह तर्क दे सकते हैं कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष घोष को एक अपरिचित क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन फिर यह आजाद के लिए भी बहुत परिचित क्षेत्र नहीं था।

दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (DDCA) के प्रशासन में कथित भ्रष्टाचार पर दिवंगत अरुण जेटली के साथ खुले विवाद के कारण कांग्रेस में जाने से पहले आजाद ने बिहार के दरभंगा से भाजपा के लिए लगातार दो चुनाव जीते थे।

अगर उनके करीबी दोस्त कपिल देव की मौजूदगी ने उनके छोटे अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान उन्हें बढ़ावा दिया तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक ने निश्चित रूप से उनके राजनीतिक करियर को दूसरा जीवन प्रदान किया।

हो सकता है कि इसमें कौशल कम और भाग्य अधिक हो लेकिन विश्व कप विजेता, एक बहुत ही तेजतर्रार दिल्ली का पूर्व रणजी कप्तान, राष्ट्रीय चयनकर्ता और जेटली के कट्टर आलोचक, आजाद हमेशा से जानते थे कि कैसे खबरों में बने रहना है।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भागवत झा आजाद के इस क्रिकेटर पुत्र ने दिल्ली के बाराखंभा रोड स्थित प्रसिद्ध मॉडर्न स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज में वह खेल कोटे के छात्र थे।

हिंदू कॉलेज और स्टीफंस के बीच फाइनल के दौरान उनके कॉलेज के मैदान पर छात्र अपने इंग्लिश विलो ग्रे निकोल्स के साथ गगनचुंबी छक्के लगाने वाले इस बल्लेबाज को देखने के लिए उमड़ पड़ते थे। लाइसेंस राज के उन दिनों में यह बल्ला किसी के पास होना बड़ी बात थी।

आजाद, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, विज्ञापन के क्षेत्र के दिग्गज पीयूष पांडे सभी कॉलेज क्रिकेट में समकालीन थे जिन्होंने बाद में अपने करियर को अलग-अलग दिशाओं में आगे बढ़ाया।

आजाद के कुछ आलोचक हमेशा निजी तौर पर आरोप लगाते थे कि उन्होंने भारत के लिए जो भी क्रिकेट खेला वह कपिल के साथ उनकी निकटता के कारण था।

भाई-भतीजावाद के आरोप बहस का विषय हैं लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि आजाद अपने समय के दिल्ली के सबसे ताकतवर कप्तानों में से एक थे जो कभी भी मुंबई की टीम के खिलाफ लड़ने से पीछे नहीं हटते थे।

इसके अलावा वह घरेलू क्रिकेट में एक मजबूत खिलाड़ी थे और ऑफ स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ दबदबा बनाते थे।कई लोगों का मानना है कि वह घरेलू क्रिकेट में पहले भारतीय बल्लेबाजों में से एक थे जो 80 के दशक के शुरुआती और मध्य वर्षों में ऑफ स्पिनरों द्वारा फेंकी जाने वाली ‘दूसरा’ गेंद को समझ सकते थे जबकि काफी गेंदबाजों को भी नहीं पता था कि यह क्या है।(भाषा)

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