मोदी 3.0 सरकार के पहले दिन ही संघ प्रमुख मोहन भागवत की नसीहत के सियासी मायने

विकास सिंह
मंगलवार, 11 जून 2024 (12:56 IST)
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पहली बार लोकसभा चुनावों, सियासत और राजनीतिक दलों के तौर तरीकों के साथ मणिपुर जैसे ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को नागपुर में संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चुनाव में संघ की भूमिका पर कहा कि चुनाव में इस बार भी हमने अपने लोकमत जागरण का काम किया है। इसके साथ संघ प्रमुख ने कहा कि वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है। अपने कर्तव्य को कुशलता पूर्वक करना आवश्यक है। वहीं उन्होंने कहा कि काम करें, लेकिन इसे मैंने करके दिखाया, इसका अहंकार हमें नहीं पालना चाहिए,जो ऐसा करता है, वही असली सेवक कहने का अधिकारी है।
ALSO READ: गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाले नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल में RSS के एजेंडे को पूरा कर पाएंगे?
संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान के कई मायने में है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से भाजपा ने ‘मोदी की गारंटी’ और ‘फिर एक मोदी सरकार’ जैसे  स्लोगन गढ़े उससे संघ खुश नहीं। चुनाव के दौरान भाजपा सिर्फ मोदी के चेहरे को भरोसे ही आगे बढ़ी उस पर भी संघ ने अपनी नाखुशी जताई थी। ऐसे में अब संघ प्रमुख के ‘मैंने करके दिखाया’ और ‘अंहकार नहीं पालने’ जैसा बयान इशारों ही इशारों में बहुत कुछ कह रहा है। वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जिस तरह से संघ को लेकर बयान दिया था, उस पर भी संघ प्रमुख ने अपने बयान में इशारों ही इशारों में बहुत कुछ कह दिया है।

वहीं लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पक्ष और विपक्ष के बीच व्यक्तिगत बयानबाजी और भाषा की गिरती मार्यादा पर भी तीखी टिप्पणी की। संघ प्रमुख मोहन भागवन ने कहा कि चुनाव युद्ध की तरह लड़ा गया। उन्होंने लोकसभा चुनावों में प्रचार के तरीकों का भी जिक्र करते हुए कहा कि चुनाव में एक दूसरे को लताड़ना, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल और झूठ प्रसारित करना सही बात नहीं है। ये अनुचित आचरण है, क्योंकि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है।

इसके साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विपक्ष को विरोधी कहे जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने संसद में सरकार के विरोधियों को प्रतिपक्ष कहने की अपील की। भागवत ने कहा कि अगर कोई आपसे सहमत नहीं है, तो उसे विरोधी कहना बंद कीजिए। विरोधी के बजाय प्रतिपक्ष कहिए। एक पक्ष होगा और उसके सामने अपनी बात रखने वाला प्रतिपक्ष होगा। संसद में किसी भी सवाल पर दोनों पहलू सामने आएं, इसके लिए इस तरह की व्यवस्था की गई है।

लोकसभा चुनाव में विपक्ष के ताकतवार होकर सामने आने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवन के इस बयान के कई मयाने है। मोदी 2.0 सरकार के दौरान संसद के कई सत्रों की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ चुकी है और संसद में लगातार पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध बना रहा। ऐसे में अब जब विपक्ष और ताकतवर हुआ है तब यह तय माना जा रहा है। ऐसे में संघ प्रमुख का बयान सीधे तौर पर मोदी 3.0 सरकार को संदेश है कि वह सदन में महत्वपूर्ण विषयों पर विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की कोशिश करें। इसके साथ चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सियासी कटुता अपने चरम पर देखी गई। दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर राजनीतिक हमलों के साथ व्यक्तिगत हमले किए जिसने राजनीति के गिरते स्तर को दिखाया।

इसके साथ संघ प्रमुख ने मणिपुर पर भी खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने मणिपुर में शांति की अपील करते हुए कहा कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है. जरूरी है कि इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए। उन्होंने कहा कि एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले 10 साल शांत रहा और अब अचानक जो कलह वहां उपजी या उपजाई गई उसकी आग में मणिपुर अब तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है, इस पर कौन ध्यान देगा।

गौरतलब है कि मणिपुर में लगातार जारी हिंसा मोदी 2.0 सरकार के समय की सबसे बड़ी चुनौती है जो अब तीसरे कार्यकाल में भी एक बड़ी चुनौती के रूप में बना हुआ है। कांग्रेस मणिपुर के मुद्दों को लेकर लगातार मोदी सरकार पर हमलावर है और वह अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर नहीं जाने को मुद्दा बना रही है। ऐसे में अब मोदी सरकार की तीसरी पारी की शुरुआत के पहले दिन ही संघ प्रमुख ने सरकार को सीधा संदेश दे दिया है कि वह मणिपुर के मुद्दें को प्राथमिकता के तौर पर हल करें। 
ALSO READ: RSS की अनदेखी BJP को पड़ गई भारी, नड़्डा के बयान ने कर दिया खेला?
लोकसभा चुनाव में संघ और भाजपा की बीच दिखी दूरी- लोकसभा चुनाव  के दौरान संघ और भाजपा के बीच साफ दूरिया देख गई थी। लोकसभा चुनाव के चौथे चरण की वोटिंग से पहले भाजपा के राष्ट्रीय  अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि “पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे। हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं”।

दरअसल भाजपा के लिए आरएसएस जो जमीन पर काम करता है, उसका फायदा भाजपा को चुनाव में होता है, लेकिन इस बार संघ वैसा एक्टिव नहीं रहा है जैसा वह 2014 और 2019 मे था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आपसी समन्वय पर इस बार कई सवाल उठे।

चुनाव के दौरान अपने एक इंटरव्यू में भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे। हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं। इंटरव्यू के दौरान जब भाजपा अध्यक्ष से पूछा गया कि क्या भाजपा को अब आरएसएस के समर्थन की जरूरत नहीं है।

लोकसभा चुनाव दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का संघ को लेकर दिया बयान अब चुनाव नतीजों के बाद खूब सुर्खियों में है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान उत्तरप्रदेश में उठाना पड़ा। भाजपा उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में मात्र 35 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या उत्तर प्रदेश जैसा राज्य जहां संघ की काफी गहरी जड़ें है वहां पर उसकी अनदेखी करना भाजपा को भारी पड़ गया।
 
अगला लेख