गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल की निर्विरोध जीत के बाद सियासत गर्मा गई है। कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी और पार्टी के डमी उम्मीदवार का नामांकन कमियों के जरिए खारिज कर दिया गया है। वहीं बसपा सहित अन्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवार ने अपने नामांकन को वापस ले लिया। ऐसी परिस्थितों में सूरत कलेक्टर और निर्वाचन अधिकारी ने मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया है।
कांग्रेस प्रत्याशी की भूमिका संदिग्ध- सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी की भूमिका संदिग्ध है। कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी अपने तीन प्रस्तावकों में से एक को भी चुनाव अधिकारी के सामने पेश नहीं कर पाए, जिसके बाद उनका नामांकन फॉर्म रद्द कर दिया गया। सूरत में नामांकन के बाद कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभाणी के नामांकन फॉर्म में तीन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में गड़बड़ी को लेकर बीजेपी ने सवाल उठाए थे। वहीं सूरत से कांग्रेस के वैकल्पिक उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन फॉर्म भी अमान्य कर दिया गया, जिससे कांग्रेस सूरत सीट के लिए चुनावी मैदान से बाहर हो गई। बताया जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार ने अपने नामांकन में जिन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर थे वह फर्जी थे। निर्वाचन अधिकारी ने जब सभी प्रस्तावकों को बुलाया तो वह उपस्थित नहीं हुए है।
ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रस्तावकों के फर्जी हस्ताक्षर करने वालों पर कार्रवाई होगी। सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी पर फर्जी हस्ताक्षर करने के मामले में कार्रवाई की जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी के सभी प्रस्तावक उसके रिश्तेदार और करीबी थे, ऐसे में क्या इन सभी पर कार्रवाई की जाएगी।
राहुल गांधी सहित कांग्रेस ने उठाए सवाल-सूरत में भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल की निर्विरोध जीत के बाद अब कांग्रेस पूरे मामले को हाईकोर्ट में ले जाने की तैयारी में है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सवाल उठाए हुए कहा कि “तानाशाह की असली 'सूरत एक बार फिर देश के सामने है! जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है। मैं एक बार फिर कह रहा हूं-यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव है, संविधान की रक्षा का चुनाव है”।
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने सूरत को लेकर भाजपा पर सवाल उठाते हुए कहा कि“लोकतंत्र ख़तरे में है। आप क्रोनोलॉजी समझिए। सूरत जिला चुनाव अधिकारी ने सूरत लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी का नामांकन रद्द कर दिया है। कारण "तीन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर के सत्यापन में खामी” बताया गया है। कुछ इसी तरह का कारण बताकर अधिकारियों ने सूरत से कांग्रेस के वैकल्पिक उम्मीदवार सुरेश पडसाला के नामांकन को ख़ारिज कर दिया। कांग्रेस पार्टी बिना उम्मीदवार के रह गई है। बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल को छोड़कर बाकी सभी उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। 7 मई 2024 को मतदान से लगभग दो सप्ताह पहले ही 22 अप्रैल, 2024 को सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार को “निर्विरोध” जिता दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी के अन्याय काल में MSME मालिकों और व्यवसायियों की परेशानियों एवं गुस्से को देखते हुए भाजपा इतनी बुरी तरह से डर गई है कि वह सूरत लोकसभा के "मैच को फ़िक्स" करने का प्रयास कर रही है। इस सीट को वे लोग 1984 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार जीतते आ रहे हैं! हमारे चुनाव, हमारा लोकतंत्र, बाबासाहेब अंबेडकर का संविधान - सब कुछ भयंकर ख़तरे में हैं। मैं दोहरा रहा हूं - यह हमारे जीवनकाल का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है!”
निर्विरोध निर्वाचन कब होता है?-ऐसा नहीं है कि पहली बार कोई लोकसभा प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित घोषित हुआ है। लोकसभा, विधानसभा चुनाव में कोई प्रत्याशी कब निर्विरोध निर्वाचित होता है और इसको लेकर क्या व्यवस्था है, इस पर पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि कभी भी चुनाव की स्थिति तब बनती है जब एक सीट पर एक से ज्यादा उम्मीदवार नामांकन करते हैं और नाम वापसी की आखिरी तारीख तक वह नाम वापस नहीं लेते हैं। ऐसे में उस सीट पर अगर एक से ज्यादा उम्मीदवार होते हैं तो चुनाव प्रक्रिया संपन्न होती है। वहीं अगर किसी सीट पर कोई एक ही उम्मीदवार हो यानि चुनाव में किसी अन्य उम्मीदवार ने नामांकन ही नहीं किया हो या उसका नामांकन खारिज हो गया हो या उसने नाम वापस ले लिया हो तब ऐसी परिस्थिति में अगर एक सीट पर किसी पार्टी का एक ही उम्मीदवार हो तो वह निर्विरोध निर्वाचित घोषित होता है।
वहीं जहां तक नोटा की बात है तो चुनाव आयोग के मुताबिक नोटा का विकल्प सियासी दलों को प्रत्याशी के चयन में जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर राजनीतिक दल लगातार गलत प्रत्याशियों को मैदान में उतारते हैं तो नोटा का बटन दबाकर मतदाता अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं, लेकिन इसके लिए निर्वाचन प्रक्रिया होना जरूरी है।
चुनाव आयोग के मुताबिक निर्वाचन प्रक्रिया में नोटा के मतों को रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाता है और उसको गिना नहीं जाता है। उदरारण के तौर पर अगर कोई प्रत्याशी एक भी वोट पाता है और बाकी मत नोटा को मिलते हैं तो वह प्रत्याशी विजेता माना जाएगा।