औंधे मुँह गिरा तीसरा मोर्चा

रविवार, 17 मई 2009 (13:47 IST)
भाषा सिंह

केंद्र में सरकार बनाने का दावा करने वाले तीसरे मोर्चे के सारे किरदार औंधे मुँह गिर गए हैं। इस मोर्चे के सूत्रधार वामदलों का घर ही बुरी तरह ढह गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहाँ वामदलों ने 60 सीटों की धमक से सबको चौंका दिया था, इस बार मुश्किल से वह आँकड़ा 20 को पार कर पाया है। पश्चिम बंगाल में तो वाममोर्चे का पिछले तीन दशकों में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है और वह किसी तरह से 16 के पास पहुँचा है।

इस बार के आम चुनाव में सिर्फ वामदलों का ही नहीं बल्कि तीसरे मोर्चे की शेष पार्टियों का भी हाल बुरा रहा। तीसरे मोर्चे की दो प्रमुख किरदार थीं-उप्र की मुख्यमंत्री व बसपा प्रमुख मायावती और अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता।

तमिलनाडु में तमाम कयासों के उलट जयललिता की पार्टी सिर्फ सात सीटों तक पहुँच पाई, जबकि उत्तरप्रदेश से 40 सीटें जीतने का दावा करने वाली बसपा के पास 21 सीटें आईं। एक सीट बाहर से मिली। तीसरे मोर्चे के घटक और सरकार बनाने-बिगाड़ने के खेल में माहिर तेलुगुदेशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू के खाते में सिर्फ 5 सीटें आईं। ऐसे में तीसरे मोर्चे के इन दलों की केंद्र में सरकार के गठन में कोई भूमिका नहीं रहने वाली और न ही इनके किसी और खेमे में जाने की कोई उम्मीद है।

पहले मायावती और जयललिता के कांग्रेस या भाजपा में जाने का कयास लगाया जा रहा था। इन परिणामों ने साफ कर दिया कि तीसरा मोर्चा अब सदन में विपक्ष में बैठेगा और अगर इस मोर्चे के दल कांग्रेस के पास जाते भी हैं तो उनकी कोई पूछ नहीं होगी। चुनाव में अपनी हार स्वीकार करते हुए माकपा महासचिव प्रकाश करात ने यह माना कि वामदलों को अपनी गलतियाँ सुधारनी पड़ेंगी।

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