मराठा छत्रप शरद पवार के प्रधानमंत्री बनने का सपना 15वीं लोकसभा में पूरा नहीं हो सका। वर्ष 1991 से प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे पवार के इस बार शिवसेना के 'मराठी मानुष' का समर्थन करने की घोषणा से इस पद पर आसीन होने की प्रबल संभावना दिख रही थी, लेकिन संप्रग को मिली सफलता से उनका सपना चूरचूर हो गया।
पवार ने इस बार महाराष्ट्र की माढा सीट से भाग्य आजमाया, जबकि उनकी परंपरागत सीट बारामती से उनकी पुत्री सुप्रिया सुले खड़ी हुईं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से विद्रोह कर उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के साथ मिलकर वर्ष 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया।
पवार वसंतदादा पाटिल की सरकार को गिराने के बाद पार्टी को तोड़कर जनता पार्टी के सहयोग से वर्ष 1978 में मात्र 38 वर्ष की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे।
पवार ने वर्ष 1967 में पहली बार बारामती का महाराष्ट्र विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया था और तब से अब तक वे विधायक या सांसद के रूप में बारामती का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पवार की कोशिशों से ही बारामती पश्चिमी महाराष्ट्र का सबसे अधिक उद्योग वाला इलाका बना।
हालाँकि पवार अपने जनाधार को पश्चिमी महाराष्ट्र से बाहर बढ़ाने में सफल नहीं हो सके, लेकिन उनकी पहल से सुशीलकुमार शिंदे एक पुलिस उप निरीक्षक से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच चुके हैं।
इस लोकसभा चुनाव में पवार ने संप्रग के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन उड़ीसा में बीजू जनता दल प्रमुख नवीन पटनायक के साथ चुनावी रैली को संबोधित करने के कारण विवादों में भी आए और उन्हें स्पष्टीकरण भी देना पड़ा था।