सुगम नहीं रही है ममता की राह

रविवार, 24 मई 2009 (10:56 IST)
पाँच साल पहले लोकसभा चुनाव में केवल एक सीट हासिल करने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में पश्चिम बंगाल में जबरदस्त सफलता हासिल की। उन्हें मनमोहन के नेतृत्व में संप्रग की दूसरी सरकार में रेल मंत्रालय सौंपा गया है।

शिक्षक के तौर पर सेवाएँ दे चुकीं ममता के लिए यह यात्रा बहुत सुगम नहीं रही। 1998 में उन्होंने कांग्रेस से संबंध तोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था।

दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी प्रोमिलेश्वर बनर्जी की पुत्री ममता ने 1970 के दशक में कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज में अध्ययन के दौरान कांग्रेस के विद्यार्थी संगठन पश्चिम बंगाल छात्र परिषद से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया।

पार्टी की राजनीति में कदम-दर-कदम बढ़ीं ममता बनर्जी ने 1979-80 में पश्चिम बंगाल महिला कांग्रेस के महासचिव की जिम्मेदारी संभाली और इसके अलावा अन्य पदों को भी संभाला।

उनके लिए राजनीति में पहला महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब उन्होंने 1984 में माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा क्षेत्र में शिकस्त दी। इसके बाद वे 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी कोलकाता दक्षिण से सांसद चुनी गईं।

पहली बार वे 1991 में सत्ता के गलियारे में पहुँचीं जब वे पीवी नरसिंहराव सरकार में मानव संसाधन विकास युवा मामलों और खेल एवं महिला और बाल विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाई गईं।

वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार में ममता बनर्जी को रेलमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वर्ष 2004 में वे कोयला मंत्री रहीं। वर्ष 2003-04 में कुछ समय तक वे बिना विभाग की केंद्रीय मंत्री भी रहीं।

ममता ने 1998 में कांग्रेस का साथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और दो साल बाद भाजपा नीत राजग का दामन थामा।

हालाँकि वर्ष 2001 में उन्होंने रक्षा सौदों में तहलका मामले के उजागर होने के बाद रेलमंत्री का पद और राजग का साथ छोड़कर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया, लेकिन वामपंथियों के खिलाफ कुछ खास सफलता हासिल नहीं कर सकीं। इसके बाद उन्हें जनवरी 2004 में राजग सरकार में लौटना पड़ा।

रोचक तथ्य यह है कि ममता ने 2001 में तहलका मामले को लेकर तत्कालीन राजग संयोजक और रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस पर निशाना साधा था और फर्नांडीस ने ही ममता को गठबंधन में वापस लाने और मंत्रालय दिलाने में मदद की।

पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के खिलाफ हमेशा आवाज उठाने वाली ममता को राष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक पहचान उस दौरान मिली, जब उन्होंने सिंगुर और नंदीग्राम पर विरोध प्रदर्शन किए।

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