वर्तमान के दौर में फैशन जगत हो, चाहे फिल्म इंडस्ट्री सभी में 'जो दिखता है, वही बिकता है'। धीरे-धीरे यही फार्मूला अब हमारी जीवनशैली पर भी लागू होने लगा है। जहां पहले हमारी पहचान हमारे गुणों के आधार पर होती थी, वहीं अब भौतिकतावाद के इस युग में हमारी पहचान हमारे स्टेटस से होने लगी है। मतलब यदि आपके पास पैसा है तो आपके सारे गुनाह माफ।
तेजी से लुप्त होती हमारी भारतीय संस्कृति में पहले कभी 'रूपस्याभरणम् गुणं' की बात की जाती है। जिसका अर्थ होता है कि व्यक्ति के रूप का तभी महत्व है, जब उसमें गुण हो, वरना उसकी सुंदरता व्यर्थ है। वास्तविकता में भी सुंदर वही व्यक्ति होता है, जो भले ही धनवान या सुंदर न हो परंतु गुणवान हो। लेकिन क्या करें बाहरी चमक की चकाचौंध में आज हम सब चौंधिया जो गए हैं।
आमतौर पर जब अखबारों में वैवाहिकी या रिसेपशनिस्ट के विज्ञापन दिए जाते हैं तो उसमें स्पष्ट तौर पर लिखा होता है कि 'सुंदर व आकर्षक लड़की को प्राथमिकता' भले ही वो गुणों में नगण्य ही क्यों न हो। जब शादी-ब्याह की बात पक्की होती है तो कई बार रूप-रंग व कद-काठी के कारण गुणवान लड़के-लड़की को भी नकार दिया जाता है तथा उन पर नाकाबिल होने का ठप्पा लगा दिया जाता है।
यदि जीवन में सही साथी का चयन करना हो तो उसकी नम्रता, शिष्टाचार, सहनशीलता आदि गुणों को परखना चाहिए फिर उसका चयन करना चाहिए क्योंकि रूपवान तो हजारों लोग हैं परंतु गुणवान नगण्य हैं। अत: सही समय पर सही व्यक्ति का चयन करके अपने जीवन को एक नई दिशा दें।