वक्त काफी बीत गया है, लेकिन रश्मि के लिए सब कुछ पल भर पहले की बात है। लगता है कि बस कल की बात हो। उसने स्कूल की पढा़ई पूरी की और घर में जिद कर अपने शहर से दूर दूसरे शहर में आ गई। पढ़ाई में अच्छी होने के कारण घर में भी किसी ने खास ऐतराज नहीं जताया। गर्ल्स हॉस्टल में रहने लगी। शुरू-शुरू में तो कुछ डर लगा, लेकिन मुझे तमाम परेशानियों को सहने के बाद भी सब कुछ अच्छा लग रहा था।
‘कॉलेज से हॉस्टल’ की जिंदगी से अलग भी उसने एक नई दुनिया बनाई थी। हालाँकि हमेशा की तरह यहाँ भी दोस्त कम, भीड़ ज्यादा थी। रश्मि ने इसे अपने मुताबिक आकार देने की कोशिश की। हॉस्टल में सभी लड़कियों के जगह-जगह से फोन आते रहते। मोबाइल फोन की लगातार बजती घंटियाँ उनके स्टेटस सिंबल बन चुकी थी। जिनके मोबाइल पर फोन आने की गुंजाइश नहीं होती हो अपने दो-चार पुरुष मित्रों के मोबाइल पर ‘मिस कॉल’ कर देतीं। मजाल है अब फोन नहीं आए।
इस बात का मलाल उसे भी होता कि मेरे मोबाइल की घंटी क्यों नहीं बजती। खैर! कुछ दिनों के बाद बार-बार बजती घंटी का राज मुझे मालूम हो गया। इस बीच उन लड़कियों के सभी जरूरी फोन लैंड लाइन पर आते जिनके पास मोबाइल होने की खबर उनके घर वालों को नहीं होती। एक दिन शाम को मैं हॉस्टल पहुँची कि लैंड लाइन फोन की घंटी बजी। गार्ड ने जोर से आवाज दी- ‘रश्मि’..., रश्मि मैडम जी आपका फोन आया है।रश्मि तेजी से सीढ़ियों से उतरी। ‘किसका फोन है गार्ड भैया।’ ‘वो तो नहीं पूछा मैडम, आप ही पूछ लीजिए’। गार्ड ने गैरजिम्मेदारी के साथ जवाब दिया।
हॉस्टल में सभी लड़कियों के जगह-जगह से फोन आते रहते। मोबाइल फोन की लगातार बजती घंटियाँ उनके स्टेटस सिंबल बन चुकी थी। जिनके मोबाइल पर फोन आने की गुंजाइश नहीं होती हो अपने दो-चार पुरुष मित्रों के मोबाइल पर ‘मिस कॉल’ कर देतीं।
‘हैलो, कौन..?’, ‘कौन...?’ फोन पर किसी अपरिचित की आवाज थी। उसे कुछ शंका हुई। कहीं किसी ने बदमाशी तो नहीं की। दुबारा हिम्मत कर उसने नाम पूछा। ‘कौन बोल रहे हैं आप?’
‘सुशांत’। ‘रश्मि है क्या?’ मैं ही बोल रही हूँ, आपको पहचाना नहीं...। ‘शायद राँग नंबर लग गया।’- कहकर उसने फोन रख दिया। रश्मि को घबराहट हो रही थी। मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे। कौन होगा, बदमाश तो नहीं लग रहा था। बदमाश होता तो फोन नहीं काटता। लड़कियों को क्या बताऊँगी, सच बताऊँगी तो बात का बतंगड़ बनाएँगी।
दो-चार दिन बीत गए। बात आई-गई हो गई। किसी ने न पूछा और न उसने बताया। भला लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से इस कोने से उस कोने चिपककर घंटों बात करने से फुर्सत कहाँ? आज रविवार था। एक बार फिर फोन की घंटी बजी। रश्मि का दिल न जाने क्यों पहले से ही धड़कने लगा। उसकी आशंका सच निकली।
‘कौन?’, ‘आपको पता है कि राँग नंबर है तो दुबारा फोन क्यों किया?’ रश्मि झल्लाई।
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‘देखिए, मैं कोई बुरा लड़का नहीं हूँ। बस आपकी आवाज अच्छी लगी और आपसे दोस्ती का दिल किया। तो दुबारा फोन कर दिया। लेकिन आपको अगर बुरा लगता है तो मैं फिर फोन नहीं करूँगा। मुझे आपसे सिर्फ दोस्ती करनी है और वो भी फोन पर’। सुशांत धाराप्रवाह बोलता गया।
रश्मि को भी सब अच्छा लगा। उसे उसकी ईमानदारी और साफगोई पसंद आई। आखिर उसे भी तो कोई ऐसा चाहिए था, जो उसे सुने, सराहे। बातों का सिलसिला चल पड़ा। लैंड लाइन से फोन मोबाइल पर आने लगे। बातों-बातों में पता चला कि उसके लिए प्यार से ज्यादा दोस्ती महत्वपूर्ण है और इससे भी ज्यादा करियर और परिवार। रश्मि और सुशांत की दोस्ती का शायद यही सूत्र था। क्योंकि रश्मि के विचार भी ऐसे ही थे।
इस बीच रश्मि अपनी लिखी कविताएँ उसे बताती और अपने बॉटनी की क्लास की डेली रिपार्ट भी उसे देती। सुशांत भी अपनी ढेरों बातें उससे करता। घर की बात, अपनी बहन की बात, अपनी सोच, पसंद-नापंसद और बहुत कुछ।
इस बीच रश्मि को पता चला कि उसके माता-पिता एक साथ नहीं रहते। सुशांत पढा़ई के कारण अपने पिता के साथ रहता है और बहन छोटी होने के कारण अपनी माँ के पास। इन सभी बातों से वह निराश भी था और जीवन के प्रति बहुत आशान्वित भी नहीं। आगे की जिंदगी के बारे में उसने कोई योजना भी नहीं बना रखी थी। दूसरी ओर रश्मि के लिए सभी कुछ सुव्यवस्थित होना जरूरी था।
रश्मि को अब लगने लगा था कि वह एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जिससे वह सभी कुछ बता सकती है, अपनी जिज्ञासा, इच्छा, अनिच्छा, सुख-दु:ख और अच्छा-बुरा सभी कुछ कह सकती है और उस पर बहस कर सकती है। रश्मि, सुशांत पर पूरा अधिकार जताती और फोन नहीं आने पर उलहने भी देती। उधर सुशांत भी उसकी उलहनों और अधिकार भरी बातों को पूरा तवज्जो देता। दोनों के बीच जब भी बात होती हो पूरा हॉस्टल जिंदा हो जाता। बातों के तार भी इतने सभ्य और शालीन की हँसी की तमाम ठहाकों के बाद भी उसका गलत अर्थ निकालने का किसी में साहस नहीं होता।
रश्मि की खुशी का उस दिन ठिकाना नहीं रहा जब उसे पता चला कि उसके अंकल का घर और सुशांत का घर थोड़ी दूरी पर है। रश्मि ने अपने चचेरी बहन, पायल को तुरंत सुशांत का फोन नंबर दिया और उससे बात करने को कहा ताकि बाद में अपने अंकल के घर आने पर उससे मिल सके। इस दौरान दोनों के मिलने की न तो गुंजाइश थी और न ही किसी ने एक-दूसरे को देखने की इच्छा जताई। पायल ने उसे बताया कि वह उसे पहले से जानती है तो खुशी और दुगुनी हो गई।
अब तो बात में और भी गर्म जोशी आ गई। दोनों के बीच की अनजानी सी दूरी भी मिट गई। इसी बीच पायल का फोन आया और रश्मि अवाक रह गई।
‘सुशांत तुम्हें चाहता है।’ पायल ने कहा।
‘लेकिन वह तो मुझसे छोटा है और हमारे बीच इस तरह की कोई बात भी नहीं हुई है।’
‘इसके बाद भी..., मुझे लगता है कि वो तुम्हें चाहता है’। पायल ने जोर देकर कहा। रश्मि की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसने बात क्यों बढ़ाई। जी में आया कि उसे तुरंत फोन करे और सारा गुस्सा उगल दे। लेकिन फोन भी वक्त पर धोखा दे देता है। बैलेंस ही नहीं बचा। रात तक गुस्सा कम हो गया। सो, सुशांत का फोन आने पर उसने दो-टूक उससे पूछ डाला।
‘नहीं, अगर कुछ होता तो मैं तुमसे खुद कह देता...। मुझे तुमसे एट्रेक्शन भी नहीं है। देखा ही नहीं तो एट्रेक्शन कैसा?’... सुशांत ने ठहाके लगा दिए। रश्मि का गुस्सा भी काफूर हो गया।
इस बीच पायल की भी सुशांत से रोज बात होने लगी और पायल ने रश्मि से पूछा कि यदि उसे सुशांत को वह प्रपोज करे तो क्या उसे बुरा लगेगा। इस बार मुझे गहरा धक्का लगा। मेरी बहन ने रश्मि से पूछा कि यदि मुझे उससे प्यार नहीं है तो सुशांत के रिश्ते किसी के साथ भी होने पर उसे बुरा नहीं लगना चाहिए।
पायल की बात रश्मि को गहरे भेद गई थी। आज उसे सुशांत पर बहुत प्यार आ रहा था लेकिन दुविधा भी मौजूद थी। पहली दुविधा इस बात की कि अनजाने में उसे सुशांत के प्यार को ठुकरा दिया। दूसरी, कहीं पहल करने से बहन को ठेस न लगे। आज इस बात को बीते कई साल बीत गए हैं। लेकिन उस दिन के बाद से रश्मि की न सुशांत से बात करने की हिम्मत हुई और न ही पायल से। हॉस्टल में लड़कियों के फोन दिन भर बजते हैं, लेकिन रश्मि के नहीं।