निष्क्रिय रहना देशप्रेम नहीं-ऋतम्भरा

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009 (10:39 IST)
प्रकृति भी वसंत का उत्सव हमें कुछ बाँटने के लिए मना रही है और सद्गुरु भी यहाँ पर हमें बाँटने के लिए ही आए हैं तो इस बेला में हम क्यों पीछे रहें। निर्दोष और निष्काम भाव से हमें भी वसंत से सीख लेकर कामनाओं और वासनाओं से मुक्त होकर जो कुछ हमारे पास है, उसे बाँटने का प्रयास करना चाहिए। निष्क्रिय रहना देशप्रेम नहीं कहा जा सकता।

उक्त प्रेरक विचार साध्वी ऋतम्भराजी ने अखंड परमधाम सेवा समिति द्वारा पोत्दार प्लाजा गाँधी हॉल में आयोजित आध्यात्मिक समागम में व्यक्त किए। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या रोकने का आह्वान करते हुए कहा कि एक कन्या नवरात्रि की देवी, तुलसी की रामायण, गीता की सूक्ति, माँ की ममता, दादी की लोरी, पायल की रूमझूम और माँ भारती की रक्षा करने वाली दुर्गा भी है। यदि एक कन्या जन्म लेगी तो एक लता मंगेशकर और कल्पना चावला बनकर देश को गौरवान्वित करेगी। यही नहीं, दुर्गा और चंडी बनकर देशद्रोही ताकतों को भी कुचलेगी।

युगपुरुष स्वामी परमानंदजी ने देश की ज्वलंत समस्याओं, बिगड़े हालातों का वर्णन करते हुए साधकों से जीवनशैली में बदलाव लाने का आह्वान करते हुए कहा कि ज्ञान से ही अमृत की प्राप्ति होती है। केवल अध्यात्म या केवल विज्ञान से जीवन नहीं चलता। जीवन के लिए दोनों की जरूरत है। ऋषिकेश के स्वामी प्रज्ञानंदजी, चित्रकूट के स्वामी जगतप्रकाशजी त्यागी ने भी सत्संग में अपने विचार व्यक्त किए।

समिति के प्रचार मंत्री अरुण गोयल ने बताया कि साध्वी ऋतम्भराजी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सुबह योग सत्र में योगाचार्य पं. प्रेमचंद मिश्रा ने साधकों को योग का महत्व बताते हुए रोजमर्रा काम आने वाले योग के नुस्खे बताए। समिति की ओर से कैलाश शाहरा, विजय गोयनका, सुरेश अग्रवाल, रजनी जुनेजा, स्नेहा गोयल एवं ऋतु अग्रवाल ने साध्वीजी का स्वागत किया। संचालन राजेश अग्रवाल ने किया। आभार विजय शादीजा ने माना।

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