लोकसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल मुकाबला माने जा रहे पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस ने जहाँ दिल्ली में हैट्रिक लगाई और मिजोरम में दो तिहाई बहुमत से धमाकेदार वापसी की, वहीं राजस्थान का किला उसने भाजपा से छीन लिया।
दूसरी ओर भाजपा ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी प्रतिष्ठा कायम रखते हुए मुकाबले को एकतरफा होने से रोक लिया। राजस्थान में भाजपा को धूल चटाने के बावजूद कांग्रेस हालाँकि दो सौ सदस्यीय सदन में स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर सकी है और उसे सरकार बनाने के लिए पाँच विधायकों की दरकार है। उसकी निगाहें निश्चित तौर पर उन सात नवनिर्वाचित विधायकों पर होगी, जो पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरे थे।
वसुंधरा राजे सरकार को सत्ता से बेदखल करने वाली कांग्रेस ने 96 सीटें जीती हैं, जबकि भाजपा को 78 और बसपा को छह सीटें मिली हैं। निर्दलीय 14 स्थानों पर निर्वाचित हुए हैं, जबकि अन्य दलों को छह जगहों पर सफलता मिली है। इसमें समाजवादी पार्टी भी शामिल है। निर्दलियों में सात कांग्रेस के और तीन भाजपा के बागी हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में इतिहास रचते हुए 71 वर्षीय शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 42 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया और पार्टी यहाँ लगातार तीसरी बार सरकार बनाएगी। दस साल बाद सत्ता में वापसी की आस रखने वाली भाजपा 23 सीटों के साथ उससे काफी पीछे छूट गई।
शीला और उनके मंत्रिमंडल के सभी छह सदस्य विजयी हुए। राष्ट्रीय राजधानी में बसपा ने इस दफा दो सीटों पर जीत के साथ अपना खाता खोल लिया है। पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम में कांग्रेस ने मिजो नेशनल फ्रंट का सूपड़ा साफ करते हुए 40 में से 29 सीटों पर कब्जा कर लिया।
पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों ने कांग्रेस में प्रसन्नता पैदा कर दी है, जिसे 2004 में केंद्र में गठबंधन सरकार का नेतृत्व संभालने के बाद 13 राज्यों में लगातार पराजयों का सामना करना पड़ा था।
विशेष तौर पर मुंबई में 26 नवंबर के आतंकवादी हमले के बाद मिजोरम को छोड़कर सभी राज्यों में स्वीप करने की आशा रखने वाली भाजपा ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विकास के मुद्दे के बल पर अपनी सत्ता सलामत रखी और गुजरात को छोड़कर किसी अन्य राज्यों में लगातार दूसरी बार निर्वाचित नहीं होने की रूढ़ी तोड़ दी।
वसुंधरा हालाँकि झालरापाटन से 32000 से अधिक मतों से चुनाव जीत गईं, लेकिन उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों को चुनावी मैदान में धूल चाटना पड़ी, जिनमें कैबिनेट मंत्री मदन दिलावर, गृह राज्यमंत्री अमराराम चौधरी, सिंचाई मंत्री साँवरलाल जाट और एक अन्य मंत्री साँवरलाल पाटके शामिल हैं।
राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रासिंह भी अपनी सीट नहीं बचा सकीं, जबकि पार्टी ने इस बार हर लोकसभा क्षेत्र में कम से कम एक महिला को विधानसभा का टिकट देने का प्रयास किया था। विश्लेषकों के अनुसार राज्य में इस बार ज्यादा मतदान प्रतिशत होने की वजह भी महिला मतदाता रहीं, जिसका लाभ भाजपा को मिला, लेकिन अंततः यह नाकाफी साबित हुआ।
पार्टी ने गढ़ बचाने के इरादे से अपनी पार्टी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण माहेश्वरी सहित कई सांसदों को भी मैदान में उतार दिया था। दूसरी तरफ कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरदारपुरा सीट जीत ली, लेकिन इस पद के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी माने जा रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी सिर्फ एक वोट से चुनाव हार गए। मुख्यमंत्री पद की होड़ में शामिल एक अन्य उम्मीदवार और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बीडी कल्ला को भी पराजय का मुँह देखना पड़ा।
मुख्यमंत्री पद के बारे में हालाँकि गहलोत ने कहा है कि इसका फैसला कांग्रेस आलाकमान करेगा। कांग्रेस की आगे की रणनीति पर निगाह रखने के लिए पार्टी के राजस्थान मामलों के प्रभारी मुकुल वासनिक जयपुर पहुँच गए हैं।
गहलोत ने भाजपा के राजेन्द्र गहलोत को 29 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। दूसरी ओर सांसद और कांग्रेस उम्मीदवार विश्वेन्द्रसिंह दिगकुमेर से चुनाव हार गए। उन्हें भाजपा के दिगंबरसिंह ने दस हजार से अधिक मतों से हराया।
भाजपा के कुछ मंत्री हालाँकि अपनी प्रतिष्ठा बचाने में कामयाब रहे, जिनमें बारानगर सीट से भाजपा के कबीना मंत्री राजेन्द्र राठौर शामिल हैं, जिन्होंने कांग्रेस के सीएस रेट को आठ हजार से अधिक मतों से हराया। उदयपुर सीट से गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कांग्रेस के त्रिलोक पुरबिया को पराजित किया। कैबिनेट मंत्री घनश्याम तिवाड़ी चुनाव जीत गए, जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सुरेश मिश्रा को 42 हजार से अधिक मतों से पराजित किया।
सवाई माधोपुर सीट से भाजपा की पूर्व केंद्रीय मंत्री जसकौर मीणा चुनाव जीत गई हैं। कोलायत से आबकारी मंत्री देवीसिंह भाटी चुनाव जीत गए। राज्य में पहला चुनाव परिणाम कांग्रेस की झोली में गया और पार्टी की उम्मीदवार कांता करासिया ने गढ़ी सीट पर पार्टी का परचम लहरा दिया। इसके साथ ही बाँसवाड़ा से अर्जुनसिंह बनानिया (कांग्रेस) विजयी हुए।
राज्य में कांग्रेस के बढ़त बनाने के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री अशोक गहलोत के जयपुर के सिविल लाइन्स स्थित आवास पर कार्यकर्ताओं का पहुँचना और जश्न मनाना शुरू हो गया।
कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी, सांसद राहुल गाँधी और गहलोत जिंदाबाद के नारे लगाते हुए उनके आवास पर पहुँचने लगे।
मध्यप्रदेश में सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी रुझान को पीछे छोड़ते हुए भाजपा ने 230 सदस्यीय विधानसभा में 118 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया, जबकि पार्टी ने 2003 के चुनावों में 172 सीटें हासिल की थीं। तब कांग्रेस को 39 सीटों पर सफलता मिली थी। इस बार कांग्रेस ने 51 सीटें जीती हैं और बसपा को चार सीटें मिली हैं। अर्जुनसिंह के पुत्र और मध्यप्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अजयसिंह सीधी जिले की चुरहट सीट से विजयी रहे।
उमा भारती टीकमगढ़ से पराजित हो गईं, लेकिन उनकी भारतीय जनशक्ति पार्टी तीन सीट जीतकर अपना खाता खोलने में सफल रहीं। हालाँकि चुनाव परिणामों से उमा की छवि को धक्का लगा है और आभास होता है कि वे अब राज्य की राजनीति में कोई ताकत नहीं रखतीं। सपा को एक सीट मिली है, जबकि निर्दलीय दो स्थानों पर कामयाब हुए हैं।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भाजपा की जीत का सेहरा संगठन के कार्यकर्ताओं के सिर बाँधा और कहा यह मध्यप्रदेश की 6.5 करोड़ जनता की जीत है और लाखों भाजपा कार्यकर्ताओं के पसीने का नतीजा है। यह भाजपा इसकी नीतियों और विकास एवं कल्याणकारी कार्यों की जीत है।
पड़ोसी छत्तीसगढ़ में भी सफलता की कहानी दोहराते हुए मुख्यमंत्री रमनसिंह के नेतृत्व में भाजपा ने 50 सीटों के साथ 90 सदस्यीय सदन में बहुमत हासिल कर लिया।
राज्य के मुख्यमंत्री रमनसिंह ने कहा कि चुनावों में जीत का श्रेय जनता को जाता है। उन्होंने पार्टी की जीत के लिए अपने राज्य के दो करोड़ लोगों को धन्यवाद दिया और कहा हमने राज्य की 90 विधानसभा सीटों में 50 जीतने की उम्मीद की थी।