मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जीत के सपनों को रौंदते हुए तेरहवीं विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में सोमवार को हुई मतों की गिनती के बाद भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज कर स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया।
विधानसभा की कुल 230 सीटों में से भाजपा ने 143, कांग्रेस ने 71, बसपा ने सात, उमा भारती की भाजश ने पाँच, सपा ने एक और निर्दलीयों ने तीन सीटों पर कब्जा किया है। भाजपा ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया है।
भाजपा ने इस चुनाव में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के मुद्दे को धता बताते हुए विकास का दामन थामकर इस मिथक को भी तोड़ दिया कि इस राज्य में अब तक कोई गैर कांग्रेस सरकार पाँच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी है।
सत्तारूढ़ भाजपा ने सत्ता में वापसी के जरिये यहाँ लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का दावा ठोंकने के साथ ही एक और इतिहास रचा, वहीं कांग्रेस का पिछले विधानसभा चुनाव में 38 सीटों पर मिली जीत की तुलना में प्रदर्शन बेहतर हुआ है, लेकिन सरकार बनाने का उसका सपना ध्वस्त हो चुका है।
इसके साथ ही मतदाताओं ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के चेहरे और भाजपा के विकास के मुद्दे पर अपनी मुहर लगा दी और शिवराज सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ी कांग्रेस को सिरे से खारिज कर दिया है। हालाँकि भाजपा और मुख्यमंत्री चौहान चुनाव प्रचार के दौरान पूरे समय कहते रहे कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं है और जनता विकास के मुद्दे पर मत प्रकट करने जा रही है।
इस जीत को ऐतिहासिक बताते हुए मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि भाजपा की जीत उन लोगों को मतदाताओं का करारा जवाब है, जो कहते हैं कि विकास कार्यों से चुनाव नहीं जीते जाते।
दूसरी ओर बताया जाता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने पार्टी की पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आलाकमान को अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी है। हालाँकि उनका कहना है वह इस विषय पर मीडिया से चर्चा नहीं करना चाहते, वहीं कांग्रेस ने पराजय के लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराने से इनकार करते हुए कहा है कि यह सामूहिक जिम्मेदारी है।
इस चुनाव में उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी ने पहली बार खाता खोला है और उसके पाँच प्रत्याशी विधानसभा पहुँचे हैं, लेकिन पार्टी की संस्थापक अध्यक्ष उमा स्वयं अपने गृह जिले के टीकमगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव हार गईं। इस बार भाजपा से बदला लेने और उसे सत्ता से दूर रखने का उमा का सपना भी साकार नहीं हो सका है। उनके शेष 221 प्रत्याशी भाजपा के मतों में सेंध लगाने में नाकाम रहे।
उत्तरप्रदेश की सत्ता पाकर उसी फार्मूले को मध्यप्रदेश में दोहराते हुए मायावती की बसपा ने यहाँ काफी सवर्णों को टिकट दिया। उसे आशातीत सफलता तो नहीं मिली, लेकिन बारहवीं विधानसभा में दो विधायकों की संख्या इस बार वह अवश्य बढ़ाने में सफल रही और उसके सात विधायक अब सदन में नजर आएँगे।
आठ विधायकों वाली समाजवादी पार्टी मात्र एक स्थान पर सिमट गई है। इसके अलावा तीन सीटों वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, दो सीटों वाले समानता दल एवं एक-एक सीट वाली माकपा-रांकापा और जनता दल (यू) का इस बार सफाया हो गया है।
इस बार जिन दिग्गजों ने जीत का स्वाद चखा है, उनमें मुख्यमंत्री चौहान, जमुनादेवी, बाबूलाल गौर कैलाश विजयवर्गीय, अजय बिश्नाई, अनूप मिश्रा, अजयसिंह, राहुल, ईश्वरदास रोहाणी, सरताजसिंह हरवंशसिंह, सज्जनसिंह वर्मा, चौधरी राकेश सिंह, कमल पटेल, राघवजी, गोविंद राजपूत, एनपी प्रजापति, उमाशंकर गुप्ता, विजयलक्ष्मी साधौ, आरिफ अकील, अर्चना चिटनीस आदि शामिल हैं।
पराजय का डंक सहने वाले दिग्गजों में उमा भारती, हिम्मत कोठारी, चौधरी चंद्रभानसिंह, अंतरसिंह आर्य, सुभाष यादव, रामपालसिंह, अखण्ड प्रतापसिंह, रामकृष्ण कुसमारिया डॉ. गौरीशंकर शेजवार, हजारीलाल रघुवंशी, शोभा ओझा, नारायण त्रिपाठी, सुनील सूद, विभा पटेल, रश्मि पवार, जीतू पटवारी कैलाश चावला, सत्यदेव कटारे, भगवानदास सबनानी और दीपचंद यादव आदि शामिल हैं।