गीता इंदौर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) में सवा दो वर्षों से अधिक समय से रह रही है। मध्यप्रदेश पुलिस सहायता केंद्र के संयोजक ज्ञानेंद्र पुरोहित ने बताया कि वे प्रारंभ से ही गीता के माता-पिता को तलाश किए जाने पर जोर देते रहे हैं। इस संबंध में वे विदेश मंत्रालय को आगामी कार्ययोजना की जानकारी दे चुके हैं।
श्रीमती पुरोहित ने कहा कि भरपूर प्रयास करने के बावजूद यदि गीता के माता-पिता नहीं मिलते हैं, तब इस संबंध में दिव्यांगजन को पुनर्वासित करने के लिए दो आदर्श वैज्ञानिक विधियां हैं। मूकबधिरों और अन्य दिव्यांगों के लिए समुदाय आधारित पुनर्वास और संस्थागत आधारित पुनर्वास दो आदर्श विधियां हैं।
गीता को फ़िलहाल संस्थागत आधारित पुनर्वास विधि अनुसार रखा जा रहा है। किन्तु उसके मस्तिष्क पर प्रतिकूल असर दिखाई दे रहा है। पुरोहित दंपति ने बताया गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगजन को समाज में पुनर्वासित करने के लिए समुदाय आधारित पुनर्वास विधि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसके तहत दिव्यांग समाज में उठता-बैठता है और अपने आपको सामान्य महसूस करता है।
पाकिस्तान से भारत लाई गई गीता 26 अक्टूबर 2015 से यहां रह रही है। अब तक 15 से अधिक परिवारों ने उसके माता-पिता होने का दावा किया है। कई परिवारों के डीएनए नमूने भी लिए गए, लेकिन उनका मिलान गीता के डीएनए से नहीं हो सका है।