Dhar bhojshala survey : हिंदू पक्ष की ओर से याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) धार में विवादित भोजशाला-कमल मौला मस्जिद परिसर का अदालत के आदेश के अनुरूप वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर रहा है। इसमें ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) और जीपीएस मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को एएसआई को भोजशाला परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, जो एक मध्ययुगीन युग का स्मारक है। इसके बारे में हिंदुओं का मानना है कि यह देवी वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता है। यह सर्वे पिछले 64 दिनों से चल रहा है।
अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक, महाराजा भोज सेवा समिति के सचिव गोपाल शर्मा ने यह भी दावा किया कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में वैज्ञानिक सर्वेक्षण के दौरान मशीनों के उपयोग के बारे में बात की थी।
सर्वे में अब तक क्या मिला
खंडित पाषाण स्तंभों के अवशेष : सर्वे के 39वें दिन ASI की टीम को खुदाई के दौरान कुछ खंडित पाषाण स्तंभों के अवशेष मिले हैं। भोजशाला के भीतरी भाग में 3 दीवारें आपस में जुड़ी हुई मिली थीं। इनमें 2 दीवारें पूर्व से पश्चिम व 1 दीवार उत्तर से दक्षिण की ओर जा रही है। यहां 10 फीट तक खुदाई हुई। इतनी गहराई तक भी दीवार दिखाई दे रही है। इससे लग रहा है कि दीवार और भी अधिक गहराई तक हो सकती है। यह दीवार ईंटों की बनी हुई बताई जा रही है। माना जा रहा है यह भूकंपरोधी दीवार के तौर पर बनाई गई होगी। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। ALSO READ: Bhojshala: भोजशाला की खुदाई में निकले खंडित पाषाण स्तंभों के अवशेष, ASI सर्वे जारी
अकल कुई से लगी दीवार पर मिली गोमुख आकृति : 9 अप्रैल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने परिसर के पिछले हिस्से में महत्वपूर्ण धरोहरों का सर्वे किया। इस दौरान हिन्दू पक्ष ने दावा किया कि टीम को दरगाह क्षेत्र के पास अकल कुई से लगी दीवार में गोमुख आकृति मिली है। अन्य जानकारी के लिए परिसर के अंदर भी खोदाई की संभावना है। ALSO READ: Dhar Bhojshala: भोजशाला में सर्वे 36वें दिन भी जारी, मिली खंडित प्रतिमा
क्या है विवाद : भोजशाला मध्य प्रदेश में इंदौर से कुछ ही दूरी पर स्थित धार जिले में है। भोजशाला केंद्र सरकार के अधीन ASI का संरक्षित स्मारक है। आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अप्रैल 2003 के एक आदेश के मुताबिक यहां हर मंगलवार को हिंदू पूजा करते हैं, जबकि हर शुक्रवार को मुसलमान यहां नमाज अदा करते हैं।
क्या है भोजशाला मंदिर का इतिहास : भोजशाला का इतिहास जानने के जिए हमने धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट को खंगाला। वेबसाइट में दर्ज जानकारी के मुताबिक भोजशाला मंदिर को राजा भोज ने बनवाया था। राजा भोज परमार वंश के सबसे महान राजा माने जाते थे, जिन्होंने 1000 से 1055 ईस्वी तक राज किया। इस दौरान उन्होंने साल 1034 में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला नाम से जाना गया। दूर-दूर से छात्र यहां पढ़ने आया करते थे। इसी कॉलेज में देवी सरस्वती का मंदिर भी था। हिंदू धर्म में सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर बहुत भव्य था। सरस्वती मंदिर का उल्लेख शाही कवि मदन ने अपने नाटक में भी किया था। नाटक को कोकरपुरमंजरी कहा जाता है और यह अर्जुनवर्मा देव (1299-10 से 1215-18 ई.) के सम्मान में है जिन्हें मदन ने ही पढ़ाया था।
मां सरस्वती या कमाल मौला : भोजशाला मंदिर में हिंदुओं की देवी मां सरस्वती का मंदिर है। राजा भोज ने कॉलेज के निर्माण के दौरान ही इस कॉलेज में मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई थी। यहां दूर-दूर से छात्र पढ़ने आया करते थे। बताया जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला किया था। जिसके बाद से यह जगह पूरी तरह से बदल गई।
लंदन में है मां सरस्वती की प्रतिमा : कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में और 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवाया था। 19वीं शताब्दी में खुदाई के दौरान मां सरस्वती देवी की प्रतिमा मिली थी। जिस प्रतिमा को अंग्रेज अपने साथ ले गए जो अभी लंदन संग्रहालय में है। इस प्रतिमा को वापस भारत लाने के लिए भी विवाद चल रहा है।
कैसे शुरू हुआ भोजशाला विवाद : देश की आजादी के बाद भोजशाला में पूजा और नमाज को लेकर विवाद बढ़ने लगा। विवाद कानूनी लड़ाई में बदल गया। इसी दौरान 1995 में हुई घटना से बात और बिगड़ गई। जिसके बाद प्रशासन ने मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। फिर 1997 में प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। इस दौरान हिंदुओं को वर्ष में एक बार बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति दी गई। मुसलमानों को प्रति शुक्रवार दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुसलमानों को नमाज की अनुमति जारी रही। इस आदेश से विवाद और गहरा गया।