हम खुद को ठीक से समझ लें तो हीन भावना पैदा ही नहीं होगी-स्वप्निल कोठारी
मंगलवार, 12 जनवरी 2021 (20:05 IST)
इन्दौर। वर्तमान लाइफ-स्टाइल और स्ट्रेसफुल कॉम्पिटीशन के कारण पूरा समाज तनाव में रहता है और युवा पीढ़ी पर इस सबका अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कमियां हम सभी में होती हैं। बहुत सारे इन्फीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स भी हम सभी में होते हैं, किन्तु ये सारे नकारात्मक भाव हमारी जिंदगियों के अंतिम सत्य नहीं हैं।
सतत प्रयत्नों से, कड़े परिश्रम से और संकल्प शक्ति से हम उन तमाम कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं जो हमें नायक बनने से रोकती हैं। प्रत्येक युवा अपने जीवन का हीरो होता है और वह इस नायकत्व को लगातार प्रयास करके समाज के सामने स्थापित भी कर सकता है। आपकी कमजोरियां तथ्य हो सकती हैं सत्य नहीं।
पूर्ण अभ्युदय के तीसरे स्थापना वर्ष के अवसर पर इसके संस्थापक एवं रेनेसां यूनिवर्सिटी के चांसलर सीए स्वप्निल कोठारी ने ऑनलाइन काउंसलिंग के कार्यक्रम में उक्त बात कहीं। युवाओं के जीवन में डे-टू-डे आने वाली मानसिक एवं अन्य कठिनाइयों से कैसे सकारात्मक रूप से पार पाया जाए, इस विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में कोठारी ने कहा कि प्रत्येक मानसिक समस्या के पीछे इन्फीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स है। हीन भावना और कमज़ोरी में भी अंतर है। कमजोरी अंतत: आपके व्यक्तित्व को हीन भावना से भर देती है और आपका मन अस्वस्थ हो जाता है और एक विशियस-सर्कल शुरू हो जाता है।
दूसरों की सफलता पर दुखी होना इन्फीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स को दर्शाता है। जब आप अपनी तुलना दूसरों से करने लगते हैं तो आप अपने आपको कम, कमतर, हीन महसूस करने लगते हैं।
हम लगातार विकसित होते हैं, इवॉल्व होते हैं। अगर हम अपने आपको ठीक से समझ लें तो कभी भी हममें हीन भावना उत्पन्न नहीं होगी। प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट है और अपनी विशिष्टता का बोध होने पर हम स्वस्थ हो सकते हैं और अपने व्यक्तित्व को प्रकाशित कर सकते हैं। अपने आपको जानने वाला प्रत्येक युवा मुक्त और स्वतंत्र हो जाता है और यह स्वतंत्रता उसे न केवल जीवन में सफलता देती है बल्कि उसके व्यक्तित्व को सार्थकता भी दे देती है।
कमजोरियों को जान-समझकर ही दूर किया जा सकता है : प्रत्येक बड़ा और महान व्यक्ति अपने आपको समझ चुका व्यक्ति होता है। अपनी कमियों, कमजोरियों, कॉम्प्लेक्स को जान-समझ-स्वीकार करके ही उन्हें दूर किया जा सकता है। सम्पूर्ण आत्म-जागरण से ही व्यक्तित्व को जागृत किया जा सकता है। जागने से ही जीवन के समस्त अंधकार दूर किए जा सकते हैं।
आज का युवा जिन समस्याओं, कठिनाइयों, परेशानियों से जूझ रहा है आत्म-सजगता से ही उनसे पार पाया जा सकता है। यही मेंटल हेल्थ है और युवा अपने आपको अवेकन्ड करके अपना मेंटल एम्पायर प्राप्त कर सकता है।
स्वप्निल कोठारी ने कहा कि लड़ेंगे तो हारेंगे और जागेंगे तो जीतेंगे। युवा पीढ़ी आत्म-जागरण के द्वारा अपनी लाइफ में सेट किए हुए गोल्स को अचीव कर सकती है और एक सुंदर समाज की, कुंठाहीन समाज की रचना कर सकती है। रिलेशनशिप की समस्याओं को इमोशनल इंटेलीजेंस, साहचर्य और सहानुभूति से सुलझाया जा सकता है।
कोठारी ने कहा कि प्रत्येक रिश्ता तब तक स्वस्थ रहता है जब तक कि दोनों ही पक्ष साथ-साथ ग्रो करते रहें और यह ग्रो इमोशनल, इन्टेलेक्चुअल, साइकोलॉजिकल और फिजिकल चारों स्तरों पर होना चाहिए। इनमें से किसी भी स्तर पर विकास रुकने से रिश्तों में समस्याएं पैदा होती हैं। आपसी समझ से या मनोवैज्ञानिक परामर्श से इन प्रॉब्लम्स को दूर किया जा सकता है। अपने इमोशन्स को समझकर आप अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है डिप्रेशन : मेंगलोर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर-हेड डॉ. सुप्रिया हेगड़े ने कहा कि कॉम्प्लेक्स या हीनता बोध ग्रंथियां बचपन या किशोर अवस्था में ही प्रविष्ट हो जाती हैं। कई बार ऐसा यूथ दिखने में नार्मल लगता है लेकिन अंदर ही अंदर कुंठित होकर नकारात्मक गतिविधियों जैसे डिप्रेशन, नशा या आत्मघाती प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर हो जाता है। झिझक, नासमझी या सामाजिक उपहास के डर से ये चिकित्सक या मनोवैज्ञानिक के पास नहीं जाते हैं। अगर आप में या अपने आसपास किसी में आपको ऐसी प्रवृत्ति दिखाई दे तो उसे साइकेट्रिस्ट के पास जाने हेतु प्रेरित करें। समय पर मार्गदर्शन और उपचार से डिप्रेशन और हीनताबोध से मुक्ति पाई जा सकती है।
अगर रात को सोते-सोते आप अचानक जाग जाएं और आपका दिल जोर-जोर से धड़क रहा हो या कई दिनों तक आपको नींद न आए, भूख न लगे या शारीरिक इच्छाओं में कमी दिखाई दे तो यह डिप्रेशन का लक्षण हैं और तुरंत डॉक्टर या साइकेट्रिस्ट से परामर्श लेने की आवश्यकता है। डिप्रेशन या नैराश्य एक ऐसी अदृश्य बीमारी है, जो किसी भी वर्ग, उम्र या जेंडर के व्यक्ति को हो सकती है। कार्यक्रम के अंतर प्रश्नोत्तर सेशन भी हुआ। संचालन प्राची रॉय ने किया।