भोपाल। मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिम) की 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा गुरुवार से शुरु हो रही है। कोरोना के चलते दो साल बाद ऑफलाइन हो रही परीक्षा को लेकर खास इंतजाम किए गए है। कोरोना संक्रमित स्टूडेंट्स के लिए अलग से आइसोलेशन रूम बनाए गए है। कोरोना के देखते हुए छात्रों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए परीक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ाने के साथ बोर्ड परीक्षा में एक डेस्क पर एक ही विद्यार्थी को बैठाया जाएगा।
कोरोना के चलते इस बार स्कूलों में पढ़ाई खासी प्रभावित हुई है। ऐसे में बोर्ड परीक्षा को लेकर स्टूडेंट्स एक मनौवैज्ञानिक प्रेशर का अनुभव कर रहे है जिसके कारण परीक्षा के समय छात्रों और उनके अभिभावकों का मानसिक तनाव बढ़ने लगता है। परीक्षा के दौरान अत्यधिक तनाव लेने से छात्रों को विभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारी जैसे नींद की समस्या, थकान, घबराहट, माइग्रेन और अन्य बीमारियाँ घेर लेती हैं जो परीक्षा देने के समय अत्यधिक कठिनाईयां पैदा करती हैं। विद्यार्थियों को परीक्षा के पहले एवं परीक्षा के दौरान मानसिक तनाव को दूर करने के लिए माशिम पहले ही टोल-फ्री हेल्पलाइन सेवा चला रहा है।
एग्जाम के समय बढ़ जाती है एंजाइटी- मनोचिकित्सक और काउंसलर डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी बच्चों को सलाह देते हुए कहते हैं कि कोरोना काल में लंबे समय तक ऑफलाइन पढ़ाई होने का सीधा असर पढ़ाई की गुणवत्ता के साथ-साथ बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है। ऐसे में जो बच्चे 10वीं और 12 वीं की बोर्ड परीक्षा दे रहे है वह एक प्रेशर का अनुभव कर रहे है। ऐसे में परीक्षा के समय पैरेंट्स की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है और उन्हें संवाद बनाए रखना बेहद जरुरी है।
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि बच्चों में अपने कैरियर के प्रति एक अलग तरह की एंजाइटी होती है और वह अपने नंबरों और परसेंटेज को लेकर बहुत अधिक चिंतित होते हैं और अचानक से बच्चों में अनिद्रा और घबराहट की शिकायतें बहुत बढ़ जाती है। ऐसे में पैरेटेंस की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है और उनको बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। वह कहते हैं कि परीक्षा को लेकर दबाव में आने की जरूरत नहीं है। एग्जाम में आने वाले परसेंट या नंबर एक मानव निर्मित क्राइटेरिया है।
एग्जाम को लेकर डरावने वाले आंकड़ें-दरअसल एग्जाम और उसके दबाव को लेकर मध्यप्रदेश की तस्वीर बेहद डरावनी है। NCRB की रिपोर्ट बताती है कि साल 2017-19 के बीच 14-18 की आयु वाले 24 हजार से ज्यादा बच्चों ने आत्महत्या की। जिसमें एग्जाम में फेल होने से आत्महत्या करने के चार हजार से अधिक मामले है। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरन 4046 बच्चों ने परीक्षा में फेल होनी वजह से आत्महत्या की है।
वहीं एग्जाम में फेल होने के चलते बच्चों की सबसे अधिक आत्महत्या करने की रिपोर्ट ने हमारे पूरे एजुकेशन सिस्टम पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। वहीं मध्यप्रदेश में देश में सबसे 14-18 आयु-वर्ग के छात्रों के सुसाइड करने के NCRB के आंकड़े को वह भविष्य के लिए काफी खतरनाक संकेत बताते है।
बच्चों के बढ़ते सुसाइड के केस पर डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षार्थी आत्महत्या की हाईरिस्क ग्रुप की कैटेगरी में आते है,इसलिए स्कूल-कॉलेज में भी समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि मानसिक रोगों जैसे डिप्रेशन की पकड़ पहले से ही की जा सके और उचित इलाज़ से आत्महत्या के खतरे को समय रहते समाप्त किया जा सके।