सिंहस्थ के लिए उज्जैन के पास साढ़े 12 हजार बीघा में बनेगा नया नगर, हरिद्वार की तर्ज पर होगा विकास

विकास सिंह

सोमवार, 13 जनवरी 2025 (17:52 IST)
भोपाल। 2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ को लेकर उज्जैन के पास नया नगर बसाया जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोह यादव ने नया नगर बसाने का जानकारी देते हुए कहा कि साढ़े बारह हजार बीघा क्षेत्र में बसाए जाने वाले इस नगर सभी साधू-संतों, धर्मगुरुओं, महामंडलेश्वर, विभिन्न अखाड़ों को भूखंड दिये जाएंगे। उज्जैन को अब हरिद्वार की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि सदावल के पास चार हैलीपेड बनाए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने आज उज्जैन की मोक्षदायिनी क्षिप्राजी को फिर से प्रवाहमान बनाने के लिए 614 करोड़ से ज्यादा लागत की सेवरखेड़ी-सिलारखेड़ी परियोजना का शिलान्यास और भूमिपूजन किया। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल के आतिथ्य में इस परियोजना की नींव रखी गई। इस परियोजना से जल संग्रह करके करीब 65 गांवों के 18 हजार 800 हेक्टेयर क्षेत्र में पेयजल और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इस परियोजना के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल को धन्यवाद दिया और कहा कि उज्जैन की दशकों पुरानी समस्या का आज अंत हो रहा है। उन्होंने कहा कि ये मां क्षिप्रा की कृपा है जो सारे देवी देवता उज्जैन में विराजे हैं। उन्होंने सिंहस्थ का उल्लेख करते हुए कहा कि 2016 में नर्मदा क्षिप्रा के जल से सिंहस्थ में श्रद्धालुओं को स्नान कराना पड़ा था लेकिन अब 2028 में क्षिप्रा के जल में ही साधू-संत और श्रद्धालु स्नान करेंगे। इस परियोजना की रुपरेखा मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने 2024 में तैयार की थी, जिसे अब धरातल पर उतारा जा रहा है।

इस तरह प्रवाहमान होगी क्षिप्रा नदी-इस परियोजना के अंतर्गत सेवरखेड़ी में 1.45 घनमीटर जल क्षमता का बैराज बनाया जाएगा। इसके बाद वर्षाकाल के जल को यहां से करीब साढ़े छह किलोमीटर दूर पाइप के जरिए लिफ्ट करके उज्जैन के ही ग्राम सिलारखेड़ी में निर्मित तालाब में एकत्रित किया जाएगा। इसके लिए तालाब की उंचाई बढ़ाकर उसके जलभराव की क्षमता में भी वृद्धि की जाएगी। जिससे तालाब में कुल 51 घनमीटर जल जमा हो सकेगा । इसके बाद जब क्षिप्रा नदी में पानी कम होगा तब इसी तालाब से क्षिप्रा में जलापूर्ति की जाएगी। यानि क्षिप्रा में अब इसी नदी का जल रहेगा।

इस परियोजना को सितम्बर-2027 तक पूरी किये जाने का लक्ष्य रखा गया है ताकि 2028 में उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ महाकुंभ में पुण्यदायी स्नान के लिए आने वाले साधू-संतों और श्रद्धालुओं को शिप्रा नदी में पर्याप्त शुद्ध और पवित्र जल प्राप्त हो सकेगा। इस परियोजना के माध्यम से क्षिप्रा नदी को भी एक सतत और निर्मल प्रवाहमान नदी बनाया जा सकेगा, जो राज्य के जल प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इस परियोजना को आगामी 25 वर्ष बाद की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

अब क्षिप्रा में नहीं मिलेगा कान्ह का दूषित जल- इसी के साथ क्षिप्रा को अब भविष्य में प्रदूषण से मुक्त रखने की भी योजना बना ली गई है। इसके लिए कान्ह डायवर्जन क्लोज डक्ट परियोजना से कान्ह नदी के दूषित जल को क्षिप्रा में मिलने से रोका जाएगा। इसके लिये ग्राम जमालपुरा में कान्ह नदी पर एक बैराज का निर्माण किया जाएगा, इससे नदी के दूषित जल को क्लोज डक्ट के माध्यम से व्यपवर्तित किया जाएगा। परियोजना की कुल लम्बाई 30.15 कि.मी है, जिसमें 18.15 कि.मी. लम्बाई में कट एण्ड कव्हर द्वारा क्लोज डक्ट का निर्माण किया जाएगा। साथ ही 12 कि.मी. लम्बाई में टनल का निर्माण भी किया जाएगा, जिससे दूषित जल डायवर्ट होगा। टनल में 4 शाफ्ट भी बनाई जाएंगी, इससे टनल में पहुँचना सुगम हो जाएगा और साफ-सफाई के लिए पहुँच मार्ग भी उपलब्ध होगा।
 

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