अभ्यास मंडल की व्याख्यानमाला में वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक पी. साईंनाथ
इंदौर। वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक पी. साईंनाथ ने कहा है कि आने वाले समय में पानी के निजीकरण के साथ ग्रामीण संकट गहराने के आसार हैं। इस समय ग्रामों में खेती के साथ पानी रोजगार पलायन सहित कई संकट है। वह आज यहां अभ्यास मंडल की ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में जाल सभागृह में 'ग्रामीण संकट असमानताएं और प्रजातंत्र' विषय पर संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की जनगणना में शहरी क्षेत्र की तो परिभाषा दी गई है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की कोई परिभाषा नहीं देखी। हमारे देश में ग्रामीण आबादी 83.3 करोड़ है तथा इस आबादी के बीच में 780 भाषाएं हैं। इन भाषाओं में से 225 भाषा है तो मर चुकी हैं। आदिवासियों की अपनी भाषाएं हैं। इन भाषाओं की स्थिति भी दिन-ब-दिन बद से बदतर हो रही है।
जाल सभागृहमें अभ्यास मंडल की ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला को सुनते श्रोतागण
साईंनाथ ने कहा कि वर्तमान में ग्रामीण संस्कृति संकट में है। हमारे देश में केवल किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं बल्कि जुलाहा भी आत्महत्या कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पानी, भूख, भोजन, कृषि, काम, भाषा, रोजगार, शिक्षा और पलायन सहित 12 तरह के संकट ग्रामीणों के सामने मौजूद हैं। इन संकटों से ग्रामीणों को मुकाबला करना पड़ रहा है जबकि सरकार की ओर से इस दिशा में काम नहीं हो रहा है।
हमारे देश में 42% बच्चे कुपोषित है इसका कारण यह है कि इन बच्चों और उनके परिवारों के पास पर्याप्त का ध्यान और विटामिन नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में 2013-14 के सर्वे के अनुसार एक किसान परिवार की कुल आय 6426 रुपए प्रति माह है' सरकार के इस आंकड़े में विसंगति यह है कि पंजाब में किसान की आय 10000 रुपए है तो उड़ीसा में मात्र 3000 रुपए है। इससे स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा असमानता का कारण सरकार की योजना है, न कि अर्थव्यवस्था है।
साईंनाथ ने उदाहरण देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में जल संकट स्थिति में है, वही सरकार द्वारा धड़ल्ले से स्विमिंग पूल के लिए भरपूर जल दिया जा रहा है। ऐसी ही स्थिति ग्रामीण क्षेत्र में है, जहां ज्वार की फसल के लिए पानी नहीं है तो वहीं गन्ने की फसल को भरपूर पानी दिया जा रहा है।
इस समय ग्रामीण क्षेत्र में जल संकट की जो हालत है, उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में पानी का निजीकरण होने के आसार हैं। इस समय इस देश के समक्ष जो चिंताजनक स्थिति है, वह यह है कि देश के कुछ धनाढ्य व्यक्तियों को किसान बताकर रियायत दी जा रही है जबकि हकीकत में जो किसान है, वह आत्महत्या करने के रास्ते पर बढ़ रहा है।
साईंनाथ ने कहा कि इस समय जो आंकड़े सामने आए हैं, उसके अनुसार 1995 से 2015 तक की अवधि में करीब 3.30 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें भी चिंताजनक यह है कि सरकार इस आत्महत्या के आंकड़े को ज्यादा नहीं मानती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में धर्म के नाम पर पशुओं के खरीदी बिक्री तथा पशुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने एवं पालने में भी इतना संकट है कि उसने ग्रामीणों की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया है।
इस ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में कार्यक्रम के प्रारंभ में वक्ता का स्वागत पीसी शर्मा एम के उपाध्याय एवं अशोक मित्तल ने किया। कार्यक्रम का संचालन पल्लवी अड़ाव ने किया एवं स्मृति चिन्ह रामेश्वर पटेल ने भेंट किया अंत में आभार आलोक खरे ने माना।