इंदौर के शेर कहे जाने वाले सुरेश सेठ नहीं रहे

इंदौर। अर्जुन सिंह नीत कांग्रेस सरकार में मध्यप्रदेश के पूर्व स्वायत्त शासन और नगरीय प्रशासन मंत्री रहे मशहूर वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुरेश सेठ का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे इंदौर नगर निगम के पूर्व महापौर रहे और 'इंदौर के शेर' के नाम से विख्यात थे। उन्होंने मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन पर लोकसभा स्पीकर श्रीमती सुमित्रा महाजन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शोक व्यक्त किया।
 
 
सुरेश सेठ का पिछले काफी समय से स्वास्थ्य ठीक नहीं था और इसी कारण उनका उपचार इंदौर के ही एक निजी अस्पताल में चल रहा था। सुरेश सेठ के निधन से शहर और प्रदेश कांग्रेस में शोक की लहर छा गई।
 
सुरेश सेठ का शुमार उन कद्दावर कांग्रेस नेता में होता था, जो किसी भी जन समस्या के लिए सड़कों पर उतर आते। इंदौर शहर आज जो रोशनी में नहा रहा है, यह सब उन्हीं के महापौर कार्यकाल में हुआ। पहले सड़कों पर उजाले के बल्‍ब लगे होते थे लेकिन  सुरेश सेठ का ही ये ऐतिहासिक निर्णय था कि सड़कों को ट्‍यूब लाइट लगाकर रोशन किया जाए।
 
इंदौर की राजनीति में शेर के नाम से विख्यात : सुरेश सेठ का आक्रामक अंदाज और बेबाक रवैया शहरवासियों को बेहद पसंद आता था। वे अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ भी आवाज उठाने से नहीं चूकते थे। उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 5 से वे एक बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी चुनाव जीत चुके थे। 


सुरेश सेठ का राजनीतिक सफर : वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुरेश सेठ की इंदौर की राजनीति में गहरी पैठ थी। वे सबसे पहले 1977 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए, वह भी तब जबकि पूरे देश में जनता पार्टी की लहर थी और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आ सकी।
 
1980 में वे कांग्रेस (आई) के टिकट पर विधायक बने तो 1985 में उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीते। इसी तरह 1990 में वे इंदौर के विधानसभा क्षेत्र 2 से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। उन्होंने विष्णु प्रसाद शुक्ला को भी विधानसभा चुनाव में हराया था।
 
 
कुछ समय के लिए राजनीति से दूर हुए : 1999 में इंदौर मे महापौर के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय से हार जाने के बाद सुरेश सेठ राजनीति से लगभग दूर रहे, लेकिन जब कांग्रेस को उनकी जरुरत महसूस हुए तो सुरेश सेठ 10 साल बाद 2008 में फिर से राजनीति के मैदान में कूद पड़ें. 2008 में कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा क्षेत्र इंदौर 2 से टिकट दिया। हालांकि इस चुनाव में उन्हें भाजपा प्रत्याशी रमेश मेंदोला के हाथों 40 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
 
श्रीमती सुमित्रा महाजन की श्रद्धांजलि : लोकसभा स्पीकर श्रीमती सुमित्रा महाजन ने सुरेश सेठ को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि शहर ने सतत् संघर्ष करने वाले, शहर के लिए जीने वाले एक जनसेवक को हमने खो दिया। वे संपूर्ण मध्यप्रदेश को अपनी बुलंद इच्छाशक्ति और जुझारूपन से आह्वान करने वाले इन्दौर के नुमाइंदे थे।
 
 
सुरेश सेठ जी उसूलों की, जन अधिकारों की वकालत करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने महापौर के रूप में शहर में नई रौशनी फैलाकर विकास की शुरुआत की थी। वर्ष 1999 में इन्दौर के महापौर का चुनाव हारने के बाद आप सक्रिय राजनीति से दूर रहे। मगर शहर के विकास के मुद्दों के लिए इनका सतत् संघर्ष एक संकल्प रहा।
 
वे उन नेताओं में से रहे जिन्होंने सादगी का झण्डा थामकर जनता का विश्वास जीता था। जीवन के अंतिम समय तक शहर को लेकर उनकी चिन्ता, सजगता हमेशा रही। शहर का छोटा-से-छोटा मुद्दा उनके लिए महत्व रखता था। मैं अपनी ओर से एवं इन्दौर शहर की ओर से श्री सेठ के परिवारजनों के प्रति हार्दिक संवेदनाएं प्रेषित करती हूं। ईश्वर उनके परिवार को इस दु:ख को सहन करने की शक्ति तथा दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।

मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने जताया शोक : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई वरिष्ठ सियासी नेताओं ने सेठ के निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त की है। मुख्यमंत्री के ट्वीट में कहा गया, 'लोकप्रिय नेता, इंदौर के पूर्व महापौर, पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेश सेठ के निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि। इंदौर के विकास में आपका योगदान अविस्मरणीय है। ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति और परिजनों को संबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूँ।'

वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा, 'पूर्व मंत्री, पूर्व महापौर, शेर-ए-इंदौर सुरेश सेठ का निधन निश्चित ही एक ऐसी क्षति है, जो अपूरणीय है। एक जिंदादिल, बेबाक शैली वाला, कर्मठ, ईमानदार, आक्रामक अन्दाज वाला शख्स हमारे बीच से आज चला गया।'
 

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