भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में सिंहस्थ और सत्ता को लेकर बना मिथक इस बार भी विधानसभा चुनाव में नहीं टूटा है। मध्यप्रदेश में यह एक ऐसा मिथक है कि जो भी मुख्यमंत्री सिंहस्थ कराता है, उसकी कुर्सी चली जाती है। इस बार भी चुनाव परिणाम ने सिंहस्थ से जुड़े इस मिथक पर मोहर लगा दी। 2016 का सिंहस्थ महाकुंभ कराने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी चली गई है, वहीं सूबे में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार की विदाई के बाद कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है।
इस बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तनखा के एक ऐसा ट्वीट किया है, जो सियासी हल्कों में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तनखा ने सिंहस्थ के मिथक से जुड़ी खबर शेयर करते हुए लिखा है कि आगे से सिंहस्थ के समय प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए। विवेक तनखा ने लिखा है कि सिंहस्थ होस्टेड सीएम की कुर्सी क्यों जाती है? आगे से सिंहस्थ के समय राष्ट्रपति शासन लग जाना चाहिए।
वहीं विवेक तनखा के इस ट्वीट पर साधु-संतों ने कड़ा ऐतराज जताया है। सिंहस्थ समन्वय समिति के अध्यक्ष और उज्जैन अखाड़ा परिषद के पूर्व महामंत्री अवधेश पुरी महाराज का कहना है कि कांग्रेस धार्मिक आस्थाओं का मखौल का उड़ा रही है। उन्होंने कांग्रेस को अतिउत्साह से बचने और बेवजह सिंहस्थ जैसे धार्मिक आयोजन को सियासत से जोड़ने पर कड़ा ऐतराज जताया है।
अवधेश पुरी महाराज ने कहा कि जिस पार्टी को महाकाल का आशीर्वाद प्राप्त होता है, उसी पार्टी को सिंहस्थ का आयोजन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस को भी महाकाल से प्रार्थना करनी चाहिए कि उसको भी सिंहस्थ जैसे विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन करने का सौभाग्य प्राप्त हो।
इससे ठीक 12 साल पहले सिंहस्थ 1993 में हुआ था। उस वक्त सुंदरलाल पटना मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। लेकिन सिंहस्थ होने के 7 महीने बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद बहाने पर केंद्र सरकार ने पटवा सरकार को बर्खास्त कर दिया था, वहीं 1968 सिंहस्थ के समय गोविंद नारायण सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। सिंहस्थ होने के 11 महीने बाद आलाकमान से टकराव के चलते उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।