युधिष्ठिर के इन 7 निर्णयों ने रचा था इतिहास

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020 (15:54 IST)
कुरुक्षेत्र के युद्ध में भारत का सबसे बड़ा युद्ध हुआ था। इस युद्ध में कौरव और पांडवों की सेना ने भाग लिया था। इस युद्ध को महाभारत का युद्ध कहते हैं। पांडवों के सबसे बड़े भाई युद्धिष्ठिर के उन 5 महत्वपूर्ण निर्णय के बारे में जानते हैं जो कि महाभारत युद्ध के निर्णयक मोड़ थे।
 
 
1. द्रौप‍दी को अपनी भार्या बनाना : अर्जुन ने स्वयंवर की प्रतियोगिता को जीत लिया था। नियम के तहत द्रौपदी का विवाह सिर्फ अर्जुन से होना चाहिए था। युधिष्ठिर धर्मराज, सत्यवादी और न्यायप्रिय थे लेकिन फिर भी उन्होंने क्यों वेद व्यास या कुंती के कहने पर द्रौपदी को अपनी और अन्य पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार किया? युधिष्ठिर का यह निर्णय भी महत्वपूर्ण था।
 
 
2. जुआ खेलने का निर्णय : भीष्म की अनुमति के बाद द्यूत क्रीड़ा का आयोजन हुआ था। इस आयोजन के लिए पांडवों पर कोई दबाव नहीं था। लेकिन युधिष्ठिर ने जुआ खेलने का निर्णय लिया और वे इंद्रप्रस्थ सहित सबकुछ हार गए।
 
 
3. द्रौपदी को दांव पर लगाना : युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाकर दूसरी सबसे बड़ी भूल की थी जिसके कारण महाभारत का युद्ध होना और भी पुख्ता हो गया। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों और पत्नी तक को जुए में दांव पर लगाकर अनजाने ही युद्ध और विनाश के बीज बोए थे।
 
 
4. युधिष्ठिर का छल में साथ देना : पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।' श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'परंतु हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा कि मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर वे शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला।
 
 
5.युयुत्सु को अपने पक्ष में करना : युयुत्सु कौरवों की ओर से युद्ध लड़ने कुरुक्षेत्र गए थे। वे कौरवों के भाई थे लेकिन उन्होंने चीरहरण के समय कौरवों का विरोध कर पांडवों का साथ दिया था। वे हर समय कौरवों की अनैतिक हरकतों का विरोध करते रहे थे। यह बाद युधिष्ठिर अच्छी तरह जानते थे। युद्ध के प्रारंभ होने वाले दिन एन वक्त पर युधिष्ठिर ने उसे समझाया कि तुम अधर्म का साथ दे रहे हो। ऐसे में युयुत्सु ने विचार किया और वह डंका बजाते हुए कौरवों की सेना से पांडवों की सेना की ओर आ गया।
 
 
6. भीष्म से उनकी मृत्यु का रहस्य जानना : युधिष्ठिर ने देखा कि भीष्म तो पाण्डव-पक्ष की सेना को बिलकुल चौपट किए दे रहे हैं तब उन्होंने पितामह के पास पहुंचकर उनके वध का उपाय पूछा। भीष्म ने युधिष्ठिर को उपाय बताया और इस तरह अर्जुन ने शिखंडी को अपने आगे खड़ा करके भीष्म के शरीर को तीरों से छलनी कर दिया।

 
7.राजा युधिष्ठिर : महाभारत युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने ही भारत पर राज किया था। 2964 ई. पूर्व युधिष्ठिर का राज्यारोहण हुआ था। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया था। तब युधिष्ठिर ने सशरीर ही स्वर्ग जाने का निर्णय लिया। युधिष्ठिर सहित पांचों पांडव अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के पुत्र महापराक्रमी परीक्षित को राज्य देकर महाप्रयाण हेतु स्वर्ग की ओर चल दिए, लेकिन रास्ते में द्रौपदी सहित सभी पांडव मृत्यु को प्राप्त हुए। एक मात्र युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग पहुंचे।
 

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