Mahabharat 5 May Episode 77-78 : जब श्रीकृष्ण मारने दौड़े भीष्म को तो अर्जुन गिर पड़े चरणों में

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 5 मई 2020 (20:03 IST)
बीआर चौपड़ा की महाभारत के 5 मई 2020 के सुबह और शाम के 77 और 78वें एपिसोड में श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से भीष्म का सिर काटने के लिए दौड़ना और भीष्म को पराजित करने की तरकीब खोजना बताया गया।
 
दोपहर के एपिसोड की शुरुआत भीष्म पितामह और अर्जुन के युद्ध से होती है। दोनों के बीच घमासान युद्ध चलता है। इस बीच द्रोण भी अर्जुन से युद्ध करने लगते हैं। अर्जुन कोहराम मचा देता है। भीष्म पितामह के पास जाकर दुर्योधन कहता है कि आप और द्रोणाचार्य मिलकर भी इसका सामना नहीं कर पा रहे हैं जो यह किसके रोके रुकेगा? और जिस योद्धा (कर्ण) में इसे रोकने की क्षमता है उसे आप अपने ध्वज की छाया तक देने को तैयार नहीं। हे कुरुश्रेष्ठ हमारी विजय के लिए अर्जुन वध आवश्यक है और आप अर्जुन वध करेंगे नहीं, तो फिर कर्ण के अतिरिक्त ऐसा कौन योद्ध है जो अर्जुन को रोक सके?
ALSO READ: Mahabharat 4 May Episode 75-76 : महाभारत युद्धारंभ, पांडवों के शिविर में चिंता की लहर
भीष्म कहते हैं कि वह असभ्य योद्धा मेरे ध्वज तले युद्ध नहीं करेगा। यदि तुम्हें उसे युद्ध में उतारना है तो बना लो कोई और सेनापति।..दुर्योधन कहता है कि ना ऐसा मैंने कहा है और ना ऐसा सोच सकता हूं। भीष्म कहते हैं कि तब विश्वास रखो, जब तक मेरे हाथ में धनुष है मैं तुम्हें पराजित नहीं होने दूंगा। यह कहकर भीष्म और अर्जुन का युद्ध पुन: प्रारंभ हो जाता है।
 
इधर, दुर्योधन, भीम, अभिमन्यु, युधिष्ठिर, शकुनि, कृपाचार्य आदि सभी को युद्ध करते हुए बताया जाता है। बाद में फिर से भीष्म और अर्जुन का युद्ध बताते हैं। भीष्म अपने तीरों से श्रीकृष्ण के दोनों हाथों पर तीर मार देते हैं। अर्जुन वो दोनों तीर निकालते हैं। उन्हें क्रोध आता है। वह अपने तीर से भीष्म के सारथी को मार देता है। तब भीष्म वहां से निकल जाते हैं। फिर अर्जुन सेना का संहार करने लगता है।
ALSO READ: Mahabharat 3 May Episode 73-74 : कर्तव्य पालन के मार्ग पर तो मृत्यु भी कल्याणकारी
युद्ध के बाद शिविर में दुर्योधन से कर्ण पूछता है कि आज क्या हुआ? तब शकुनि, दु:शासन भी मौजूद होते हैं। कर्ण कहता है कि आपके प्रधानसेनापति ने तो इच्छामृत्यु का कवच पहन रखा है तो मैं तो समझ रहा था कि विजयी तो आज तुम्हारी ही हुई होगी। शकुनि कहता है कि इसी इच्छामृत्यु ने तो समस्या खड़ी कर दी है। वो पांडवों का वध नहीं कर सकते और कोई और उनका वध नहीं कर सकता। भांजे ये तुम्हारे गंगा पुत्र हमें हारने तो अवश्य नहीं देंगे लेकिन यह भी निश्चित है कि यह जीतने भी नहीं देंगे।
 
बीआर चोपड़ा की महाभारत में जो कहानी नहीं मिलेगी वह आप स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें... वेबदुनिया महाभारत
 
तब दु:शासन कहता है कि ऐसे प्रधानसेनापति का अर्थ ही क्या? दुर्योधन कहता है कि मैं तो उन्हें प्रधानसेनापति बनाना ही नहीं चाहता था किंतु आपने जिद की मामाश्री। तब शकुनि कहते हैं कि ये जो भारतवर्ष के इतने ध्वज तुम्हारे साथ दिख रहे हैं ये उसी प्रधानसेनापति के कारण है वर्ना युद्ध में तुम अकेले खड़े दिखाई देते।...लेकिन मैं क्या करूं मामाश्री? हमारी विजय के लिए अर्जुन वध आवश्यक है और पितामह भीष्म अर्जुन वध करेंगे नहीं और उस अर्जुन ने आज शवों के ढेर लगा दिए हैं। फिर दुर्योधन कहता है कि यदि अर्जुन प्रश्न है तो उस प्रश्न का उत्तर मेरा ये मित्र कर्ण है। अब पितामह भीष्म के स्थान पर किसी और को सेनापति नियुक्त किया जाए इस पर विचार करो। शकुनि कहता हैं कि इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं क्योंकि पांडव यह युद्ध जीतना चाहते हैं तो उन्हें भी गंगा पुत्र भीष्म का वध करना ही होगा। उनका कार्य हम क्यूं करे भला? ये कांटा तो उनके भी कंठ में अटका हुआ है।
ALSO READ: Mahabharat 2 May Episode 71-72 : युद्ध क्षेत्र में प्रकट हुईं माता दुर्गा, अर्जुन की दुविधा
अगले दिन फिर युद्ध की शुरुआत होती है। भीष्म और अर्जुन का युद्ध होता है। इस बीच श्रीकृष्ण अर्जुन से क्रोध में कहते हैं कि मैं तुम से बार-बार कह रहा हूं कि तुम सामने खड़े शख्स में अपने पितामह को मत देखो। क्या तुम युद्ध हारना चाहते हो? जानते हो उन्होंने तुम्हारे कितने वीर योद्धाओं का वध किया है? तुम उन सभी के ऋणि हो कुंती पुत्र। यदि गंगा पुत्र का वध करके उनका ऋण तुम नहीं उतारोगे तो उनका वध करके उनका ऋण मैं उतारूंगा। 
 
ऐसा कहते हुए श्रीकृष्ण रथ से उतर जाते हैं और भीष्म की ओर कदम बढ़ने लगते हैं। कुछ दूर चलकर वे अपनी अंगुली उपर उठाते हैं। अंगुली उठाते ही उनकी अंगुली में सुदर्शन घुमने लगता है। यह देखकर भीष्म प्रसन्न होकर प्रणाम करते हैं और कहते हैं कि तुम्हारा स्वागत है वासुदेव, स्वागत है। मुझे मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं तुमने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी। हे गोविंद स्वयं मुझे मारने आकर तीनों लोकों में मेरा गौरव बढ़ा दिया है। इससे मेरा कल्याण होगा। यह कहते हुए भीष्म अपने दोनों हाथ फैला देते हैं।
ALSO READ: Mahabharat 1 May Episode 69-70 : दुर्योधन का कपट और शिखंडी का रहस्य उजागर
तभी अर्जुन रथ से उतरकर दौड़ता है केशव केशव कहता हुआ और वह श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ लेता है। नहीं केशव नहीं केशव, मुझे क्षमा कीजिए केशव। यह कहते हुए वह श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ता है। अर्जुन कहता है कि आप वचनबद्ध हैं कि आप इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे। यदि आपने शस्त्र उठा लिया तो आपका ये भक्त इतिहास में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा। मुझे इस कलंक से बचा लीजिए केशव। मैं वचन देता हूं कि अब मेरे वाण किसी को प्रणाम नहीं करेंगे। यह सुनकर सुदर्शन चक्र गायब हो जाता है। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपना धनुष उठा लीजिए गंगा पुत्र। भीष्म प्रणाम करके धनुष उठा लेते हैं। फिर दोनों में घमासान युद्ध होता है।
 
सूर्यास्त के बाद शिविर में भीष्म के घावों को ठीक किया जाता है। भीष्म कहते हैं कि अब भी कुछ भी नहीं बिगड़ा है पुत्र लौटा दो उनका इंद्रप्रस्थ। सभी के बीच वाद विवाद होता है। तब दुर्योधन कहते हैं कि आप मेरे मित्र कर्ण को किस अपराध की सजा दे रहे हैं? तब भीष्म बताते हैं कि उसने मेरे गुरु परशुराम का अपमान किया है। उसने भरी सभा में मेरी कुलवधु द्रौपदी को वैष्या कहा है। वो मेरे ध्वज तले युद्ध नहीं कर सकता।
 
अगले दिन फिर युद्ध प्रारंभ होता है। भीम को दुर्योधन और दु:शासन के भाई घेर लेते हैं। भीम अकेला ही सभी से लड़ता है। वह 10 कौरवों को मार देता है। इधर, संजय इस घटना को बताता है। गांधारी पूछती है युद्ध में आज क्या हुआ। धृतराष्ट्र कहते हैं कि युद्ध में आज हमारे 10 पुत्र विरगति को प्राप्त हो गए।
ALSO READ: Mahabharat 30 April Episode 67-68 : संजय को इस तरह मिली दिव्य दृष्टि
अगले दिन फिर युद्ध प्रारंभ होता है। पांडव शिविर में भीष्म का वध करने की रणनीति पर विचार होता है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि युधिष्ठिर जाएं और गंगा पुत्र भीष्म ने इन्हें जो विजयी होने का आशीर्वाद दिया था उन्हें लौटा आएं। युधिष्ठिर कहते हैं कि उनका आशीर्वाद लौटा आऊं वासुदेव? श्रीकृष्ण कहते हैं हां। यदि उन्होंने विजयी होने का आशीर्वाद दिया है तो उनके उस आशीर्वाद की रक्षा भी तो वही करेंगे ना? आप चाहें तो पार्थ को भी साथ लेते जाएं।
 
श्रीकृष्ण के आदेश पर युधिष्ठिर और दुर्योधन भीष्म के शिविर में जाते हैं। उन्हें प्रणाम करते हैं। भीष्म कहते हैं कि कैसे आना हुआ। अर्जुन कहते हैं कि हम तो अपने शरीर की ओर से आभार प्रकट करने आएं हैं। आपने बाणों से हमारे शरीर को आपके वाणों से घावों का प्रसाद मिला, वही हमारे लिए आशीर्वाद है किंतु अब कोई आशीर्वाद न दें पितामह। भीष्म कहते हैं कि परंतु क्यूं? तब युधिष्ठर कहते हैं कि आपके आशीर्वाद और हमारे बीच स्वयं आप खड़े हैं। भीष्म समझ जाते हैं और कहते हैं कि मैं विवश हूं पुत्र। तब युधिष्ठिर कहते हैं कि तभी तो पितामह हम युद्ध के पहले दिन आपने जो विजयीश्री का आशीर्वाद दिया था उसे लौटाने आएं हैं। यही वासुदेव ने कहा है।
ALSO READ: Mahabharat 29 April Episode 65-66 : श्रीकृष्ण को बंदी बनाने का आदेश, कर्ण की सत्यकथा
तब भीष्म कहते हैं कि जाओ और वासुदेव से कहना कि मैं दी हुई वस्तु वापस नहीं लेता। वो तो भलिभांति जानते हैं कि अंत में जीत तो उन्हीं की होगी। वे ये भी जानते हैं कि मेरे आशीर्वाद और तुम्हारे बीच से मुझे हटाने का रास्ता क्या है। यदि कोई नारी सामने आ जाए तो यह पराशुराम शिष्य अस्त्र शस्त्र को हाथ नहीं लगाएगा। फिर इस निहत्थे को हटाने में तुम्हें कोई कठिनाई तो नहीं होगी। युधिष्ठिर कहते हैं कि परंतु रणभूमि में नारी कैसे आ सकती है पितामह ये तो क्षत्रिय मर्यादा का उल्लंघन होगा। भीष्म कहते हैं कि मैं नहीं जानता अब तुम जाओ।...तब श्रीकृष्ण शिखंडी के बारे में बताते हैं। 
 
इधर, भीष्म पितामह अपनी माता गांगा से वार्तालाप करते हैं और बताते हैं कि किस तरह शिखंडी छिपी अंबा का ऋण उतारने का समय आ गया माते।
 
दूसरी ओर शिखंडी के पास अर्जुन पहुंचते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं। शिखंडी पूछते हैं आने का कारण। तब अर्जुन बताता है कि आपको मेरे साथ भीष्म पितामह से युद्ध करने के लिए चलना है। यह सुनकर शिखंडी प्रसन्न हो जाता है। उधर, अश्वत्थामा अपने पिता द्रोण से आशीर्वाद लेता है। अश्वत्थामा कहता है कि मुझसे दुर्योधन के कटाक्ष सहे नहीं जाते। वह कहता है कि आप और पितामह भीष्म कौरवों की सेना में होते हुए भी पांडवों के पक्ष में युद्ध कर रहे हैं।
ALSO READ: Mahabharat 28 April Episode 63-64 : फैसला कौन करता है नारायणी सेना या श्री कृष्ण?
उधर युद्ध फिर प्रारंभ होता है। एक सैनिक दुर्योधन को कहता है कि अर्जुन के रथ पर शिखंडी भी है। दुर्योधन मामाश्री से पूछता है तो सभी कहते हैं कि अर्जुन अकेला था तब उसने क्या कर लिया, अब उस नपुंसक के आने से चिंता क्यों कर रहे हैं? फिर भी दुर्योधन स्वयं जाकर भीष्म पितामह से पूछता है। प्रणाम करने के बाद पूछता है कि कल रात आपसे युधिष्ठिर क्यों मिलने आया था? भीष्म कहते हैं कि वह विजयश्री का आशीर्वाद लौटाने आया था। भीष्म कहते हैं कि मैं दिया हुआ आशीर्वाद वापस नहीं ले सकता इसलिए मुझे अपने आप को उसे हटाने का उपाय बताना पड़ा। 
ALSO READ: Mahabharat 26 April Episode 59-60 : कौरवों का मत्स्य देश पर हमला, अर्जुन लड़ा अकेला
यह सुनकर दुर्योधन क्रोधित हो जाता है। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा पितामह कि आप किसके पक्ष में युद्ध कर रहे हैं? भीष्म कहते हैं कि मैं तो न तुम्हारे पक्ष में और न उनके पक्ष में युद्ध कर रहा हूं। मैं तो अपनी मातृभूमि के पक्ष में युद्ध कर रहा हूं।...तब दुर्योधन कहता है कि मैं हस्तिनापुर नरेश कुरुश्रेष्ठ धृतराष्ट्र का प्रतिनिधि होने के नाते आपको आदेश देता हूं कि आप यह युद्ध छोड़कर नहीं जाएंगे। भीष्म कहते हैं कि मैं ये कदापि नहीं कर सकता। तब दुर्योधन पूछा है कि फिर आपने उसे क्या उपाय बताया? भीष्म कहते हैं कि मैंने उससे कहा कि मैं किसी नारी के सामने युद्ध नहीं करूंगा। दुर्योधन कहता हैं कि तो फिर अर्जुन के रथ पर शिखंडी क्या कर रहा हैं? तब भीष्म कहते हैं कि तो क्या आज अर्जुन के रथ पर शिखंडी भी है?
 
बीआर चोपड़ा की महाभारत में जो कहानी नहीं मिलेगी वह आप स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें... वेबदुनिया महाभारत
 
 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी