मान्यता के अनुसार उन्हीं में से एक उडुपी के राजा भी थे। हालांकि उडुपी के राजा ने एक अच्छा निर्णय भी लिया। किंवदंती के अनुसार उन्होंने श्रीकृष्ण के पास जाकर उनसे कहा कि इस युद्ध में लाखों योद्धा शामिल होंगे और युद्ध करेंगे लेकिन इनके लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा? बिना भोजन के तो कोई योद्धा लड़ ही नहीं पाएगा। मैं चाहता हूं कि दोनों पक्षों के सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध मैं करूं। श्रीकृष्ण ने उडुपी के राजा को इसकी अनुमति दे दी।
आश्चर्य कि 18 दिन चलने वाले इस युद्ध में कभी भी खाना कम नहीं पड़ा और न ही बड़ी मात्रा में बचा। यह कैसे संभव हुआ? मान्यता के अनुसार इसका श्रेय श्रीकृष्ण को दिया जाता है। इस बारे में दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली यह कि हर दिन शाम को जब श्रीकृष्ण भोजन करते थे तब भोजन करते वक्त उन्हें पता चल जाता था कि कल कितने लोग मरने वाले हैं।
दूसरी कथा यह है कि भगवान श्रीकृष्ण रोज उबली हुई मूंगफली खाते थे। जिस दिन वे जितनी मूंगफली के दाने खा जाते थे, समझ लिया जाता था कि उस दिन उतने हजार सैनिक मारे जाएंगे। इस तरह श्रीकृष्ण के कारण हर दिन सैनिकों को पूरा भोजन मिल जाता था और अन्न का अपमान भी नहीं होता था।