श्रीकृष्ण को छोड़कर महाभारत में आपको कौन-सा पात्र सबसे ज्यादा पसंद है?

श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण को छोड़कर महाभारत में आपको कौन-सा पात्र सबसे ज्यादा पसंद है? ...इस सवाल का जवाब प्रत्येक व्यक्ति के पास अलग-अलग होगा। कुछ लोग हैं जिन्हें खलनायक पसंद है और कुछ को नायक। सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है। अब सवाल यह भी उठता है कि सचमुच ऐसे कितने लोग थे जिन्हें पसंद किया जा सकता है और ऐसा कौन सा एकमात्र व्यक्ति है, जो कि सबकी पसंद का हो? आओ जानते हैं यहां ऐसे लोगों के बारे में जिनको केंद्र में रखकर कई किताबें लिखी गईं।
 
 
1. भीष्म पितामह : कृष्ण के बाद भीष्म का नंबर आता है, जो महाभारत के प्रमुखों में से एक थे। 'द्यु' नामक वसु ने ही भीष्म के रूप में जन्म लिया था। वसिष्ठ ऋषि के शाप व इन्द्र की आज्ञा से आठों वसुओं को शांतनु-गंगा से उत्पन्न होना पड़ा। 7 को तो गंगा ने नदी में बहा दिया जबकि 8वें वसु 'द्यु' जिंदा रह गए वही भीष्म थे जिनका प्रारंभिक नाम 'देवव्रत' था।
 
 
भीष्म चाहते तो महाभारत का यह युद्ध नहीं होता लेकिन उन्होंने क्यों नहीं चाहा? इसके कई कारण थे। भीष्म ने हस्तिनापुर की भलाई के लिए न्याय और अन्याय के बारे में कभी नहीं सोचा। भीष्म ने ही अपने पिता शांतनु का विवाह सत्यवती से करवाया। सत्यवती के पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य के लिए अम्बा, अम्बालिका और अम्बिका का हरण किया था। उन्होंने ही गांधार नरेश की राजकुमारी गांधारी का जबरन विवाह धृतराष्ट्र से करवाया था। परशुराम ने अम्बा को न्याय दिलाने के लिए भीष्म से युद्ध किया था लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। बाद में अम्बा ने जब शाप देकर आत्महत्या कर ली तो वही अम्बा नया जन्म लेकर शिखंडी के रूप में आई और भीष्म की मौत का कारण बनीं। इच्छामृत्यु के चलते भीष्म ने 58 दिन बाद सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपना शरीर छोड़ा था। इस तरह भीष्म के कई रोचक किस्से आपको महाभारत में पढ़ने को मिलेंगे। महाभारत में जिस तरह गीता का महत्व है, उसी तरह भीष्म नीति का भी महत्व है।
 
 
2. कर्ण : कई लोग हैं, जो कर्ण को हर तरह से सही मानते हैं। कर्ण के पास अमोघ अस्त्र था, कवच कुंडल थे और वह सबसे बड़ा दानवीर था। लेकिन युद्ध में कवच कुंडल काम नहीं आए और उसके बदले मिला अमोघ अस्त्र भी उसने अर्जुन के बजाय घटोत्कच पर चला दिया। असहाय अवस्था में कर्ण को मार दिया गया। उसने परशुराम से ब्रह्मास्त्र चलाना सीखा लेकिन शाप के चलते ऐन वक्त पर उसे चलाना भूल गया। कर्ण ने कुंती को वचन दिया था कि 'अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।'
 
 
देवताओं में सबसे प्रमुख सूर्यदेव के पुत्र कर्ण के जीवन से जुड़े कई रोचक प्रसंग हैं। उनके पालक माता-पिता का नाम अधिरथ और राधा था। उनके गुरु परशुराम और मित्र दुर्योधन थे। हस्तिनापुर में ही कर्ण का लालन-पालन हुआ। उन्होंने अंगदेश के राजसिंहासन का भार संभाला था। जरासंध को हराने के कारण उनको चंपा नगरी का राजा बना दिया गया था।
 
 
3. अश्वत्थामा : गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र और कृपाचार्य के भानजे अश्‍वत्थामा रुद्र के अंशावतार थे। पिता-पुत्र और मामा-भानजे की जोड़ी ने मिलकर महाभारत में कोहराम मचा दिया था। उसने ही युद्ध के अंत में ब्रह्मास्त्र चला दिया था। अश्‍वत्थामा को संपूर्ण महाभारत के युद्ध में कोई हरा नहीं सका था। वे आज भी अपराजित और अमर हैं। अश्‍वत्थामा राजपुत्र नहीं था। वह जीवन के संघर्ष की आग में तपकर सोना बना था।
 
 
सारे दिव्यास्त्र, आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे। वह भी द्रोण, भीष्म, परशुराम की कोटि का धनुर्धर बन गया। कृप, अर्जुन व कर्ण भी उससे अधिक श्रेष्ठ नहीं थे। जब राक्षसों की सेना ने घटोत्कच के नेतृत्व में भयानक आक्रमण किया तो सभी कौरव वीर भाग खड़े हुए, तब अकेले ही अश्‍वत्थामा वहां अड़े रहे। उन्होंने घटोत्कच के पुत्र अंजनपर्वा को मार डाला, साथ ही उन्होंने पांडवों की एक अक्षौहिणी सेना को भी मार डाला और घटोत्कच को घायल कर दिया था। लेकिन दुर्योधन के भय के चलते कर्ण को घटोत्कच पर अपना अमोघ अस्त्र मजबूरन चलाना पड़ा। यह एक ऐसा अचूक अस्त्र ऐसा था जिसे एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता था और कर्ण इसे अर्जुन पर चलाना चाहता था। अपने पिता द्रोणाचार्य की छलपूर्वक हत्या कर देने के बाद अश्‍वत्थामा ने भी सारे नीति और नियम ताक में रख दिए थे। वही एकमात्र ऐसा योद्धा था जिसके चलते पांडव युद्ध जीतकर भी हार गए थे।
 
 
4. अर्जुन : द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य अर्जुन के धर्मपिता पांडु थे, लेकिन असल में वे इन्द्र-कुंती के पुत्र थे। देवराज इन्द्र ने अर्जुन को बचाने के लिए दानवीर कर्ण के कवच और कुंडल उनसे छल द्वारा मांग लिए थे। लेकिन बाद में इन्द्र ने कर्ण को इसके बदले अपना अमोघ अस्त्र दे दिया था। जब भी महाभारत में अर्जुन के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने की बात आती है तो एकलव्य और कर्ण से उसकी तुलना होती है।
 
 
लेकिन अर्जुन के जीवन के कई रोचक किस्से हैं। उन्होंने ही द्रौपदी का स्वयंवर जीता था लेकिन द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी बन गईं। अर्जुन को 1 वर्ष तक किन्नर बनकर भी रहना पड़ा था। द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक 3 और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ।
 
 
अर्जुन की पत्नी उलूपी मायावी शक्ति से संपन्न महिला थीं। उसी का पुत्र इरावन था। एक दूसरी पत्नी चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्र हुआ जिसने अर्जुन का वध कर दिया था। बाद में उलूपी ने उन्हें जिंदा कर दिया था। अर्जुन ने ही अनजाने में हनुमानजी की परीक्षा ले ली थी। रिश्ते में अर्जुन, भगवान श्रीकृष्ण का साला था।
 
 
अर्जुन ने जन्म से लेकर मृत्यु तक कई बड़े-बड़े कार्य किए थे। अपने पुत्र अभिमन्यु के मारे जाने के बाद अर्जुन ने संकल्प लेकर ही विचित्र स्थिति में जयद्रथ का वध किया था। अर्जुन के श्रेष्ठ सवालों के कारण ही श्रीकृष्ण गीता कह पाए थे। श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद अर्जुन ने ही सभी यदुवंशियों को द्वारिका से लाकर हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ और मथुरा में पुन: बसाया था।
 
 
5. विदुर : भारत में चाणक्य से पूर्व कई महान नीतिज्ञ हुए हैं। उनमें से एक थे विदुर। वास्तव में महर्षि वेदव्यास रचित 'महाभारत' का उद्योग पर्व 'विदुर नीति' के रूप में वर्णित है। शांतनु को सत्यवती से 2 पुत्र मिले चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया जबकि विचित्रवीर्य का विवाह भीष्म ने काशीराज की पुत्री अंबिका और अंबालिका से कर दिया। लेकिन विचित्रवीर्य को कोई संतान नहीं हो रही थी तब चिंतित सत्यवती ने कुंआरी अवस्था में पराशर मुनि से उत्पन्न अपने पुत्र वेदव्यास को बुलाया और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी कि अंबिका और अंबालिका को कोई पुत्र मिले। अंबिका से धृतराष्ट्र और अंबालिका से पांडु का जन्म हुआ जबकि एक दासी से विदुर का।
 
 
विदुर हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र के विशेष सलाहकार और मंत्रियों के प्रधान थे। उन्होंने कौरवों की हर अनैतिक बात का विरोध किया था। विदुर के पास एक ऐसा हथियार था, जो अर्जुन के 'गांडीव' से भी कई गुना शक्तिशाली था। जब श्रीकृष्ण पांडवों की ओर से संधि करने के लिए हस्तिनापुर गए तो वे विदुर के यहां ही रुके थे। यदि विदुर युद्ध में हिस्सा लेते तो श्रीकृष्ण को भी हथियार उठाना पड़ता लेकिन श्रीकृष्ण ने ऐसे कई योद्धाओं को युद्ध से दूर रखा, जो एक ही झटके में युद्ध समाप्त करने की क्षमता रखते थे। उदाहणार्थ बर्बरीक।
 
 
युद्ध समाप्ति के बाद एक दिन पांचों पांडव विदुर से मिलने आए। विदुर ने युधिष्ठिर को देखते ही अपने प्राण छोड़ दिए और वे युधिष्ठिर में समा गए। यह देखकर युधिष्ठिर को समझ में नहीं आया कि यह क्या हुआ? ऐसे में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि विदुर भी धर्मराज के अंश थे अत: वे तुम में समा गए, लेकिन अब मैं विदुर की इच्‍छानुसार दिया गया अपना वचन पूरा करूंगा। यह कहकर श्रीकृष्ण ने विदुर की इच्छानुसार उनके शरीर को सुदर्शन चक्र में बदलकर उस सुदर्शन चक्र को वहीं स्थापित कर दिया।
 
 
6. कुंती : कुंती को यह वरदान था कि वह किसी भी देवता को बुलाकर उनके साथ नियोग कर सकती थी। इस विद्या को उसने माद्री को भी सिखा दिया था। जिसके चलते माद्री को नकुल और सहदेव नामक 2 पुत्र मिले और कुंती के पुत्र कर्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम थे। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। वन में अपने पति पांडु और सौतन माद्री के देहांत और दूसरों से उत्पन्न पुत्र के बाद कुंती का हस्तिनापुर में पैर जमाना बहुत कठिन कार्य था। लेकिन एक अकेली महिला ने अपने 5 बच्चों के साथ हस्तिनापुर में न केवल प्रवेश किया बल्कि लंबी लड़ाई के बाद महल में अपना स्थान बनाकर बच्चों को शिक्षा और दीक्षा का हक दिलवाया।
 
 
7. द्रौपदी : कहते हैं कि द्रौपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था इसीलिए उसे 'याज्ञनी' कहा जाता था। द्रौपदी को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। पुराणानुसार 5 स्त्रियां विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र मानी गई हैं। अहिल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी। द्रौपदी ने 5 लोगों को अपना पति बनाया था, जो कि एक बहुत ही बड़ा कदम था। पांचों पुरुषों से विवाह करने के बाद भी द्रौपदी ने अपनी पवित्रता और चरित्र को समाज के समक्ष सही सिद्ध किया। कहते हैं कि द्रौपदी के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था। द्रौपदी का संपूर्ण जीवन उथल-पुथलभरा रहा है। 5 पुरुषों से विवाह करने के बाद भी द्रौपदी खुद को अकेली ही महसूस करती थीं, क्योंकि सभी पांडवों ने अपनी अलग-अलग पत्नियां कर ली थीं, जो उन्हीं में रमे रहते थे। सबसे बड़ी त्रासदी द्रौपदी के साथ तब हुई, जब युद्ध के अंत में उसके सभी पुत्रों को सोते समय अश्वत्थामा ने मार दिया था।
 
 
8. अभिमन्यु : महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु सबसे कम उम्र का योद्धा था। अभिमन्यु ने अपनी मां सुभद्रा की कोख में रहकर ही संपूर्ण युद्ध विद्या सीख ली थी। माता के गर्भ में रहकर ही उसने चक्रव्यूह को भेदना सीखा था। लेकिन वह चक्रव्यूह को तोड़ना इसलिए सीख नहीं पाया, क्योंकि जब इसकी शिक्षा दी जा रही थी तब उसकी मां सो गई थीं।
 
 
महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु जब चक्रव्यूह तोड़ रहा था तब उसका सामना एक से बढ़कर एक महायोद्‍धाओं से हुआ और उसने अकेले ही सभी का वध कर दिया था। अभिमन्यु के चक्रव्यूह में जाने के बाद उसे चारों ओर से घेर लिया गया। जयद्रथ के कहने पर अभिमन्यु को घेरकर उसकी जयद्रथ सहित 7 योद्धाओं द्वारा निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई, जो कि युद्ध के नियमों के विरुद्ध था। यह युद्ध का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था। जब नियम एक बार एक पक्ष तोड़ देता है, तो दूसरे पक्ष को भी इसे तोड़ने का मौका मिलता है।
 
 
9. भीम : पवनपुत्र भीम में हजार हाथियों का बल था। भीम को दुर्योधन ने छल से कालकूट नामक जहर पिलाकर नदी में फेंक दिया था। नागलोक में भीम का जहर वासुकि नामक नाग ने उतारा और उन्हें हजार हाथियों का बल प्रदान करने वाले कुंडों का रस पिलाया जिससे भीम और भी शक्तिशाली हो गए। भीम ने ही एक स्थान पर हनुमानजी को बंदर समझकर उनसे अपनी पूंछ हटाने का कहा था, तब हनुमानजी ने कहा था कि यदि तुझमें दम है तो तू ही हटा ले। भीम जब उस पूंछ को हिला भी नहीं पाए तो वे समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। उन्होंने तब उनसे क्षमा मांगी। तब हनुमानजी ने उन्हें अपने शरीर के 3 बाल दिए और कहा कि संकट काल में ये तुम्हारे काम आएंगे।
 
 
इस तरह भीम के कई रोचक किस्से हैं। द्रौपदी के अलावा भीम की हिडिम्‍बा और बलन्धरा नामक 2 और पत्नियां थीं। हिडिम्‍बा से घटोत्कच और बलन्धरा से सर्वंग का जन्म हुआ। वनवास के दौरान भीम ने हिडिम्बा नामक राक्षसनी से विवाह किया था जिससे उनका घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। घटोत्कच के एक पुत्र का नाम बर्बरीक और दूसरे का नाम अंजनपर्वा था। युद्ध में भीम ने ही दुर्योधन सहित सभी कौरवों का वध कर दिया था।
 
 
10. वेदव्यास : ऋषि पराशर और निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र वेदव्यास का नाम कृष्णद्वैपायन है। उन्होंने वेदों का विभाग किया इसलिए उनको व्यास या वेदव्यास कहा जाता है। उन्होंने महाभारत और पुराणों की रचना की थी। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर को महर्षि वेदव्यास का ही पुत्र माना जाता है। इन्हीं 3 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ। भारत में गुरु पूर्णिमा वेदव्यास की याद में ही मनाई जाती है।
 
 
महाभारत के अंत में जब अश्‍वत्थामा ब्रह्मास्त्र छोड़ देता है तो उसके ब्रह्मास्त्र को वापस लेने के लिए वेदव्यास अनुरोध करते हैं। लेकिन अश्‍वत्‍थामा वापस लेने की विद्या नहीं जानता था तो उसने उस अस्त्र को अभिमन्यु के पत्नी उत्तरा के गर्भ में उतार दिया था। इस घोर पाप के चलते श्रीकृष्ण उसे 3,000 वर्ष तक कोढ़ी के रूप में भटकने का शाप दे देते हैं जिस शाप का वेदव्यास भी अनुमोदन करते हैं। महाभारत में वेदव्यास की भी कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में उपस्थिति रही है।
 

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