अनछुए पहलू : डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि शोध में ऐसे कई तथ्यों को उजागर करने की कोशिश की गई है, जो अन्यत्र प्रकाश में नहीं आ सके थे। उनका कहना है कि गांधीजी उन भाग्यशाली महापुरुषों में माने जाएंगे, जो अपनी इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त हुए। मृत्यु के समय गांधीजी की जुबान पर ' हे राम' शब्द थे। उनके निकट सहयोगी जानते थे कि यही उनके जीवन की सबसे बड़ी इच्छा भी थी।
अगले पेज पर : मैं एक झूठा महात्मा था
झूठा महात्मा या सच्चा महात्मा : 24 जनवरी 1948 के बाद अपनी पौत्री मनु से उन्होंने कई बार हत्यारे की गोलियां या गोलियों की बौछार के बारे में बातें की थीं जो बुराई की आशंका में नहीं वरन अपने सार्थक जीवन के अंत के रूप में थीं, जिसका आभास उन्हें हो चुका था।
अपनी मृत्यु से एक दिन पहले 29 जनवरी को उन्होंने मनु से कहा था कि यदि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से, चाहे वह एक मुंहासे से ही क्यों न हो, तुम घर की छत से चिल्ला-चिल्लाकर दुनिया से कहना-
मैं एक झूठा महात्मा था। अंत में 30 जनवरी 1948 को वह दुखद घड़ी भी आ पहुंची, जब गांधीजी का पूर्वाभास सच होने वाला था। अपनी पौत्रियों मनु और आभा का सहारा लेकर वे प्रतिदिन होने वाली प्रार्थना सभा में पहुंचे।
अभी उन्होंने दोनों हाथ जो़ड़कर लोगों का अभिवादन स्वीकार ही किया था कि एक नवयुवक नाथूराम गोड़से ने मनु को झटका देकर और गांधीजी के आगे घुटनों के बल अभिवादन के अंदाज में झुककर तीन गोलियां दाग दीं। और बापू हम सबको छोड़ कर चले गए।