अप्पाणमेव अप्पाणं, जइत्ता, सुहमेह ए॥
महावीर जी कहते हैं- हे पुरुष, तू आत्मा के साथ ही युद्ध कर। बाहरी शत्रुओं के साथ किसलिए लड़ता है? आत्मा द्वारा ही आत्मा को जीतने से सच्चा सुख मिलता है।
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुक्खाण य सुहाण य।
अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठिय सुपट्ठिओ।
जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिए।
एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ॥