प्रति वर्ष मकर संक्रांति अलग-अलग वाहनों पर, विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहन कर, विविध शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति की अवधि ही सौरमास है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं, जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं।
प्रति माह होने वाला सूर्य का निरयण यानी राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। सामान्यतया आमजन को सूर्य की मकर संक्रांति का पता है, क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है। इसी दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इस संक्रांति को सजीव माना गया है।
इसके पश्चात दान संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है तथा पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सूर्य की किरणें सेहत के लिए सुखदायी
14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है।
श्रीकृष्ण ने कहा था- भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं।