आजकल के कैलेंडर या पंचागों में मकर संक्रांति का देवीकरण कर दिया गया है। इससे भी उसके फलाफल निकाले जाते हैं। जैसे उसके विषय में अग्र सूचनाएं ये हैं कि- संक्रांति जो कुछ ग्रहण करती है, उसके मूल्य बढ़ जाते हैं या वह नष्ट हो जाता है। वह जिसे देखती है, वह नष्ट हो जाता है, जिस दिशा से वह जाती है, वहां के लोग सुखी होते हैं, जिस दिशा को वह चली जाती है, वहां के लोग दुखी हो जाते हैं। हालांकि यह कितना उचित है यह हम नहीं जानते।
संक्रांति को दुर्गा देवी मान लिए जाने से अब वह किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती है। उसके वाहन के साथ ही उपवाहन भी होते हैं। जैसे पिछली बार संक्रांति का वाहन सिंह एवं उपवाहन गज (हाथी) था। इस बार 2020 में गदर्भ पर सवार होकर आ रही है संक्रांति। संक्रांति गर्दभ पर सवार होकर गुलाबी वस्त्र धारण करके मिठाई का भक्षण करते हुए दक्षिण से पश्चिम दिशा की ओर जाएगी। संक्रांति का उपवाहन मेष है।
जब जब सांक्रांति का देवीकारण कर दिया गया है तो निश्चित ही देवी के अलग अलग तरह के पुष्प, वस्त्र, आभूषण आदि भी बताए जाते हैं। कहते हैं कि उसके वस्त्र काले, श्वेत या लाल आदि रंगों के होते हैं। उनके हाथ में धनुष या शूल रहता है। वह लाल या गोरोचन जैसे पदार्थों का तिलक करती है। वह युवा, प्रौढ़ या वृद्ध है। वह खड़ी या बैठी हुई वर्णित है।
वह पूर्व आदि दिशाओं से आती है और पश्चिम आदि दिशाओं को चली जाती है और तीसरी दिशा की ओर झांकती है। उसके अधर झुके हैं, नाक लम्बी है। उसके 9 हाथ है। इसी तरह के और भी कई बातें हैं जिससे संक्रांति का फलाफल जान सकते हैं।