प्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार और लेखक अशोक चक्रधर को वेबदुनिया के पाठक 'स्मृतिअक्स-बक्सा' कॉलम के माध्यम से पढ़ सकेंगे। प्रस्तुत है इस कॉलम की अगली रचना...
नौ जून उन्नीस सौ सतासी को इतने सताए गए कि उस दिन दो जून का भोजन तक नसीब नहीं हुआ। जामिआ से दूरदर्शन, दूरदर्शन से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, सूचना मंत्रालय से विदेश मंत्रालय, विदेश मंत्रालय से पासपोर्ट कार्यालय, फिर दूरदर्शन.... फिर मंत्रालय..... फिर दूसरे मंत्रालय........ फिर दूरदर्शन।
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मैं अपनी फिएट को इस कार्यालय से उस कार्यालय तक दौड़ा रहा था। पसीना-पसीना हो रहा था और भरपूर गर्मी के कारण कार भी निरंतर भाप छोड़ रही थी। कार जहां चाहती थी रुक जाती थी। मैं अपनी मिल्टन की बोतल का ठंडा पानी रेडिएटर में डाल कर उसका मिजाज ठंडा करता था। मेरा कुसूर इतना था कि मैंने दस महीने पहले ही पासपोर्ट बनवा लिया था। जिनके पास पासपोर्ट नहीं था उनके मज़े थे। उनके लिए सारा काम दूरदर्शन की तरफ से हो रहा था। सोवियत संघ जाने के लिए उनका व्हाइट पासपोर्ट बनवाया जा रहा था।
सोवियत संघ के बारे में अधिकतम जानकारियां प्राप्त करने के लिए मैं दिल्ली स्थित उनके सांस्कृतिक केन्द्र गया। सोवियत संघ का इतिहास मनोयोग से पढ़ा, नोट्स बनाए। लोक कलाओं के बारे में साहित्य अकादमी की लाइब्रेरी में पुस्तकें खंगालीं। एक किताब थी श्याम परमार की, उसने बहुत मदद की मेरी।
इसके बाद लगभग एक सप्ताह तक सिलसिला चला पूर्वतैयारी की विभिन्न मीटिंग्ज़ का। विज्ञान भवन में भारत महोत्सव का निदेशालय था। वहां कलाकारों और आयोजकों का तांता लगा रहता था। कौन-कौन से कलाकार जाएंगे, किन-किनकी प्रस्तुति ‘अपना उत्सव’ में अच्छी रही थी, देखा जा रहा था। अधिकारीगण कलाकारों को छांटने और सूचियां बनाने में व्यस्त थे। अपुन भी अपनी अदना राय दे देते थे। पहली सूचियां तो बड़ी उदारता पूर्वक बनीं, फिर कटौती की जाने लगी।
पश्चिम बंगाल के ढाली नृत्य के पैंतीस कलाकारों के जाने का प्रस्ताव आया लेकिन केवल सत्रह को ही अनुमति मिली। इसी तरह गोवा का तरंग ग्रुप, गुजरात का बेड़ा रास, मध्य प्रदेश का उरांव नृत्य, बिहार का छऊ, मणिपुर का लाई हारोबा, आंध्रप्रदेश का लंबाडी लोक-नृत्य, तमिलनाडु का कूटू नृत्य, सिक्किम का याक और बर्फीले शेर का नृत्य, राजस्थान का लंगा मांगणियार दल, घूमर दल, कठपुतली दल, पंजाब का गिद्धा समूह, असम का बिहू, पुतुल नाच, मार्शल आर्ट्स की टोलियां, सभी दलों के सदस्यों की संख्या कम की जा रही थी। जिसका चयन हो जाता था वह मुदित हो जाता और जिसको निकाला जाता था उसकी चेतना मुंदित हो जाती थी। मुंदी हुई आंखें जिनमें भरे होते थे आंसू।
मैं निश्चित रूप से जानना चाहता था कि कौन जाएंगे, कौन नहीं। आंखों देखा हाल सुनाते समय मैं हवा में तीर नहीं मारना चाहता था। मैं चाहता था कि सभी के बारे में सही और सधी हुई जानकारी दी जाए। थोड़ा सा बोलने के लिए भी राम कसम बड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
सभी लोग मेहनत कर रहे थे। दशरथ पटेल तरह-तरह के पोस्टर्स डिज़ाइन करा रहे थे। बंसी कौल बार्जेज़ के प्रारूप बना रहे थे। किसी के ज़िम्मे कॉस्ट्यूम्स का काम तो किसी के ज़िम्मे एअर टिकिट्स का।
खूब रिहर्सल होते थे। हमारी दूरदर्शन की टीम अपने स्तर पर तैयारी कर रही थी। एक ग्रुप आकाशवाणी का भी था। उन दिनों दूरदर्शन के लोग अपने आपको आकाशवाणी के लोगों से स्वयं को थोड़ा ऊंचा समझते थे। तीन-चार साल पुरानी रंगीनी जो टेलिविज़न में आई थी वह अधिकारियों के चेहरे पर भी दिखाई देती थी, लेकिन इसमें शक नहीं कि कथ्य और विषय-वस्तु के मामले में मेहनत रेडियो वाले ज़्यादा करते थे। जमकर रिसर्च करते थे, जहां से मिले सामग्री इकट्ठा करते थे। मेरा तो दोनों ओर आना जाना था। मुझे सब मदद करते थे, मैं सबकी मदद किया करता था।
दूरदर्शन की हमारी टीम के मुखिया थे अतिरिक्त महानिदेशक श्री शिव शर्मा, बेहद अनुभवी और संतुलित व्यक्तित्व। लाइव टैलीकास्ट को व्यावहारिक अंजाम देने के लिए दो प्रोड्यूसर थे श्री विजय कुमार और चौधरी रघुनाथ सिंह। विजय कुमार प्राय: खेल-कार्यक्रमों को कवर किया करते थे और रघुनाथ सिंह जी वही जो ‘कृषि-दर्शन’ के मुख्य प्रोड्यूसर थे। ‘कृषि-दर्शन’ कार्यक्रम वही जो सभी टीवीधारियों को देखना पड़ता था क्योंकि कोई और टीवी चैनल थी ही नहीं। मुख्य कैमरामैन डी. वी. मल्होत्रा थे इंजीनियर थे सी.पी मलिक, पतले-दुबले खुशमिजाज इंसान। मज़े की बात ये है कि सभी पहले से ही मेरे मित्र थे। और फिर हम चारों एंकर्स की टोली, यानी, राजीव महरोत्रा, कोमल जी. बी. सिंह, विनोद दुआ और मैं। विनोद दुआ अधिक लोकप्रिय थे, क्योंकि दूरदर्शन पर निरंतर कार्यक्रम देते आ रहे थे। अरे, सबा ज़ैदी को तो मैं भूले ही जा रहा था। वे भी एक प्रोड्यूसर थीं। क्या अंदाज़, क्या नखरे, किसी को अखरे तो अखरे।
पहली विदेश यात्रा थी जी अपनी। आपको हंसी आएगी यह जानकर कि एयरपोर्ट पर मेरे शिष्य मालाएँ लेकर आए थे और इस तरह विदा कर रहे थे गोया मैं चन्द्रमा की यात्रा पर निकला हूं। हवाई अड्डे पर लोक कलाकारों का जमावड़ा था। कुछ सरकारी तंत्र के लोग, कुछ पत्रकार। पता नहीं वे लोग मुझे मालाओं से लदा देखकर जल रहे थे या मुझे स्वयं ही संकोच हो रहा था, मैंने यथासंभव शीघ्रता से मालाओं से मुक्ति प्राप्त की। मुस्कराते हुए अपने दोस्तों से विदा लेकर चैक-इन काउंटर की ओर बढ़ गया।
सोवियत संघ की धरती पर उतरते ही शानदार अनुभूति हुई। रूसी साहित्य काफी पढ़ रखा था, लगा जैसे उपन्यासों से सारे पात्र निकल आए हैं और एअरपोर्ट पर टहल रहे हैं। मैं हतप्रभ सा चारों ओर निहार रहा था। अचानक किसी ने पूछा-‘आप किस भाषा में दुभाषिया चाहेंगे, हिन्दी में या अंग्रेज़ी में?’ ज़ाहिर सी बात है मैंने हिन्दी दुभाषिया चाहा। दुभाषिया-सुविधा सभी लोक कलाकारों को नहीं थी। सरकारी अधिकारियों, टोली नायकों, और हम दूरदर्शन के कमैंटेटर्स को थी। मुझे यह बताते हुए अफसोस है कि सरकारी तंत्र के अधिकांश लोगों ने अंग्रेज़ी दुभाषिया चाहा। भारत महोत्सव के कर्ता-धर्ता अंग्रेज़ीदां लोग थे। मॉस्को की हवाई-पट्टी पर जब हमारा जहाज़ उतरा होगा तब हमारे मेज़बानों को पता नहीं रहा होगा कि रनवे पर दौड़ती हुई अंग्रेज़ी उतरी है।
अब चूंकि अधिकांश ने अंग्रेज़ी दुभाषिया ही चाहा था, तो उन्होंने इमीग्रेशन के सारे कागज़ात देखने के बाद सबके लिए अंग्रेज़ी दुभाषिये तैनात कर दिए। मैं अफसोस करता रह गया, मैंने तो हिन्दी दुभाषिया चाहा था। मुस्कराती हुई एक लम्बी बलिष्ठ सी कन्या मिली जिसने टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में बताया कि उसका नाम तान्या है और वह मेरे साथ इंटरप्रेटर बनकर रहेगी। मैंने उससे पूछा-‘डू यू नो हिन्दी?’, उसने जवाब दिया- ‘नो।‘ ये तो बड़े संकट की बात हो गई। अंग्रेज़ी मुझे नहीं आती ऐसी बात नहीं, पर जिस भाषा में अपने आपको अच्छी तरह अभिव्यक्त किया जा सकता था, वह तो हिन्दी ही थी। हाय-हाय, ये कन्या मेरे मत्थे क्यों मढ़ दी गई, जबकि हिन्दी का विकल्प मौजूद था। मैंने श्री शिव शर्मा जी से कहा तो उन्होंने दयनीय दृष्टि से मुझे देखा, जैसे पूछ रहे हों-‘अंग्रेज़ी नहीं आती क्या?’
सतासी से अब तक सत्ताईस साल हो गए, सत्ता के ईस आज अगर हिंदी को बढ़ाने का सुविचार ला रहे हैं तो दक्षिण भारत के नाम पर नौकरशाह अपना खेल दिखाएंगे। देखते जाइए! अपनी बातचीत जारी रहेगी।