बिखरे तिनकों के पास बैठा है, बूढ़े बरगद की शाख़ पर तन्हा, क्यूँ परिन्दा उदास बैठा है - अज़ीज़ अं
वह जो ठोकर लगाए पत्थर को , उसका इक दिन गुरूर टूटेगा, बैठ कर रोएगा मुक़द्दर को - अज़ीज़ अंसारी
उड़ के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते हैं, जैसे इस मुल्क से मज़दूर अरब जाते हैं
हमारा हाल लिखा था हमारे चेहरे पर, हमारे हाल से यूँ बेख़बर न था कोई।
मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए, वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए।
गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते, हम रात में छुप कर कहीं बाहर नहीं जाते - मुनव्वर राना
एक उम्र यूँ ही काट दी फुटपाथ पे हमने, हम ऐसे परिंदे हैं जो उड़ कर नहीं जाते - मुनव्वर राना
तुम्हारे जिस्म की ख़ुशबू गुलों से आती है, ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है - मुनव्वर राना
हमारे मुल्क में इंसान अब घर में नहीं रहते, कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं ईसाई लिखा है - राना
वो रुलाकर हँस न पाया देर तक, जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक !
कब्र में रखकर न ठहरा कोई दोस्त, मैं नए घर में अकेला रह गया।
वो कुछ लिखने को कागज़ ढूँढता था, उसे भी हो गया है प्यार, शायद !! - रीताज़ मैनी
मुझे मालूम है कि मैं उसके बिना जी नहीं सकता फराज़, उसका भी यही हाल है मगर किसी और के लिए - अहमद फरा
मैं अपनी दोस्ती को शहर में रुसवा नहीं करता, मोहब्बत मैं भी करता हूँ मगर चर्चा नहीं करता - अज्ञात
ज़िंदगी रहती नहीं हर वक्त एक सी, रहना हर मंजर के लिए तैयार चाहिए - योगेश गाँधी
दाग को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़र्माते हैं, तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा - दाग देहलवी
थक सा गया है मेरी चाहतों का वजूद, अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इज़हार नहीं करते - अज्ञात
ये आईने तुझे तेरी खबर क्या देंगे फ़राज, आ देख मेरी आँखों में के तू कितना हसीन है।
मुश्किलें मेरी कम नहीं होंगी, तू हँसेगा नहीं तो दुनिया में, उलझनें मेरी कम नहीं होंगी - अज़ीज़ अं
दिल में अपने सुकून पाएगा, अपने एहबाब की जरूरत पर, कर्ज़ देकर जो भूल जाएगा - अज़ीज़ अंसारी