सुबहा को लहजा सख़्त हुआ था बातों में,
दिन भर बैठा मैं पछताया रात हुई - अज़ीज़ अंसारी
दीप जलाके भटके हुए को राह दिखाने वाला खुद,
राह किसी की देख रहा हो ये भी तो हो सकता है।
झूठ का लेकर सहारा जो उबर जाऊँगा,
मौत आने से नहीं शर्म से मर जाऊँगा - अज़ीज़ अंसारी
मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ,
वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं - - आलम खुर्शीद
तन्हाई का ज़हर तो वो भी पीते हैं,
हर पल जिनके साथ ज़माना होता है - आलम खुर्शीद
हमको बहुत नाज़ था अपनी हँसी पर,
खून के आंसू रुलाया ज़िन्दगी ने।
कोई हमदर्द भी होगा, इनमें अज़ीज़,
आश्ना* तो यहाँ लोग ही लोग हैं।
कोई अब तक न ये समझा कि इंसाँ,
कहाँ जाता है, आता है कहाँ से - मोमिन
सर्द हवा में उसके बदन पर आंचल उड़ते देखा है,
पानी वाला बादल जैसे सैर करे कोहसारों पर - अज़ीज़ अंसार
थक सा गया है मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इज़हार नहीं करते - अज्ञात
ऐन मुमकिन है रो पड़े फिर वो,
मुद्दतों बाद मुस्कुराया है - दीक्षित दनकौरी
मुसाफिर हैं नए सारे सफ़र में ज़िंदगानी के,
यहाँ कोई नहीं ऐसा जो ये रस्ता समझता है - अंकित
मैं पंछी हूँ मुहब्बत का, फ़क़त रिश्तों का प्यासा हूँ,
ना सागर ही मुझे समझे ना ही सहरा समझता है - अ
बस किसी के वास्ते गिरते संभलते चल दिए,
और जब मंज़िल पे पहुँचे, साथ बस वो ही न था - अज्ञात
खुशबू तेरे बदन की मेरे साथ साथ है,
कह दो जरा हवा से तन्हा नहीं हूँ मैं - मनोरमा सुमन
उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया, घर छोड़ के जानेवाला - निदा फ़ाज़ली
कहीं पे बैठ के हँसना कहीं पे रो देना,
मैं ज़िन्दगी भी बड़ी दोग़ली गुज़ारता हूँ - मुनव्वर राना
याद आने लगा एक दोस्त का बरताव मुझे,
टूट कर गिर पड़ा जब शाख़ से पत्ता कोई।