फिर जाना
मैं तुमसे अलग थी ही कहां।
तुम पृथ्वी सी मेरा ग्रह
मैं चंद्रमा सी तुम्हारा उपग्रह,
दूर रहकर भी तुम्हारे इर्द-गिर्द
तुम्हारी ही सीखों की राह पर
प्रदक्षिणा करती, निश्चित गति से।
वही सुबह मेरा दरवाजा खटकाता है,
तुम जिस पूनम के चांद को पूए चढ़ाती हो