हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है,
हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है।
बस यही मां की परिभाषा है...
हम समुंदर का है तेज तो वह झरनों का निर्मल स्वर है,
हम एक शूल है तो वह सहस्त्र ढाल प्रखर है।
हम दुनिया के हैं अंग, वह उसकी अनुक्रमणिका है,
हम पत्थर की हैं संग वह कंचन की कृनीका है।
हम बकवास हैं वह भाषण हैं हम सरकार हैं वह शासन हैं,
हम लव कुश है वह सीता है, हम छंद हैं वह कविता है।
हम राजा हैं वह राज है, हम मस्तक हैं वह ताज है,
वही सरस्वती का उद्गम है रणचंडी और नासा है।
हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है,
बस यही मां की परिभाषा है।
कवि - शैलेष लोढ़ा