मदर्स डे : मां, एक पुत्र का पहला प्यार

दीपसृजन
मां शायद संसार का सबसे ज्यादा छोटा परन्तु शक्तिशाली शब्द एक ऐसा शब्द जिसे समझाने-समझने में सदियां भी बीत जाए तो भी शायद समझ नहीं आए या फिर किसी एक पल में ही इसका अहसास हो जाए ........कितना समय बीत गया बिना कुछ सृजित किए हुए सोचा आज अच्छा मौका है ......पर क्या करूं जैसे मां पर तो कुछ सूझता ही नहीं .......जो लिख रहा हूं वह न तो कोई संस्मरण है न ही कोई कहानी या कविता ....एक अनुभूति है एक अहसास है कुछ यादें हैं कुछ बातें हैं...।
 
मां, शायद एक पुत्र का पहला प्यार...जननी से कई ज्यादा बढ़ कर, ईश्वर से भी कुछ ज्यादा परिपक्व। मां यूं तो इतनी मजबूत की नौ माह शिशु को गर्भ में रख लेती है परंतु उस से कई गुना कोमल जो अपने बच्चे के माथे पर लकीर देखते ही आंखों को भर लेती है।

दरअसल मां कितनी शक्तिशाली है यह उसे पता ही नहीं होता। वह तो बस बिना किसी शर्त बिना किसी स्वार्थ के बच्चे की देखभाल करती है फिर अन्य को उसे समझाने की जरूरत होती है कि उन्होंने कितना बड़ा कार्य किया है। देवकी मां और यशोदा मैय्या से तो हम भली भांति परिचित हैं। आज देवकी मां का दिवस नहीं आज बारी है यशोदा मैया की जन्म देकर इतने वात्सल्य से पालन पोषण करना। वह नजारे क्या उतने हसीं हो सकते हैं जिसमें मां अपने बच्चे को भगोने (एक पात्र) में रख कर नहलाए नहीं, क्या वह शाम उतनी रंगीन हो सकती है जिसमें मां अपने छोटे से बच्चे को बिना लोरी गाए सुला दे ...।
 
वो हिदायतें जो हमे बचपन से लेकर अभी तक मिलती आ रही है क्या ऐसा नहीं लगता की उन्हें सुना कितना प्रिय है और कितनी आदत हो गई है उसे सुनने की हमें ........धुप में टोपी पहनो, खाना खाया या नहीं, बाहर का क्यूं खाते हो, कुछ तकलीफ है तो बताते क्यों नहीं .....सर क्यों भीगा रखा है, स्वेटर क्यों नहीं पहना, इतने गाने क्यों सुनते हो, कंप्यूटर पर कम बैठा करो आदि आदि।
 
मेरी मम्मी भी मुझे ऐसी ही असंख्य हिदायतें जो वात्सल्य परिपूर्ण होती हैं वो रोज मरीज की ग्लोई की भांति देती हैं। बचपन से साथ रहकर मां की अहमियत बाहर आने पर तो जैसे फूट-फूट कर जान पड़ती है। मुझे आज भी वो पल याद है जब इंदौर पढ़ने के लिए आया था तो घर छोड़ना मां से दूर रहना कितना कष्टदायी था। मां की आंखों के आंसुओं को तो जैसे भूल ही नहीं पा रहा था।

और फिर हम बच्चे भी तो कितने प्यारे होते हैं,  मां की फिक्र, उसकी चिंता के लिए हमारे पास भी कितने आसान जवाब होते हैं...आप नहीं समझती, अरे आपको क्या पता, अरे आप इतना दिम्माग मत लगाओ में खुद निबट लूंगा, अरे ये आपके जमाने की बात नहीं है, अरे आपने अभी कुछ नहीं देखा, मां आप तो बस ..., अरे मां अब तो हद हो गई, मैं खुद अपना ख्याल रख सकता/सकती हूं , अरे अब में बचा नहीं रहा ..आदि जवाब । इतना कुछ कहकर भी हम जानते हैं की हम उन्हें दिल से चाहते हैं ।
 
हम जानते हैं उनकी जगह कोई नहीं ले सकता, आज भी हमारा खून खोल जाता है जब कोई हमारी मां के बारे में कुछ कहे, आज हमें अपना सगे भाई बहिन भी अप्रिय लगते हैं, यदि वो मां को तकलीफ दें। मां के पास होते ही मानो क्यों लगता है की संसार का सार सुख अभी मेरे पास ही है। तभी शायद शशि कपूर जी का अमितजी के विरुद्ध ये संवाद इतना लोकप्रिय हो पाया - मेरे पास मां है .....
 
आज जरूरत हैं मां के लिए उत्सव पूर्ण एक सप्ताह की न की इने वृहद रिश्ते एक लिए सूक्ष्म २ घंटे की, आज जरूरत है प्रत्येक बच्चे को मां से ये कहने की की जो अहसास आपने बचपन में दिया वही हम आपको जीवन भर देंग, जो कीमती वक्त में केवल में ही आपकी प्रथम प्राथमिकता था तो अब कमसे कम आप मेरी अंतिम प्राथमिकता तो अभी नहीं हो सकती।
 
इस ब्रह्माण्ड की शक्तियां मां की दुआओं से कमतर ही हैं। इसलिए में संरक्षक हूं आपकी समस्त दुआओं का जिसमे आपका अमित प्रेम छुपा मां जीवन के एक पड़ाव पर हम बच्चे यह दुआ करेंगे की हम आपकी मां बनकर दिखाएंगे। ..आपके जितना प्रेम तो नहीं परंतु आपके अहसास को ही अपने प्रेम से आपके लिए प्रयोग करेंगे। हमें आपकी हमेशा जरूरत थी, है और हमेशा रहेगी...। अंत में मेरी मां और संसार की समस्त माताओं को मेरा शत्-शत् प्रणाम ।

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