फिर एक मदर्स डे आया है और मैं एक खत लिख रही हूँ...किसे लिख रही हूँ नहीं जानती... किसे कहूं अपने मन की व्यथा? एक तरफ मैं हूँ मां....दूसरी तरफ एक सिस्टम है और बीच में है जिंदगियों को निगलता कोरोना... और हम मना रहे हैं (अन) हैप्पी मदर्स डे”
हे देवी मां के देवांश प्रशासन,
कैसे मनाएं हम “(अन)हैप्पी मदर्स डे” एक मां के रूप में मैं देख रही हूं कि पिछले साल भर से अधिक समय से सब जूझ रहे हैं ऐसी आपदा से जो लगभग प्रति सौ वर्ष में अलग-अलग रूप में पूरी धरती पर आती है। सुना है और पढ़ा भी है कि राजा में इश्वर का अंश होता है और प्रशासन भी राजा की ही एक भुजा होने के कारण देवांश ही है। एक देवांश सीमा पर सैनिक के रूप में डटा है, दूसरा मेडिकल स्टाफ के रूप में दिनरात संजीवनी देने का कार्य कर रहा है तीसरा देवांश प्रशासन, इस अदृश्य आसुरी आपदा से लगातार दो दो हाथ कर रहा है। पर सारी कायनात ने जैसे हमसे बदला लेने की ठान ली हो।
दुष्टस्य दण्ड, सुजनस्य रक्षा.
ये राजा के प्रथम दो कर्तव्य है। कोरोना फ़ैलाने वाली हरकत को दण्डित करना और इससे पीड़ित नागरिकों की सहायता करना यही तुम्हारे दोनों काम हैं। जिनके निर्वहन में तुम यथाशक्ति लगे हुए हो। एक मां को और चाहिए भी क्या? उसके बच्चे कठिनाइयों से बचें और सुरक्षित रहें। तुम भी किसी मां के बच्चे हो मां की पीड़ा को महसूस तो करते ही होंगे। देखो तुममें भी मां का वास है। तुम्हें मां का ही वास्ता दे कर प्रजा की रक्षा की गुहार लगा रही हूं।
पडोसी दंपत्ति को कोरोना हो गया है। उसकी नन्ही सी आठ माह की बेटी दिन रात उनसे मिलने रोती है। मां दूध नहीं पिला सकती। मिल नहीं सकती, छाती से नहीं लगा सकती। दूर से मां को देखती बिलखती है। दुधमुंही बच्ची की चीत्कार सुनते हो न तुम? उस मां की तड़प की पीड़ा भी महसूस करो न जरा।कोरोना तो कंस से भी बड़ा हो चला है, कंस ने तो केवल वासुदेव और देवकी को ही काल कोठारी में रखा था। यहां तो बालकों को अलग कोठारी की सजा भुगतनी पड़ रही है। इन नन्हे बच्चों पर रहम करने कोई तो कृष्ण जन्मे, जो इस कंस कोरोना का नाश करे।कुछ बालक तो अजन्मे ही रह गए, कुछ अनाथ हो गए. जैसे मां यशोदा का ममत्व हमसे रूठ गया है।
मां सरस्वती भी नाराज हो चलीं हैं ।विद्यार्जन को तरसते विद्यार्थियों को दर-बदर कर छोड़ा है इस गंवार कोरोना ने। सरस्वती के मंदिरों के पट बंद हैं। उसके भक्त उसकी कृपा से वंचित। कई रोजगार लायक नहीं रह जाएंगे तो कई का आधार ही नहीं बन रहा। व्यावहारिक जीवन की शिक्षा से विरत यह बच्चे कैसे भले समाज का निर्माण कर पाएंगे। युवाओं में पनपती आपराधिक प्रवृत्ति हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। वीणा के तारों की झंकार हाहाकार में बदल रही। कमल मुरझा रहे, हंस का रंग मैला हो चला है।
मां लक्ष्मी ने तो कृपा करना ही छोड़ दी है।उनके स्वर्ण कलश पर असुरों का राज हो चला है। कालाबाजारी, लूट, नृशंसता और हैवानियत का नंगा नाच देख, अपने हाथों की भी घड़ी कर बैठ गईं हैं। देव धन्वन्तरी ने अपना मुंह लालचियों की काली नीयत के कारण मोड़ लिया है।धरती पर मच रही लूट-पाट के तांडव का बदला देव यमराज अपने अनगिनत पाश फेंक कर ले रहे हैं। खाली हाथ फैलाते, भीख मांगते बच्चे-बड़े जीविका चलाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। चरमराती आर्थिक स्थितियां बिकने बिकाने पर आ गईं हैं। इनसे सामाजिक कुरीतियों को पोषण मिलेगा जिसका जिम्मेदार यही दैत्य कोरोना होगा जो रक्त बीज की तरह बेकाबू हो भारत मां की संतानों को लील रहा है।
हे मां दुर्गा अवतरित हों, नाश करो इस इस कोरोना दानव दल का। इस कोरोना महिषासुर से बचाओ। अपनी अष्टभुजा में धारण अस्त्रों में शक्तिपात करें मां। बेटियां पीड़ित हैं, बेटे दर्द से कराह रहे हैं। भूखों के लिए अन्नपूर्णा बन आओ न। काल रात्रि बन श्मशान में धधक रही चिताओं में लेटे अकाल मौत मरे इन शवों की आत्मा की मुक्ति दें मां। ये अपने पीछे हंसते खेलते परिवारों को चीखते-चिल्लाते बिलखते छोड़े जा रहे हैं। केवल तेरे भरोसे ही न। धरती पर हमसे जो भूले, गलतियां, पाप, खिलवाड़ हुए हैं उनकी माफ़ी दो माते। हमारे शासन-प्रशासन को शक्ति दो कि वे अपने में आप, त्रिकालदर्शी, सर्वशक्तिमान मां को जागृत करें और दूर करें कष्ट अपनी जनता के, उनकी बदहाली को संवारें, नाश करें लालची नीच कर्मों से युक्त राक्षसों का। हे माता दो अपनी शक्ति का वो अंश इस “सिस्टम” को, जिससे सारी सृष्टि को तुम संतुलित, न्याय पूर्वक, कृपापूर्वक चलायमान रखती हो।
जागो...सिस्टम जागो....समस्त माताएं तुम्हें पुकार रहीं हैं। इससे पहले कि इस धरती पर वास करने वाली जननियां अपने श्राप का कहर बरपाएं...हमारी विनती सुनो सिस्टम...कुछ भी कुशल नहीं है... बच्चे जा रहे हैं मां की गोद सूनी कर के, मां भी चल दी हैं बच्चों को अनाथ कर के....तुम सुन रहे हो...? मदर्स डे को हैप्पी बना दो...अपनी जिम्मेदारी को समझ कर व्यवस्था का जादू जगा दो...