उस दिन अपने लिए किताब लेते समय मेरी नजर उन पत्रिकाओं पर पड़ी, जिन्हें पढ़कर मम्मी हमें कहानियां सुनाया करती थीं। जैसे-जैसे बड़े होते गए, हमें भी किताबें पढ़ने की आदत हो गई। उन यादों से बाहर निकलकर मैनें जल्दी से एक पत्रिका अपने बेटे के लिए भी ले ली। सोचा इस अनमोल तोहफे को देखकर वह बहुत खुश होगा। घर जाकर मैनें उसे यह तोहफा दिया, पर उसने पत्रिका को देखकर कोई रुचि नहीं दिखाई। मुझे निराशा हुई और उसका कारण भी समझ आया।
उसका कारण था मोबाइल फोन, जो आजकल के बच्चों के हाथ में हमेशा रहता है और हम माता-पिता को इस बात का गर्व होता है कि हमारे छोटे बच्चे हमसे भी तेजी से इस मोबाइल तकनीक को अपना रहे हैं, वो भी बेहद कम समय में सीखकर।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज हम डिजीटल भारत बना रहे हैं और हमें नई तकनीके अपनाना ही चाहिए। लेकिन जो बात अपने हाथ से लिखे पत्र या चिट्ठी में होती है, वह क्या ई-मेल में है? उसी तरह किताबों का अपना ही महत्व है।आज हम माता-पिता अपनी व्यस्त जीवनशैली से बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते, इसलिए उन्हें टीवी के सामने बैठा देते हैं और हमारा काम बहुत आसान हो जाता है।
आज भी भले ही बच्चा कितना ही मोबाइल से सीख ले, लेकिन मां द्वारा सुनाई गई कहानी का अपना ही महत्व है। कहते हैं न - पालने से लेकर कब्र तक ... मां की लोरी और कहानियां बच्चे के साथ रहती हैं। यह बिल्कुल सही है। आज भी वे कहानियां, जो बचपन में मां सुनाया करती थीं भुलाए नहीं भूलती। मां की आवाज में ही उनके चित्र आंखों के सामने आते हैं। फिर यही कहानियां अगर टीवी पर देखी होती, तब शायद इतनी मन से जुड़ी न होती।
मैने धीरे-धीरे उसे उस किताब के आकर्षक चित्र दिखाकर सोने से पहले कहानियां सुनाना शुरु किया और धीरे-धीरे उसे बहुत मजा आने लगा। अब सोने से पहले पहले हम स्टोरी टेलिंग करते हैं। और उस कहानी के साथ खूब सारी बातें। यह एक आदत सी बन गई है और इन कहानियों के द्वारा बातचीत करके सवाल पूछकर वह बहुत सारी चीजें सीखता है। थैंक्यू मां, इसे एक आदत बनाने के लिए आज आपके कारण मैं इन किताबों का महत्व समझ पाई।